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मंगलवार, 2 मई 2017

व्यवस्था ज्यादा दोषी या शिक्षक ?



एक पोस्ट पर किसी सज्जन ने लिखा की अध्यापक महीना बांध लेते है और स्कूल नही जाते यद्धपि उन्होंने ठीक लिखा

बस उनको लिखना ये था की 'कुछ' शिक्षक महीना बांध लेते है ये सही भी है ऐसा हो भी रहा है इसमें कोई शक नही कुछ शिक्षक ऐसा कर रहे है एन.सी.आर(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) से आने वाली काफी शिक्षिका ऐसा कर रही है और ये निश्चित रूप से अपराधिक बात है राजकोष का नुकसान है और साथ ही साथ उन बच्चों के प्रति भी गलत हो रहा है जो विद्यालय शिक्षा लेने आते है।

पर सवाल ये है की जो शिक्षक ऐसा कर रहे है वो तो दोषी है ही साथ वो लोग भी दोषी है जो ऐसा होने दे रहे है, बिना अधिकारी के ये सम्भव नही की कोई स्कूल ना आये और उसे घर बैठे वेतन मिलता रहा |
अध्यापक ऐसी हरकत तब ही कर पाते है अथवा कर रहे है जब वो अपने अधिकारियो को इस बात के लिए निश्चित धनराशि रिश्वत के रूप में दे कर आते होंगे इसलिए दोषी वो व्यवस्था भी  है जिसका वो लाभ रहे है |

जिन भी स्कूलो में ऐसा हो रहा है जिन भी ब्लाक में ऐसा हो रहा है वहां के अधिकारियो पर कार्यवाही हो
जो भी लोग ऐसी व्यवस्था बनवाने में दोषी है उन पर भी सख्त कार्यवाही होनी चाहिए |

जो शिक्षक अपने दायित्व सही से निभा रहे है उनके लिए ऐसे आरोप निश्चित रूप से हतोत्साहित करने वाले है समाज में उनकी प्रतिष्ठा को ऐसे लोगो की वजह से हानि पहुँचती है|

काफी दिन से शिक्षको को लेकर अनाप-शनाप कहा जा रहा है इसलिए ये पोस्ट लिखने की जरूरत पड़ी यदि ऐसे कुछ शिक्षको की वजह से सबको सुनना पड़े तो जो शिक्षक कार्य अच्छा कर रहे है उनकी प्रशंसा भी की जानी चाहिए। बेसिक में कुछ शिक्षको अधिकारियो की वजह से सभी को एक जैसा मान लेना गलत है |

 कार्यवाही सभी गलत लोगो पर होनी चाहिए चाहे वो शिक्षक हो अथवा अधिकारी

बेसिक शिक्षा हो रही सच में सत्यनास




बेसिक शिक्षा हो रही सच में सत्यनास  |
कैसा भी बच्चा रहे करना ही है पास | |

SMS से उपस्थिति, जायेगी अब यार |
नाम लिखा सौ डेढ़ सौ, आते हैं दो चार | |

बचेगी कैसे नौकरी है बेहद परेशान |
शिक्षक ही दोषी हुआ, बालक तो नादान | |

शिक्षक सोचे हो गयी, हमसे कोई भूल |
गाँव बुलाने जा रहा, चल बच्चा स्कूल ||

बच्चा कंचा खेलता, अभिभावक के ठांव |
शिक्षक से बप्पा कहैं, तुमही पकड़ लै  जाव | |

कोलिया -कोलिया भागकर, बच्चा गया लुकाय |
शिक्षक बेचारा खड़ा, मन ही मन खिसियाय ||

लद्धड़ बच्चा देखकर, शिक्षक दिया है रोय |
आता ना स्कूल है , कैसे बोझा ढोय ||

भला पढ़ाऊँ मै किसे, जब बच्चे ही नाय  |
कैसेव आज जो आ गये, काल कोटि ना आय ||

मतगणना और चुनाव से, जैसे छुट्टी पाय |
शिक्षक जनगणना करें आर्डर गया ये आय ||

जाड़ा देख विभाग से आया है ये रूल |
बच्चों की छुट्टी करो, तुम जाओ स्कूल ||

बच्चों की छुट्टी हुयी, टीचर है गमगीन |
जाकर के स्कूल में, बैठा नौ से तीन ||

(श्रेय : श्रोत उपलब्ध नहीं )

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

स्वच्छ भारत अभियान को ठेंगा दिखाते गाँव



आज सुबह मैं जब 40 किलोमीटर बाइक चलाने के बाद विद्यालय पहुंचा तो देखा इंचार्ज प्रधानाध्यापिका बाहर खड़ी थीं, मैं अभी दूर ही था , मुझे लगा शायद आज घर चाबी भूल गयी होंगी | जब मैंने बाइक खड़ी की और कार्यालय की ओर बढ़ा तो जो देखा उसे देखकर मन एकदम खिन्न हो गया |
          पहले तो लोग विद्यालय प्रांगण(परिसर) में शौंच कर जाते थे पर आज तो हद्द ही हो गयी, विद्यालय के कार्यालय के सामने- दोनों किवाड़ों के बीचो बींच |
        मन में आया ग्राम प्रधान को बुलाकर इस कृत्य को दिखाऊ, NPRC और ABSA महोदय से शिकायत करू , फिर एकाएक लगा कि यह इस समस्या का हल नहीं है, क्योकि जिसने भी ऐसा  किया है जानबूझकर
परेशान करने  के उद्देश्य से किया है |
        खैर धन्य हैं वो सफाई कर्मी जो हमारे बीच ही रहकर हमारी गन्दगी साफ़ करते हैं |


