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शनिवार, 27 मई 2017

नयी पेंशन योजना व पुरानी पेंशन योजना में भिन्नता



हमारे बहुत से साथी नयी पेंशन योजना व पुरानी पेंशन योजना में अन्तर नहीं जानते आज मैं आप को इसका अन्तर स्पष्ट करने की कोशिश करूगाँ यदि कोई बिंदु गलत अथवा स्पष्ट ना हो याँ कोई बिंदु छूट रहा हो तो कमेन्ट करें-


क्रमतथ्यपुरानी पेंशननयी पेंशन (N.P.S.)
1G.P.F.पुरानी पेंशन पाने वालों के लिए जी0 पी0 एफ0 सुविधा उपलब्ध है |नयी पेंशन योजना में जी0 पी 0एफ0 नहीं है ।
2.कटौतीपुरानी पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं होती है |नयी पेंशन योजना में वेतन से प्रति माह 10%की कटौती निर्धारित है ।
3.पेंशनपुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेन्ट के समय एक निश्चित पेंशन( अन्तिम वेतन का 50%) की गारेण्टी है |नयी पेंशन योजना में पेंशन कितनी मिलेगी यह निश्चित नहीं है यह पूरी तरह शेयर मार्केट व बीमा कम्पनी पर निर्भर है ।
4.पेंशन प्रदानकर्तापुरानी पेंशन सरकार देती है |नयी पेंशन बीमा कम्पनी देगी ।
5.विवादविवाद की स्थिति में हमे सरकार से लड़ना होगा |यदि कोई समस्या आती है तो हमे सरकार से नहीं बल्कि बीमा कम्पनी से लडना पडेगा ।
6.ग्रेच्युटीपुरानी पेंशन पाने वालों के लिए रिटायरमेंट पर ग्रेच्युटी( अन्तिम वेतन के अनुसार 16.5माह का वेतन) मिलता है |नयी पेंशन वालों के लिये ग्रेच्युटी की कोई व्यवस्था नहीं है ।
7.डेथ ग्रेच्युटीपुरानी पेंशन वालों को सेवाकाल में मृत्यु पर डेथ ग्रेच्युटी मिलती है जो 7पे कमीशन ने 10लाख से बढाकर 20लाख कर दिया है |नयी पेंशन वालों के लिए डेथ ग्रेच्युटी की सुविधा समाप्त कर दी गयी है ।
8.पारिवारिक पेंशनपुरानी पेंशन में आने वाले लोंगों को सेवाकाल में मृत्यु होने पर उनके परिवार को पारिवारिक पेंशन मिलती है |नयी पेंशन योजना में पारिवारिक पेंशन को समाप्त कर दिया गया है ।
9.महँगाई पुरानी पेंशन पाने वालों को हर छ: माह बाद महँगाई तथा वेतन आयोगों का लाभ भी मिलता है |नयी पेंशन में फिक्स पेंशन मिलेगी महँगाई या वेतन आयोग का लाभ नहीं मिलेगा यह हमारे समझ से सबसे बडी हानि है ।
10.लोनपुरानी पेंशन योजना वालों के लिए जी0 पी0 एफ0 से आसानी से लोन लेने की सुविधा है|नयी पेंशन योजना में लोन की कोई सुविधा नही है( विशेष परिस्थिति में कठिन प्रक्रिया है केवल तीन बार वह भी रिफण्डेबल) ।
11.G.P.F.पर आयकरपुरानी पेंशन योजना में जी0 पी0 एफ0 निकासी( रिटायरमेंट के समय) पर कोई आयकर नहीं देना पडता है |नयी पेंशन योजना में जब रिटायरमेंट पर जो जो अंशदान का 60%वापस मिलेगा उसपर आयकर लगेगा|
12.ब्याज दरजी 0पी0 एफ0 पर ब्याज दर निश्चित है |एन0 पी0 एस0 पूरी तरह शेयर पर आधारित है ।


