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मंगलवार, 2 मई 2017

बेसिक शिक्षा हो रही सच में सत्यनास




बेसिक शिक्षा हो रही सच में सत्यनास  |
कैसा भी बच्चा रहे करना ही है पास | |

SMS से उपस्थिति, जायेगी अब यार |
नाम लिखा सौ डेढ़ सौ, आते हैं दो चार | |

बचेगी कैसे नौकरी है बेहद परेशान |
शिक्षक ही दोषी हुआ, बालक तो नादान | |

शिक्षक सोचे हो गयी, हमसे कोई भूल |
गाँव बुलाने जा रहा, चल बच्चा स्कूल ||

बच्चा कंचा खेलता, अभिभावक के ठांव |
शिक्षक से बप्पा कहैं, तुमही पकड़ लै  जाव | |

कोलिया -कोलिया भागकर, बच्चा गया लुकाय |
शिक्षक बेचारा खड़ा, मन ही मन खिसियाय ||

लद्धड़ बच्चा देखकर, शिक्षक दिया है रोय |
आता ना स्कूल है , कैसे बोझा ढोय ||

भला पढ़ाऊँ मै किसे, जब बच्चे ही नाय  |
कैसेव आज जो आ गये, काल कोटि ना आय ||

मतगणना और चुनाव से, जैसे छुट्टी पाय |
शिक्षक जनगणना करें आर्डर गया ये आय ||

जाड़ा देख विभाग से आया है ये रूल |
बच्चों की छुट्टी करो, तुम जाओ स्कूल ||

बच्चों की छुट्टी हुयी, टीचर है गमगीन |
जाकर के स्कूल में, बैठा नौ से तीन ||

(श्रेय : श्रोत उपलब्ध नहीं )

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

गुरु थे, कर्मचारी हो गए हैं ।


गुरु थे, कर्मचारी हो गए हैं ।
दांतों फंसी सुपारी हो गए हैं ।।
महकमा सारा हमको ढूँढता है।
हम संक्रामक बीमारी हो गए हैं ।।
इसे चमचागिरी की हद ही कहिये।
कई शिक्षक अधिकारी हो गए हैं ।।
अकेले चार सौ को हैं नचाते।
हम टीचर से मदारी हो गए हैं ।।
उन्हें अब चाॅक डस्टर से क्या मतलब ।
जो ब्लॉक/संकुल प्रभारी हो गए हैं ।।
कमीशन इसमें,उसमें, इसमें भी दो।
हम दे-दे कर भिखारी हो गए हैं ॥
मिला है एम डी एम का चार्ज जबसे ।
गुरुजी भी भंडारी हो गए हैं ॥
बी ई ओ ऑफिस को मंदिर समझ कर ।
कई टीचर पुजारी हो गए हैं ॥
पढ़ाने से जिन्हें मतलब नहीं है ।
वो प्रशिक्षण प्रभारी हो गए हैं ॥
खटारा बस बनी शिक्षा व्यवस्था ।
और हम लटकी सवारी हो गए हैं ।।

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ !



शिक्षक हूँ, पर ये मत सोचो,
बच्चों  को  सिखाने  बैठा हूँ |
मैं   डाक   बनाने  बैठा  हूँ ,
मैं   कहाँ   पढ़ाने   बैठा हूँ !

कक्षा  में  जाने  से  पहले,
भोजन  तैयार  कराना है |
ईंधन का इंतजाम करना
फिर  सब्जी लेने जाना है,
गेहूँ ,चावल, मिर्ची, धनिया
            का हिसाब लगाने बैठा हूँ
            मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कितने एस.सी. कितने बी.सी.
कितने जनरल  दाखिले हुए
कितने आधार बने अब तक
कितनों  के  खाते  खुले हुए
बस यहाँ कागजों में उलझा
               निज साख बचाने बैठा हूँ
               मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कभी एस.एम.सी कभी पी.टी.ए
की मीटिंग बुलाया करता हूँ
सौ - सौ भांति के रजिस्टर हैं
उनको   भी   पूरा  करता हूँ
सरकारी  अभियानों में  मैं
              ड्यूटियाँ  निभाने बैठा हूँ
             मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

लोगों की गिनती करने को
घर - घर में  मैं ही जाता हूँ
जब जब चुनाव के दिन आते
मैं  ही  मतदान  कराता  हूँ
कभी जनगणना कभी मतगणना
              कभी वोट बनाने बैठा हूँ
              मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा हूँ ...

रोजाना  न  जाने  कितनी
यूँ  डाक  बनानी पड़ती है
बच्चों को पढ़ाने की इच्छा
मन ही में दबानी पड़ती है
केवल  शिक्षण  को छोड़ यहाँ
                 हर फर्ज निभाने बैठा हूँ
                 मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ ...

इतने  पर भी  दुनियां वाले
मेरी   ही  कमी   बताते  हैं
अच्छे परिणाम न आने पर
मुझको   दोषी   ठहराते हैं
बहरे  हैं  लोग  यहाँ  'अंशु'
             मैं  किसे  सुनाने बैठा  हूँ
             मैं कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ..
             मैं  नहीं  पढ़ाने  बैठा  हूँ..

श्रेय : उपलब्ध नहीं (यदि जानकारी हो तो सूचित करे )