जब इस सम्बन्ध में मैंने अन्य शिक्षकों से बात की तो जो जवाब मिले वो सच में डराने वाले थे -
  • ये तो कुछ भी नहीं है सर जी हमारे विद्यालय में तो लगातार 3 दिनों तक कुछ शरारती तत्व चारो दरवाजो के सामने शौंच कर गए थे |
  • ये तो सच में डराने वाला था - सर जी हम बहुत परेशान हैं हमारे यहाँ कुछ लड़के नल और तालो में मल लगा जाते हैं ताकि शिक्षक ताला ही ना खोल सके |

फिर सोंचा इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है ? 
  • चहार दीवारी - उपरोक्त घटनाएं जहाँ की हैं उन विद्यालयों में बाउंड्री मौजूद है, ऐसे कृत्य छोटे बालको द्वारा नहीं किये जाते की बाउंड्री उन्हें रोक सके, ये कुछ बेरोजगार, अशिक्षित, और विकृत मानसिकता के लोग हैं जिनका सबसे अच्छा टाइम पास है दूसरों कों परेशान करना |
  • शिकायत- यदि इन्हें ग्राम प्रधान, NPRC, ABSA आदि का भय होता तो ये ऐसा करते ही क्यो, उलटा शिकायत करने पर ऐसी घटनाए और जोर पकड़ सकती है|
  • निष्क्रिय रहिए - मेरे हिसाब से यह विकल्प सर्वोत्तम है, ऐसे तत्व तभी तक गतिविधि करते हैं जब तक उन्हें प्रत्योत्तर मिलता है, कोई उत्तर ना मिलने पर वे स्वयं भी निष्क्रिय कों जाते हैं वो कहावत सही कही गयी है -
कुत्ते भौंकते रहते हैं, हांथी मदमस्त चाल चलता रहता है | 
(इस स्थिति में हाँथी बनना ही सहायक होगा |)

स्वच्छ भारत अभियान 
रही बात स्वच्छता अभियान की तो, मुझे नहीं लगता की हमारा ये संकल्प कभी पूरा हो पायेगा क्योकि हममे से कुछ हैं जो बदलना ही नहीं चाहते |
      आज भी आपको गाँवो में लोग ये कहते मिल जायेंगे कि-

"जो मजा सुबह सुबह खेत में करने में है वो घुसल्खाने में कहाँ"

आज भी जब ट्रेन से सफर करते समय मैं सुबह - सुबह लोगो कों पटरियों के आस पास शौंच करते देखता हूँ तो सच में एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि क्या सोंचते होंगे विदेशी पर्यटक भारत के बारे में और फिर लगता है हाँ सच में ....

स्वच्छ भारत अभियान एक कल्पना मात्र है | 

(एक परिषदीय शिक्षक)
 

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

व्यवस्था के नाम एक परिषदीय शिक्षक का खुला पत्र

 


प्रिय व्यवस्था,
सादर नमस्कार!

आजकल देश में खुली चिट्टी लिखने का नया अध्याय शुरू हुआ है, नामी लोग एक दूसरे के नाम खुला पत्र लिख रहे हैं पर हम ठहरे अध्यापक हमें खुलकर लिखने का ज्यादा अधिकार नहीं मिला है फिर भी बात जब हद से बढ़ जाती है और दिमाग पर असर करने लगती है तो लिखना आवश्यक हो जाता है पर हम अपनी चिट्ठी किसके नाम लिखे ये निश्चित नहीं हो पाया क्योंकि हमारा गौरव गिराने में कई लोग बराबर के हक़दार हैं इसलिए ये चिट्ठी व्यवस्था के नाम लिख रहे हैं।

        सबसे पहले तो उन मीडिया कर्मियों के बारे में लिखना जरुरी है जो विद्यालय में जबरन घुसकर सरकारी शिक्षा की छीछालेदर करना अपना परम धर्म समझते हैं। आपको अपना यह धर्म निभाना भी चाहिए क्योंकि यह आपके पेशे और ड्यूटी से जुड़ा प्रश्न है पर आप दिल पर हाथ रखकर बताना कि आपको आज तक कोई ऐसा स्कूल नहीं मिला जिसमे आपको सभी व्यवस्थाएं चाक चौबंद मिली हों और बच्चे होशियार हों, तो आपकी ऐसी कौन सी मज़बूरी रही जिसके कारण आपने उस विद्यालय का समाचार नहीं दिखाया और छापा, शायद बुराई दिखाना ही आपके पेशे का प्रमुख कर्त्तव्य है? पर  कभी जनता को यह भी बता देते कि कि 5 कक्षाओं में पढ़ाने के लिए 5 अध्यापकों की जरुरत होती है। स्कूल की सफाई के लिए स्वीपर और चपरासी की जरुरत होती है। ऑफिस के कार्य के लिए क्लर्क की जरुरत होती है। कभी इस बात को भी जान लेते कि हिंदी विषय से भर्ती अध्यापक एकल विद्यालय में मजबूरी में विज्ञान और अंग्रेजी कैसे पढ़ा लेता है। पर आप तो मन बनाकर निकले थे कि आज शाम तक 10 स्कूल का जनाजा निकालकर उनकी खबर अपने अख़बार में छापनी है या न्यूज़ चैनल पर दिखानी है। दुःखद है कि हमारे कुछ साथी आपको सन्डे मंडे नहीं सुना सके, यह बड़े शर्म की बात है, हम भी यह जानने के बाद शर्म के मारे अपने पास पड़ोस में निगाह नहीं मिला पा रहे है। पर आप तो खोजी पत्रकार है जरा पता लगा के बताइये कि इनकी भर्ती किसने की और अगर ये विभाग में है तो क्या ये हम शिक्षकों की गलती है और इनकी अंकतालिका पर अच्छे प्रतिशत होने के बाद भी ये प्राथमिक ज्ञान नहीं रखते हैं तो उस यूनिवर्सिटी और स्कूल पर ऊँगली उठाने की बजाय आप हमारी पूरी कौम की छीछालेदर पर क्यों उतारू हैं।