साथियों आशा है आप इस अन्तर को समझेगें और अपने भले -बुरे का विचार जरूर करेगें ।

बुधवार, 3 मई 2017

पानी जड़ में दीजिए, पत्तियों पर नहीं



इतना तो लोग आतंकवादियों के पीछे नहीं पड़ते जितना आज शिक्षकों के पीछे पड़े हैं।
शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं आता, आता है तो पढ़ाता नहीं, खाना अच्छा नहीं बनवाता, फल नहीं खिलाता, झाडू नहीं लगाता, दीवार पर लोगों द्वारा थूकी गयी पीक साफ नहीं करता आदि आदि कान्वेंट स्कूलों से सरकारी स्कूलों की तुलना की जाती है कि वहाँ का बच्चा पढ़ने में तेज होता है।
                       मीडिया भी कमियाँ निकालता है तो केवल शिक्षकों की। कभी फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के द्वारा तो कभी स्वयं संपादित चित्र द्वारा।

सबसे पहले तो ये जान लें कि शिक्षक का काम केवल पढ़ाना होता है शेष काम वो दबाव में करता है। 4 रूपया 13 पैसे में भोजन कराता है। जाँच करने वाला केवल ये देखता है कि फलाने अध्यापक ने एम डी एम में 10 बच्चे ज्यादा चढ़ाये हैं उसे ये नहीं पता कि पिछले महीने कोटेदार ने जो 50 किलो का बोरा दिया था उसमें खाद्यान्न केवल 35 किलो था और तो और दो बोरी गेहूँ सड़ गया। कौन देगा इसका हिसाब?? एक शिक्षक ने बच्चे से झाडू क्या लगवा लिया सस्पेंड हो गया। बच्चे को पीट दिया सस्पेंड हो गया।पूरे भोजन में एक छोटा सा आवारा कीड़ा आ गया तो सस्पेंड हो गया। सर पर लटकती तलवार से अपनी गर्दन बचाते हुए किसी प्रकार दिन काटता है।सब कुछ से बचा तो बच्चों की संख्या कम क्यों है उसका जवाब दे।अरे भाई शिक्षक पर अपना शक्ति प्रदर्शन करके सुधार नहीं हो सकता।अगर सुधार करना है तो पावर का केन्द्र शिक्षक को बना दो।
गाँव के सफाईकर्मी को वेतन देने से पहले शिक्षक का प्रमाणपत्र अनिवार्य किया जाय कि उसने विद्यालय में महीने भर साफ सफाई किया है अथवा नहीं।

अभिभावक को किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ देने से पूर्व शिक्षक का प्रमाण पत्र अनिवार्य किया जाय किया उसके बच्चे नियमित रूप से विद्यालय आते हैं अथवा नहीं।

जनप्रतिनिधियों से कहा जाय कि वे शिक्षकों द्वारा बताई कमियों को अपनी निधि से दूर करें।
कान्वेंट से तुलना न करें और अगर करें तो गाँव के गरीब अभिभावकों को भी कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के बराबर करें, हर स्तर पर।

शिक्षकों को कन्वेंस की सुविधा उपलब्ध करायी जाये या फिर उन्हें आवास उपलब्ध कराये जाँय।
मत भूलिए कि यही शिक्षक पीठासीन बनकर चुनाव जैसा महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करवाता है ।जनगणना में सहयोग करता है।इतने महत्वपूर्ण कार्यों को निर्विघ्न सम्पन्न कराने वाले शिक्षक पर दोषारोपण उचित नही है।सच तो ये है कि दोष शिक्षक का नहीं व्यवस्था का है। बायोमीट्रिक और सीसीटीवी कैमरा भी लगवा दीजिए किन्तु उसे राज्य कर्मचारी का दर्जा और सुविधाएँ भी दीजिए। पुरानी पेंशन बहाल कीजिए ताकि शिक्षक दुकान खोलने के लिए मजबूर नहीं हो।अंत में केवल इतना ही कहूँगा कि

पानी जड़ में दीजिए,पत्तियों पर नहीं।

थोथी दलीलों से काम नहीं चलता चार दिन गाँव के प्राइमरी में तीन कक्षाओं के बच्चों को एक साथ पढ़ाकर देखिए सब समझ में आ जायेगा ।

'जय हिन्द जय शिक्षक'

मंगलवार, 2 मई 2017

व्यवस्था ज्यादा दोषी या शिक्षक ?