    प्रिय प्रशासन जरा आप यह भी बता दें कि पढ़ाने के लिए नियुक्ति देने के बाद
  • जनगणना , 
  • चुनाव, 
  • बी एल ओ , 
  • पल्स पोलियो , 
  • मतदाता पुनरीक्षण, 
  • बृक्षारोपण,
  •  स्वास्थ्य परीक्षण, 
  • मध्यान्ह भोजन निर्माण
  • वितरण, 
  • सांख्यिकी गणना 
आदि के लिए क्या हम आपके विभिन्न विभागों से आग्रह करने गए थे या इन विभागों के काम निपटाने का आदेश हमारी सेवा नियमावली का हिस्सा है। जरा आप यह भी बता दें कि जिस निजी स्कूल में एक बच्चे का महीने भर  जितना जेबखर्च होता है उतने खर्च में आप वर्ष भर हमसे एक स्कूल क्यों चलवाते हैं। स्कूल की साफ सफाई की फोटो को बड़ा करके छापने और प्रधानाध्यापक को निलंबित करने से पहले काश आप यह भी जान लेते कि पिछले कितने दिनों से विद्यालय में सफाईकर्मी नहीं आया है और आपने कितने सफाईकर्मियों को निलंबित किया। हमारे टॉयलेट में झाँकने से पहले और उन्हें गन्दा होने का प्रश्न उछालने से पहले यह भी जान लेते कि गांव का स्वीपर इन्हें साफ नहीं करता।

      हम भी चाहते है कि हमें पढ़ाने का अवसर मिले पर आप हमें पढ़ाने कब दे रहा है। रात में सोते समय बच्चों के लिए कार्ययोजना बनाने की बजाय दिमाग में सब्जी मंडी से सब्जी का तनाव लेकर सोना पढ़ता है और सब्जी मंडी में हमारे घुसते ही 10 रुपये की लौकी 15 की हो जाती है और दुकानदार कटाक्ष करता है कि मास्टर बहुत कमाई है तुम्हारी। सन्डे की शाम को फल मंडी से एक बोरी केले लादकर लाने में पसीने छुट जाते है और डर लगता है कि अगर मोटरसाइकिल फिसल गयी तो राम नाम सत्य ना हो जाए। बुधबार की रात दूध के तनाव में निकल जाती है और रोज मिलावटी दूध की शिकायत की खबरे देखकर बच्चों को दूध पिलाते वक्त कलेजा मुँह को आ जाता है डर लगता है कि अगर एक भी बच्चा वीमार हुआ तो हमारे खुद के बच्चे भूखों मर जायेगे। जरा आप बताइये कि आपने दूध की शुद्धता नापने का कोई यंत्र कभी हमें दिया है? मिड डे मील खाने से बीमार हुए बच्चों की खबर सुन सुन कर हम मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार हो गए हैं, जब तक मध्यान्ह भोजन के बाद बच्चे सकुशल घर नहीं चले जाते तब तक हम डरे सहमे से रहते हैं क्योंकि बाजार की सब्जी में कौन सा इंजेक्शन लगाया गया है इसकी रोज फोरेंसिक जांच कर पाना हमारे बस में नहीं है। अक्सर हमारी गाड़ी पर पीछे सिलेंडर बंधा पाया जाता है। कभी कभी आटा की बोरी और सब्जी का थैला।



    आप  हमें वोट बनाने को कहते हो और गांव में प्रधानी चुनाव के संभावित  राजनैतिक दावेदार हमारे दुश्मन बन जाते हैं। रोज हम गलत वोट ना बढ़ाने के कारण गरियाये जाते हैं। पर आपको को तो काम चाहिए वो भी समय पर और बिना किसी त्रुटि के। महीनो वोट वनाने के चक्कर में कभी कभी हम अपने प्रिय शिष्यों के नाम तक भूल जाते हैं और कभी कभी तो हमें यह भी याद नहीं रह पाता कि हमने अपने बच्चों को इस साल कितने अध्याय पढ़ाये हैं।

   कभी कभी रंगाई पुताई समय से कराने के चक्कर में पुताई कर्मियों की भी जी हुजूरी करनी पड़ती है 7 हजार में इतना बड़ा विद्यालय पुतवाने के बाद विद्यालय की बॉउंड्री पर बैठे लड़के पूछते हैं मास्टर कितने बच गए तो कहना पड़ता है कि नौकरी बच गयी बस।बरसात की घास छोलने से लेकर भवन की झाड़ू तक की जबाबदेही हमारी ही है पर अगर हमारे बच्चे हमारा साथ ना दें तो हमारी जिंदगी मास्टर की बजाय सफाईकर्मी बनकर ही गुजर जाए।

     इसी बीच परीक्षा आ जाती है साहब कहते हैं कि बिना पैसे के करा लो, हमें परीक्षा के लिए कक्ष निरीक्षक तक नहीं मिलते हैं हमारे बच्चे 1 रूपये की कॉपी तक नहीं खरी पाते है, पर साहब कहते हैं कि बच्चे फेल नहीं होने चाहिए। अब जो बच्चा मामा के घर चला गया है उसको कैसे पास कर दें,हमारा दिल तो गवारा नहीं करता है पर साहब  कहते है कि हमें शतप्रतिशत रिजल्ट चाहिए।

         अधिकांश निरीक्षण में हमारे बच्चों की संख्या कम पायी जाती जिस पर हमें हमारे बच्चों के सामने ही सार्वजानिक रूप से बेइज्जत कर दिया जाता है पर कभी बच्चों से भी पता कर लो कि वो कहाँ है। कभी हमारे साथ हमारे बच्चों के घर भी चलो। जिस बच्चे का पिता दारू के नशे में धुत रहता हो तो वह अपनी माँ के साथ मजदूरी करे या स्कूल आये। बिना ज़मीन बाला भूमिहार मजदूर फसल के समय अपने पूरे परिवार के साथ वर्ष भर जीवन यापन लायक पैसे जोड़े या बच्चे स्कूल भेजे। अपने बच्चों के स्कूल से आये एक फोन पर हर काम को रोककर स्कूल पहुँचने बाले लोग काश यह भी जान पाते कि हमारे यहाँ नाम लिखाने के लिए हमें हर वर्ष घर घर बच्चे खोजने पढ़ते है महीनों उनके माता पिता से अनुरोध करना पड़ता है कि आप अपने बच्चों को कापियां दिला दें हफ़्तों गायब रहने और लगातार सूचना भिजवाने के बाद स्वयं ही खेत पर जाकर बच्चों और उनके पिता से अनुरोध करना पड़ता है कि आप ऐसे खेत पर काम करवाने की बजाय स्कूल भेजें। पर उन अभिभावक का दर्द भी जायज है आपने उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया नहीं है और भविष्य में पढ़कर उनके बच्चों को रोजगार देने के कोई संकेत आपके पास हैं नहीं।

      लोग तंज़ कसते हैं कि पहले सरकारी स्कूल के बच्चे अफसर बनते थे पर शायद आप भूल जाते हैं कि तब कृष्ण और सुदामा के लिए एक ही स्कूल होता था अब सब कृष्णों के पिता ने मिलकर अपने राजसी स्कूल खोलकर उनमे प्रवेश ले लिया है और सुदामा को जानबूझकर अल्पसुविधा बाले खैराती भवन में पढ़ने को मजबूर किया है। शिक्षा के नाम पर 3 प्रतिशत अतिरिक्त कर्ज वसूलने के बाद भी आप इन गरीबों के स्कूल में पूर्ण सुविधा नहीं दे पा रहे हैं या जानबूझकर नहीं देना चाहते ये आज तक समझ में नहीं आया काश वो कृष्ण जो कभी इन स्कूलों में पढ़कर आईएएस अफसर (राजा) बन गए वो ही लौटकर अपने गांव के गरीबों को कुछ सुविधा उपलब्ध करवा देते।पर शायद समाज के रसूख बाले लोगों को अपने कृष्ण को गरीब सुदामा के साथ पढ़ाना नागवार गुजरता है।



        जो लोग हम पर उंगलियां उठाते है वो जरा ये भी बता दें कि उन्होंने कब हमारी मदद के लिए हाथ बढ़ाया। क्षेत्र के सांसद और विधायक जी ने कितने स्कूल में अपनी सांसद और विधायक निधि से बच्चों के हित में काम करवा दिया। यहाँ तो जो चंद सरकारी मदद मिलती है उसमे भी ग्राम प्रधान अपनी नजर गड़ाये रहते हैं।कभी आप यह भी बता दें कि अच्छा कार्य करने बाले सरकारी मास्टर के लिए कभी आप लोगों ने कोई सम्मान समारोह आयोजित कराया हो जबकि निजी स्कूल के प्रिंसिपल को आप अपने बगल से बिठाकर खुश नजर आते है क्योंकि वह आपके बच्चों के स्कूल के प्रिंसिपल हैं। यहाँ तो हमें हर आठवें दिन अपने प्रधान के देहरी पर हाजरी देनी पढ़ती है और प्रधानिन जोर से आवाज देती हैं कि सुनो जी वो कलुआ के मास्टर फिर आ गए। प्रधान जी भी हमें उतनी ही तवज्जो देते हैं जितनी वो गांव के कलुआ हरिया और मातादीन को देते हैं। किसी अन्य विभाग का बाबू और चपरासी हमें हड़काने चला आता है क्योंकि हमने उसके विभाग के कार्य समय से नहीं किये।

      समाज का हर तबका हमारे वेतन को लेकर परेशान है पर हमारा काम इतना आसान नहीं है जितना आप समझते हैं और अगर आपको लगता है कि बच्चों के मन की स्लेट पर लिखना इतना आसान है  तो 6 महीने अपने बच्चे को खुद पढ़ाकर देखिये। आखिर आप भी तो पढ़े लिखे हैं और इतने तो पढ़े ही होंगे कि कक्षा 1 के छात्र को पढ़ा सकें। सरकारी स्कूल में पैदा की गयी प्रतिकूल परिस्तिथियों में शिक्षण बहुत कठिन पर हम इन स्तिथियों के लिए भी सदैब तैयार है पर आप हमें पढ़ाने तो दो। विभिन्न विभागों के काम कर कर के कभी कभी हम स्वयं भी भ्रमित हो जाते हैं कि आखिर हमें वेतन किस बात का मिल रहा है रोज रोज गांव में नया काम लेकर पहुँचने पर कभी कभी बुजुर्ग पूछ लेते हैं कि लल्ला का बेचन आये हो।

     वास्तव में अपनी इस वर्तमान दशा के लिए हम कतई दोषी नहीं हैं पर सारा दोष हमारे मत्थे मढ़कर आप सब अपने को पाक साफ साबित कर चुके हैं आज आपको भले ही अध्यापक से कई काम लेकर ख़ुशी महसूस हो रही हो और जिला प्रशासन सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए अपनी पीठ थोक रहा हो पर भविष्य में यह समाज केवल आपकी नीतियों की बजह से अशिक्षित रह जायेगा और बदनामी हमारी होगी।

आपका
एक परिषदीय अध्यापक

गुरु जी, छेदी और RTE की धाराएँ


 

कक्षा छठवीं के छात्र छेदी ने छत्तीस की जगह बत्तीस कहकर जैसे ही बत्तीसी दिखाई, गुरुजी ने छड़ी उठाई और मारने वाले ही थे कि..