एक पोस्ट पर किसी सज्जन ने लिखा की अध्यापक महीना बांध लेते है और स्कूल नही जाते यद्धपि उन्होंने ठीक लिखा

बस उनको लिखना ये था की 'कुछ' शिक्षक महीना बांध लेते है ये सही भी है ऐसा हो भी रहा है इसमें कोई शक नही कुछ शिक्षक ऐसा कर रहे है एन.सी.आर(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) से आने वाली काफी शिक्षिका ऐसा कर रही है और ये निश्चित रूप से अपराधिक बात है राजकोष का नुकसान है और साथ ही साथ उन बच्चों के प्रति भी गलत हो रहा है जो विद्यालय शिक्षा लेने आते है।

पर सवाल ये है की जो शिक्षक ऐसा कर रहे है वो तो दोषी है ही साथ वो लोग भी दोषी है जो ऐसा होने दे रहे है, बिना अधिकारी के ये सम्भव नही की कोई स्कूल ना आये और उसे घर बैठे वेतन मिलता रहा |
अध्यापक ऐसी हरकत तब ही कर पाते है अथवा कर रहे है जब वो अपने अधिकारियो को इस बात के लिए निश्चित धनराशि रिश्वत के रूप में दे कर आते होंगे इसलिए दोषी वो व्यवस्था भी  है जिसका वो लाभ रहे है |

जिन भी स्कूलो में ऐसा हो रहा है जिन भी ब्लाक में ऐसा हो रहा है वहां के अधिकारियो पर कार्यवाही हो
जो भी लोग ऐसी व्यवस्था बनवाने में दोषी है उन पर भी सख्त कार्यवाही होनी चाहिए |

जो शिक्षक अपने दायित्व सही से निभा रहे है उनके लिए ऐसे आरोप निश्चित रूप से हतोत्साहित करने वाले है समाज में उनकी प्रतिष्ठा को ऐसे लोगो की वजह से हानि पहुँचती है|

काफी दिन से शिक्षको को लेकर अनाप-शनाप कहा जा रहा है इसलिए ये पोस्ट लिखने की जरूरत पड़ी यदि ऐसे कुछ शिक्षको की वजह से सबको सुनना पड़े तो जो शिक्षक कार्य अच्छा कर रहे है उनकी प्रशंसा भी की जानी चाहिए। बेसिक में कुछ शिक्षको अधिकारियो की वजह से सभी को एक जैसा मान लेना गलत है |

 कार्यवाही सभी गलत लोगो पर होनी चाहिए चाहे वो शिक्षक हो अथवा अधिकारी

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

गुरु थे, कर्मचारी हो गए हैं ।


गुरु थे, कर्मचारी हो गए हैं ।
दांतों फंसी सुपारी हो गए हैं ।।
महकमा सारा हमको ढूँढता है।
हम संक्रामक बीमारी हो गए हैं ।।
इसे चमचागिरी की हद ही कहिये।
कई शिक्षक अधिकारी हो गए हैं ।।
अकेले चार सौ को हैं नचाते।
हम टीचर से मदारी हो गए हैं ।।
उन्हें अब चाॅक डस्टर से क्या मतलब ।
जो ब्लॉक/संकुल प्रभारी हो गए हैं ।।
कमीशन इसमें,उसमें, इसमें भी दो।
हम दे-दे कर भिखारी हो गए हैं ॥
मिला है एम डी एम का चार्ज जबसे ।
गुरुजी भी भंडारी हो गए हैं ॥
बी ई ओ ऑफिस को मंदिर समझ कर ।
कई टीचर पुजारी हो गए हैं ॥
पढ़ाने से जिन्हें मतलब नहीं है ।
वो प्रशिक्षण प्रभारी हो गए हैं ॥
खटारा बस बनी शिक्षा व्यवस्था ।
और हम लटकी सवारी हो गए हैं ।।

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

व्यवस्था के नाम एक परिषदीय शिक्षक का खुला पत्र

 


प्रिय व्यवस्था,
सादर नमस्कार!