छेदी ने कहा...- "खबरदार मास्टर साहब!! अगर मुझे मारा तो!!! मैं गिनती नहीं जानता मगर आरटीई की धाराएँ मैं अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे गणित में नहीं, हिन्दी में समझाना आता है।"

गुरुजी चौराहों पर खड़ी मूर्तियों की तरह जड़वत हो गए। जो छेदी कल तक बोल नहीं पाता था, वो आज आँखें दिखा रहा है और मेरी बची खुची इज्ज़त की पोटली में छेद किए जा रहा है।

शोरगुल सुनकर प्रधानाध्यापक महोदय भी उधर आ धमके। कई दिनों से उनका कार्यालय से निकलना ही नहीं हुआ था। वे हमेशा विवादों से दूर रहना पसंद करते थे। वे अपने से वरिष्ठ अधिकारियों एवम् अफसरों से बनाकर चलना बख़ूबी जानते थे। इसी कला की निपुणता के कारण वे कई वर्षों से इसी विद्यालय में कुल्फी की तरह जमे हुए थे। इसलिए उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी छोड़ दिया था।

(खैर...आते ही उन्होंने छड़ी को तोड़ कर बाहर फेंका और..)
 प्रधानाध्यापक  - "सरकार का आदेश नही पढ़ा मास्टर साहब आपने? आप पर प्रताड़ना का केस दर्ज हो सकता है। रिटायरमेन्ट नज़दीक है आपका!! निलम्बन की मार पड़ गई तो पेन्शन के फ़ज़ीते पड़ जाएंगे। बच्चे न पढ़े तो कोई बात नहीं, पर प्रेम से पढ़ाओ। उनसे प्यार से निवेदन करो कि बेटा पढ़ लो।

समझते क्यों नहीं मास्टर साहब?? अगर कहीं शिकायत कर दी तो ?"

बेचारे गुरुजी पसीने पसीने हो गए। मानो हर बूँद से प्रायश्चित टपक रहा हो।

इधर छेदी "गुरुजी हाय हाय" के नारे लगाता जा रहा था और बाकी बच्चे भी उसके सुर में सुर मिलाकर पूरी कक्षा को गुलज़ार किए हुए थे।

प्रधानाध्यापक महोदय (छेदी को एक कोने में ले जाकर कहा)- "मुझसे कहो छेदी बेटे!! तुम्हें क्या चाहिए?"

छेदी -  "जब तक गुरुजी मुझसे पूरी कक्षा के सामने माफ़ी नही माँग लेते हैं,तब तक हम शाला का बहिष्कार करेंगे। बस आप हमें बताएँ कि शिकायत पेटी कहाँ है?"

(समस्त स्टाफ आश्चर्यचकित था और पूरे विद्यालय में भय का वातावरण फैल चुका था। कुछ छात्रों का समूह तो मारे ख़ुशी के फूला नहीं समा रहा था। अब छात्र जान चुके थे कि उत्तीर्ण होना उनका कानूनी अधिकार है।)

बड़े सर ने छेदी से कहा - मैं उनकी तरफ से माफ़ी माँगता हूँ|
छेदी -  "आप क्यों माँगोगे माफ़ी? जिसने किया है वही माफ़ी माँगे!! कक्षा में मेरा बहुत अपमान हुआ है, अतः गुरूजी ही माफ़ी मांगेंगे।"

(आज गुरुजी के सामने बहुत बड़ा संकट था। जिस छेदी के बाप तक को उन्होंने दण्ड, दृढ़ता और अनुशासन से पढ़ाया था, आज उनकी ये तीनों शक्तियाँ परास्त हो चुकी थीं। वे इतने भयभीत हो चुके थे कि एकान्त में छेदी के पैर तक छूने को तैयार थे, लेकिन सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगकर गुरूता के ग्राफ को सरेआम गिराना नहीं चाहते थे। छड़ी के संग उनका मनोबल ही नहीं, परम्परा और प्रणाली भी टूट चुकी थी। सारी व्यवस्था नियम कानून एक्सपायर हो चुके थे। कानून क्या कहता है, अब ये बच्चों से सीखना पड़ेगा??)

अन्तिम पड़ाव पर गुरु द्रोण स्वयं चक्रव्यूह मे फँस जाएँगे!!

वे प्रण कर चुके थे कि कल से बच्चे जैसा कहेंगे, वैसा ही वे करेंगे। तभी बड़े सर उनके पास आकर बोले, "मैं आपकी स्थिति को समझ रहा हूँ किन्तु इस वक़्त आपको समझा रहा हूँ। वह मान गया है और अन्दर आ रहा है। उससे माफ़ी माँग लो, समय की यही जरूरत है।"

प्रधानाध्यापक महोदय का कक्ष...
अन्दर अकेले मास्टर साहब ज़मीन में सिर गड़ाए कुर्सी पर बैठे हुए हैं।
वातावरण में एक अज़ीब सी घुटन भरी बोझिल सी ख़ामोशी...
छेदी अन्दर प्रवेश करता है और हवा के एक तेज झोंके ने शर्मिन्दा होकर द्वार बंद कर दिए...

और फिर...

अब कलम को चाहिए कि यहीं थम जाए
"कई बार मौन की भाषा संवादों पर भारी पड़ जाती है|"

प्राइमरी शिक्षक क्या है ?


 


प्राइमरी शिक्षक एक ऐसा जीव है जो हरी/ लाल पट्टी वाली एक सरकारी इमारत में पाया जाता है। वह एक ऐसा कर्मचारी है जो मल्टीटास्क परफॉर्मर है जिससे सरकार उससे उसके मूल कर्तव्य यानि शिक्षण कार्य छोड़ अन्य सारे विभागों के वो कार्य लेती है जो सरकार को राजस्व उपलब्ध नही कराते हैं ।

ये वो कर्मचारी है जिसके अपने विभाग के अलावा चपरासी ,चौकीदार, सफाईकर्मी से लेकर जनप्रतिनिधि, ग्रामीण मतदाता यानि सारे लोग अधिकारी होते हैं।

ये वो जीव है जो अन्य लोगों से ज्यादा प्रभावी है यानि तनाव दूर करने वाला यानि जिसे भी तनाव महसूस हो वो किसी भी समय उसपर अपनी भड़ास निकल सकता है ।

ये वो इंजीनियर भी है जो बिना प्रशिक्षण के भवन निर्माण कराता है और उस निर्माण के लिये जीवनपर्यन्त जबाबदेह होता है।

ये वो मसाला है जिसे मीडिया कोई खबर न मिलने पर मनोरंजन समाचार की तरह प्रस्तुत कर सकती है

ये वो कर्मचारी है जिसके वेतन पर सबकी निगाह रहती है क्योंकि अन्य सारे कर्मचारी बिना वेतन के समाजसेवा करते हैं ।

 ये वो टेलरमास्टर है जो बच्चों को 200 रूपये में ग्वालियर सूटिंग के वातानूकुलित कपड़े उपलब्ध कराकर कमीशन खा जाता है।

 ये वो हलवाई है जो 4.16 रूपये में  फाईवस्टार होटल से भी बढ़िया भोजन उचित गुणवत्ता से भरपूर बच्चों को खिला सकता है और अपने घर के लिये धन एश्वर्य मे वृध्दि करता है।

ये वो शिक्षक है जो बच्चों के सामने विनती करता है और अभिभावक से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु बच्चों को विद्यालय जरुर भेजें चाहे बिना कॉपी पेन्सिल के  ही क्यों न हों और हाँ अगर स्नान न करे तो भी वहाँ
नहाने,बाल सँवारने व नाखून काटने आदि की व्यवस्था के साथ मैं उसे मनोरंजन शिक्षा भी  प्रदान करूँगा ।

ये विद्यालय नामक राजनीतिक संस्था का प्रभारी है जहाँ सारी राजनीतिक योजनायें ,वादविवाद ,स्वास्थ्य सेवायें आदि मुफ्त प्रदान की जाती हैं।

ये वो डाक्टर भी है जो सरकारी आयरन की गोली पूरे प्रिसक्रिप्सन के साथ ,पोलियो टीका ,जापानी इंसेफेलाइटिस आदि वितरित करता है और यदि उसका कोई साईडइफेक्ट हो जाय या रियेक्शन हो जाय तो भले ही उसका उसमें कोई प्रत्यक्ष भूमिका न हो तो भी सहर्ष जिम्मेदारी लेकर सहर्ष जेल जाने हेतु सदैव प्रस्तुत रहता है।
 
ये वो जादूगर है जो 5000/- रू वार्षिक मे विद्यालय के सारे खर्चे परीक्षा सामग्री समेत चला लेता है और उसके पश्चात भी अधिकारियों द्वारा चोर की उपाधि धारण करता है ।
   
5000/- वार्षिक में विद्यालय के  आकार आदि को ध्यान मे रखते हुये  बिरला व्हाईट सीमेन्ट व बर्जर पेण्ट से बारिश के मौसम को झेलते हुये भवन चमकाता है और न चमका पाया तो अयोग्यता की उपाधि धारण करते हुये चोरी नामक विशेष योग्यता को स्वीकार करता है।

 ये वो चींटी जैसा है जो डे-नाईट ,जाड़ा ,गर्मी व वर्षा कभी भी  बिना ओवरटाइम नि:स्वार्थ भाव से ड्यूटी हेतु 24 घण्टे उपलब्ध एवम् प्रतिबद्ध रहता है।
   
शिक्षको की तो एक और विशेषता है कि वो शाम को भी बी. एल. ओ (B.L.O) जैसी अद्भुत ड्यूटी निभा सकता है और बिना प्रमोशन , बिना शहरी भत्ता ,बिना अतिरिक्त वेतन के उपरोक्त सारी भूमिका का निर्वहन कर सकता है क्योंकि वो मुस्कराता है|

कुल मिलकर प्राईमरी शिक्षक की इतनी विशेषताऐं है कि कुछ लाईनों में इसके गुणों को लिखना वैसे ही है जैसे सूरज को दीपक दिखाना।

मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ !



शिक्षक हूँ, पर ये मत सोचो,
बच्चों  को  सिखाने  बैठा हूँ |
मैं   डाक   बनाने  बैठा  हूँ ,
मैं   कहाँ   पढ़ाने   बैठा हूँ !

कक्षा  में  जाने  से  पहले,
भोजन  तैयार  कराना है |
ईंधन का इंतजाम करना
फिर  सब्जी लेने जाना है,
गेहूँ ,चावल, मिर्ची, धनिया
            का हिसाब लगाने बैठा हूँ
            मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कितने एस.सी. कितने बी.सी.
कितने जनरल  दाखिले हुए
कितने आधार बने अब तक
कितनों  के  खाते  खुले हुए
बस यहाँ कागजों में उलझा
               निज साख बचाने बैठा हूँ
               मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कभी एस.एम.सी कभी पी.टी.ए
की मीटिंग बुलाया करता हूँ
सौ - सौ भांति के रजिस्टर हैं
उनको   भी   पूरा  करता हूँ
सरकारी  अभियानों में  मैं
              ड्यूटियाँ  निभाने बैठा हूँ
             मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

लोगों की गिनती करने को
घर - घर में  मैं ही जाता हूँ
जब जब चुनाव के दिन आते
मैं  ही  मतदान  कराता  हूँ
कभी जनगणना कभी मतगणना
              कभी वोट बनाने बैठा हूँ
              मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा हूँ ...

रोजाना  न  जाने  कितनी
यूँ  डाक  बनानी पड़ती है
बच्चों को पढ़ाने की इच्छा
मन ही में दबानी पड़ती है
केवल  शिक्षण  को छोड़ यहाँ
                 हर फर्ज निभाने बैठा हूँ
                 मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ ...