आजकल देश में खुली चिट्टी लिखने का नया अध्याय शुरू हुआ है, नामी लोग एक दूसरे के नाम खुला पत्र लिख रहे हैं पर हम ठहरे अध्यापक हमें खुलकर लिखने का ज्यादा अधिकार नहीं मिला है फिर भी बात जब हद से बढ़ जाती है और दिमाग पर असर करने लगती है तो लिखना आवश्यक हो जाता है पर हम अपनी चिट्ठी किसके नाम लिखे ये निश्चित नहीं हो पाया क्योंकि हमारा गौरव गिराने में कई लोग बराबर के हक़दार हैं इसलिए ये चिट्ठी व्यवस्था के नाम लिख रहे हैं।

        सबसे पहले तो उन मीडिया कर्मियों के बारे में लिखना जरुरी है जो विद्यालय में जबरन घुसकर सरकारी शिक्षा की छीछालेदर करना अपना परम धर्म समझते हैं। आपको अपना यह धर्म निभाना भी चाहिए क्योंकि यह आपके पेशे और ड्यूटी से जुड़ा प्रश्न है पर आप दिल पर हाथ रखकर बताना कि आपको आज तक कोई ऐसा स्कूल नहीं मिला जिसमे आपको सभी व्यवस्थाएं चाक चौबंद मिली हों और बच्चे होशियार हों, तो आपकी ऐसी कौन सी मज़बूरी रही जिसके कारण आपने उस विद्यालय का समाचार नहीं दिखाया और छापा, शायद बुराई दिखाना ही आपके पेशे का प्रमुख कर्त्तव्य है? पर  कभी जनता को यह भी बता देते कि कि 5 कक्षाओं में पढ़ाने के लिए 5 अध्यापकों की जरुरत होती है। स्कूल की सफाई के लिए स्वीपर और चपरासी की जरुरत होती है। ऑफिस के कार्य के लिए क्लर्क की जरुरत होती है। कभी इस बात को भी जान लेते कि हिंदी विषय से भर्ती अध्यापक एकल विद्यालय में मजबूरी में विज्ञान और अंग्रेजी कैसे पढ़ा लेता है। पर आप तो मन बनाकर निकले थे कि आज शाम तक 10 स्कूल का जनाजा निकालकर उनकी खबर अपने अख़बार में छापनी है या न्यूज़ चैनल पर दिखानी है। दुःखद है कि हमारे कुछ साथी आपको सन्डे मंडे नहीं सुना सके, यह बड़े शर्म की बात है, हम भी यह जानने के बाद शर्म के मारे अपने पास पड़ोस में निगाह नहीं मिला पा रहे है। पर आप तो खोजी पत्रकार है जरा पता लगा के बताइये कि इनकी भर्ती किसने की और अगर ये विभाग में है तो क्या ये हम शिक्षकों की गलती है और इनकी अंकतालिका पर अच्छे प्रतिशत होने के बाद भी ये प्राथमिक ज्ञान नहीं रखते हैं तो उस यूनिवर्सिटी और स्कूल पर ऊँगली उठाने की बजाय आप हमारी पूरी कौम की छीछालेदर पर क्यों उतारू हैं।