इतने  पर भी  दुनियां वाले
मेरी   ही  कमी   बताते  हैं
अच्छे परिणाम न आने पर
मुझको   दोषी   ठहराते हैं
बहरे  हैं  लोग  यहाँ  'अंशु'
             मैं  किसे  सुनाने बैठा  हूँ
             मैं कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ..
             मैं  नहीं  पढ़ाने  बैठा  हूँ..

श्रेय : उपलब्ध नहीं (यदि जानकारी हो तो सूचित करे )

जब बैंक कर्मी कुणाल चला करने राष्ट्र निर्माण



IDBI बैंक में मैनेजर के पद पर काम कर रहे कुणाल ने जब TET का फार्म भरा तो सभी सहकर्मियों ने मजाक उड़ाया।

‘अबे 45000 का जॉब छोड़ कर 10-12 हजार पर मास्टरी करने जायेगा?’
तब उसने अपने एक तर्क से सबका मुँह बन्द किया था कि "मै बचपन से ही शिक्षक बनना चाहता था"

प्राइमरी स्कूल में खादी की धोती और अद्धी का कुरता पहने मास्टर जी के घुसते ही उनका पैर छूने के लिए दौड़ते साढ़े तीन सौ बच्चोंकी भीड़ को देख कर उसे लगता कि दुनिया में ईश्वर के बाद यदि कोई है तो वो शिक्षक ही हैं।

उसे याद है कमला माटसाब कहते थे कि...
 ‘कुणाल..एक शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है और राष्ट्र बनाता है।’
तभी से उसने ठान लिया था कि बड़ा हो कर वह भी शिक्षक ही बनेगा।

उसके ग्रेजुएशन के बाद नियोजन इकाइयों में व्याप्त भ्रष्टाचार ने उसके शिक्षक बनने की संभावनाओं को जब ख़ारिज कर दिया तो वह MBA कर के लखनऊ में बैंक मैनेजर हो गया। पर जब TET के रूप में एक उम्मीद दिखी तो उसके सपने फिर उड़ान भरने लगे। उसके जैसे कामयाब विद्यार्थी के लिए यह परीक्षा मुश्किल नहीं थी और अगले एक साल में ही वह सीवान के प्रखंड नियोजन समिति के ऑफिस में नियुक्ति पत्र लेने के लिए खड़ा था। नियुक्ति पत्र के वेतन वाले कालम में 10500 लिखा देख कर वह मुस्कुराया। उसे पता था कि तनख्वाह में अंको की संख्या में कमी उसके हौसलों को नहीं रोक पायेगी। उसे राष्ट्र निर्माता बनना था।

घर से 14 KM दूर मध्य विद्यालय शक्ति नगर में योगदान के दिन ही उसने प्रधानाध्यापक से निवेदन कर सबसे ऊँचे 8वें क्लास के क्लास-टीचर का प्रभार संभाला और जी जान से जुट गया। पहली घंटी अंग्रेजी की थी और उसके होश उड़ गए जब उसने देखा कि किसी बच्चे को अभी ग्रामर का A B C D भी सही से पता नहीं।
उसने लिखवाने के लिए कॉपी निकलवाई तो आधे से ज्यादा बच्चों के पास कॉपी नहीं थी। वह कुर्सी में धस सा गया। अचानक शोरगुल सुनकर वह बाहर निकला तो देखा कि एक अभिभावक आये थे और प्राधानाध्यापक से उलझे हुए थे।

अभिभावक  - ‘हमको जात पात मत पढ़ाओ महटर् हमारे बेटे की छतरबिरति काहे नहीं मिली ई बताओ..’

प्रधानाध्यापक - ‘अरे मैं कितनी बार कह चूका कि सामान्य कोटि के छात्र को छात्रव्रिति नहीं मिलती..’

अभिभावक - ‘अरे चुप सरवा..करेगा तमासा कि देगा पैसा चुप चाप!’

कुणाल के अंदर का मैनेजर जग गया। वह वहाँ क़रीब जाकर बोला - 'अरे सर बैठिये तो हम आपको सब…'

अभिभावक - ‘अरे चुप.. तू कौन है रे? ई कवन शिक्षा मित्र आया है मास्टर?’

कुणाल -  ‘सर हम शिक्षा मित्र नहीं, हम TET से आये हैं।’

अभिभावक - ‘चुप सरवा… दस हजरिया मास्टर शिक्षा मित्र नहीं तो और क्या है रे? साला पढ़े का ढंग नही मास्टरी करेंगा।'

कुणाल चुपचाप अपने क्लास में घुस गया।

इन दिनों उसने देखा कि शिक्षकों के प्रति सबके मन में नफरत है।
ठीक ठाक घरों के बच्चे सरकारी विद्यालय में नहीं आते और जो आते हैं उनके पास कॉपी पेन तक नही होता। विद्यालय में आते अभिभावकों में उसे एक भी ऐसा नहीं मिला जो बच्चे की पढ़ाई के बारे में शिकायत ले कर आया हो। जो भी आते थे वो MDM को लेकर या पोशाक या छात्रवृति की राशि के लिए ही गाली देते आते। जिन लोगों को ठीक से बोलना नहीं आता वे भी मास्टर के नाम पर मुह बिचकाते थे।

‘कौन मास्टर? शिक्षा मितर… 
ओओ भक..’

पर उसने सोचा, ये मुर्ख मेरे हौसलों को नहीं तोड़ पाएँगे। तीन महीने हो गए थे उसे ज्वाइन किये हुए; पर उसने देखा कड़ी मेहनत करने के बावजूद बच्चों में आपेक्षिक सुधार नहीं हुआ था। एक दिन गुस्साके कुणाल ने कई छात्र/छात्रों को पीट दिया। पर गलती यह हुई कि पिटाने वालों में एक छुटभैये दलित नेता का बेटा था। फिर क्या था, अगले दिन अख़बार की हेडलाइन थी, ‘शिक्षामित्र ने दिखाई क्रूरता,छात्रों को दौड़ा कर पीटा।’

उस दिन उसके विद्यालय में 4 पत्रकारों के साथ नेताजी मौजूद थे अपने चालीस पचास समर्थकों के संग। सबके सुर एक ही था ‘सब साले दस हजरिया मास्टर अन्हरा हो गए हैं'। पढ़ाने का ढंग नहीं बस मारते रहते है। आज साले को बिना हाथ पैर तोड़े जाने नहीं देना है।’

किसी तरह प्रधानाध्यापक ने कुणाल को पीछे के दरवाज़े से बाहर कर निकाले। कुणाल 40-50 की स्पीड से पीछे की ओर से भागता हुआ 14 किमी बाद घर पहुच कर सीधे बिछावन पर गिर गया। उसे याद आया, बैंक से रिजाइन देते समय उसके रीजनल मैंनेजर ने कहा था, ‘कुणाल मैं जानता हूँ.. तुम नहीं रह पाओगे वहाँ.. जब राष्ट्रनिर्माण से मन भर जाये तो मुझे बताना.’ तुम्हारे जैसे अच्छे कर्मचारियों के लिए यहाँ हमेशा जगह ख़ाली रहेगी।
फिर उसने तकिये से अपने माथे का पसीना पोंछा और मोबाइल निकाल कर नंबर डायल किया- RM IDBI

" शिक्षकों‬ की वास्तविक पीड़ा "

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

सहयोग नही कर सकते तो कम से कम अवरोध न पैदा कीजिये


आज उत्तर प्रदेश में बड़े, छोटे, निरहू, घुरहू सब बिना हाथ धोये प्राइमरी स्कूल के पीछे पड़े हैं,

पता नही कौन सी ब्यार चली है?

समझ नही आ रहा। जिन्होंने कभी कॉलेज नही देखा, वो सुबह स्कूल चेक करने निकलतें है।
अगर सरकार को लगता है कि प्राइमरी स्कूल पर पैसा  बेकार खर्च हो रहा है तो प्राइमरी स्कूल बंद क्यों नही कर देती सरकार ?

देश का प्रधानमंत्री झाड़ू लगाए तो वाह वाह,
बच्चा इसमें हाँथ बटा दे तो मास्टर ससपेंड !


खुले में शौच से मुक्ति के लिए सुबह 4 बजे गांव में टीम तैनात, कि कोई जंगल मे कर न पाए, अरबों रुपए स्वच्छ भारत मिशन में लगाए गए,

माननीय प्रधानमंत्री जी एक टीम स्कूल के लिए भी बना दीजिये, कि गांव में कोई बच्चा स्कूल समय मे घूमता नही दिखे |

  • खाना बनवाये मास्टर
  • कपड़ा सिलवाए मास्टर
  • फल बटवाये मास्टर
  • दूध पिलाये मास्टर
  • झाड़ू लगाए मास्टर
  • स्कूल के कमरे बनवाये मास्टर
  • स्कूल पुतवाये मास्टर
  • किताब बांटे मास्टर
  • चुनाव कराए मास्टर
  • पेट के कीड़े मारे मास्टर
  • पोलियो मिटाए मास्टर
  • जनगणना करे मास्टर
  • बोर्ड एग्जाम कराए मास्टर
  • प्रशिक्षण भी कराए मास्टर


अब बताओ पढ़ाई क्या क्या कराएगा मास्टर !
और तुलना प्राइवेट स्कूल से , कि वहां पढ़ाई बहुत अच्छी होती है।


प्राइवेट विद्यालयों से तुलना

वहां मां बाप 2 रोटी पेट मे और 2 टिफिन में रखकर उसको स्कूल भेजकर आतें है और छुट्टी से 10 मिनट पहले लेने पहुच जाएं है और यहां मंजन तक नही कराते और भेज देतें है जाओ मास्टर है स्कूल में तुमको पालने के लिए |

कभी किसी डॉक्टर से कहा गया कि पहले गांव में जाकर मरीज ढूढ़कर लाओ और फिर उसका इलाज करो। किसी अधिकारी से नही कहा गया कि गांव में जा के देखो कि क्या परेशानी है। फिर काम करो। वहां तो सीधा फरमान जारी होता है कि  10 बजे से 12 बजे तक अधिकारी एसी में अपने कार्यालय में बैठकर सबकी समस्याएं सुनेंगे और आफिस में ही जांच करेंगे, फरियादी उनके पास आयेगा,
इतना ही नहीं प्राइमरी का मास्टर पहले आपके लाड़ले को बिस्तर से उठाए और अपने साथ स्कूल ले जाये
और वहां नहला धुलाकर तैयार कर नाश्ता कराये और फिर पढ़ाये और आपके घर छोड़ने आये |


शिक्षकों की तन्ख्वाय 

अध्यापक की सैलरी पर सभी ताना देतें है,
कभी किसी बाबू पर भी उंगली उठाई है किसी ने ?
उनको तो बाबू जी 😡
(क्योकि बाबूजी बिना दुत्कारे और रिश्वत लिए कोई काम नहीं करते)

अगला आधा महीना बीतने तक भी वेतन के दर्शन नहीं होते शिक्षक को


शिक्षकों की छुट्टी

साल में कम से कम 10 रविवार को भी स्कूल में रहता है मास्टर, लेकिन कहते हैं मास्टर की छुट्टी बहुत हैं
उनकी छुट्टियों की कोई गणना नहीं करता जिनकी त्योहारों के साथ-साथ प्रत्येक शनिवार और रविवार की भी रहती है |


इतना ख्याल तो मास्टर कभी अपने बच्चों का भी नहीं रख पाता !
स्कूल में कोई जानवर बाँधता है,
कोई अनाज रखता है वगैरह-वगैरह और झाड़ू लगाए मास्टर।


अगर आप सहयोग नही कर सकते तो कम से कम अवरोध न पैदा कीजिये |
(एक शिक्षक की व्यथा)