    प्रिय प्रशासन जरा आप यह भी बता दें कि पढ़ाने के लिए नियुक्ति देने के बाद
  • जनगणना , 
  • चुनाव, 
  • बी एल ओ , 
  • पल्स पोलियो , 
  • मतदाता पुनरीक्षण, 
  • बृक्षारोपण,
  •  स्वास्थ्य परीक्षण, 
  • मध्यान्ह भोजन निर्माण
  • वितरण, 
  • सांख्यिकी गणना 
आदि के लिए क्या हम आपके विभिन्न विभागों से आग्रह करने गए थे या इन विभागों के काम निपटाने का आदेश हमारी सेवा नियमावली का हिस्सा है। जरा आप यह भी बता दें कि जिस निजी स्कूल में एक बच्चे का महीने भर  जितना जेबखर्च होता है उतने खर्च में आप वर्ष भर हमसे एक स्कूल क्यों चलवाते हैं। स्कूल की साफ सफाई की फोटो को बड़ा करके छापने और प्रधानाध्यापक को निलंबित करने से पहले काश आप यह भी जान लेते कि पिछले कितने दिनों से विद्यालय में सफाईकर्मी नहीं आया है और आपने कितने सफाईकर्मियों को निलंबित किया। हमारे टॉयलेट में झाँकने से पहले और उन्हें गन्दा होने का प्रश्न उछालने से पहले यह भी जान लेते कि गांव का स्वीपर इन्हें साफ नहीं करता।

      हम भी चाहते है कि हमें पढ़ाने का अवसर मिले पर आप हमें पढ़ाने कब दे रहा है। रात में सोते समय बच्चों के लिए कार्ययोजना बनाने की बजाय दिमाग में सब्जी मंडी से सब्जी का तनाव लेकर सोना पढ़ता है और सब्जी मंडी में हमारे घुसते ही 10 रुपये की लौकी 15 की हो जाती है और दुकानदार कटाक्ष करता है कि मास्टर बहुत कमाई है तुम्हारी। सन्डे की शाम को फल मंडी से एक बोरी केले लादकर लाने में पसीने छुट जाते है और डर लगता है कि अगर मोटरसाइकिल फिसल गयी तो राम नाम सत्य ना हो जाए। बुधबार की रात दूध के तनाव में निकल जाती है और रोज मिलावटी दूध की शिकायत की खबरे देखकर बच्चों को दूध पिलाते वक्त कलेजा मुँह को आ जाता है डर लगता है कि अगर एक भी बच्चा वीमार हुआ तो हमारे खुद के बच्चे भूखों मर जायेगे। जरा आप बताइये कि आपने दूध की शुद्धता नापने का कोई यंत्र कभी हमें दिया है? मिड डे मील खाने से बीमार हुए बच्चों की खबर सुन सुन कर हम मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार हो गए हैं, जब तक मध्यान्ह भोजन के बाद बच्चे सकुशल घर नहीं चले जाते तब तक हम डरे सहमे से रहते हैं क्योंकि बाजार की सब्जी में कौन सा इंजेक्शन लगाया गया है इसकी रोज फोरेंसिक जांच कर पाना हमारे बस में नहीं है। अक्सर हमारी गाड़ी पर पीछे सिलेंडर बंधा पाया जाता है। कभी कभी आटा की बोरी और सब्जी का थैला।



    आप  हमें वोट बनाने को कहते हो और गांव में प्रधानी चुनाव के संभावित  राजनैतिक दावेदार हमारे दुश्मन बन जाते हैं। रोज हम गलत वोट ना बढ़ाने के कारण गरियाये जाते हैं। पर आपको को तो काम चाहिए वो भी समय पर और बिना किसी त्रुटि के। महीनो वोट वनाने के चक्कर में कभी कभी हम अपने प्रिय शिष्यों के नाम तक भूल जाते हैं और कभी कभी तो हमें यह भी याद नहीं रह पाता कि हमने अपने बच्चों को इस साल कितने अध्याय पढ़ाये हैं।

   कभी कभी रंगाई पुताई समय से कराने के चक्कर में पुताई कर्मियों की भी जी हुजूरी करनी पड़ती है 7 हजार में इतना बड़ा विद्यालय पुतवाने के बाद विद्यालय की बॉउंड्री पर बैठे लड़के पूछते हैं मास्टर कितने बच गए तो कहना पड़ता है कि नौकरी बच गयी बस।बरसात की घास छोलने से लेकर भवन की झाड़ू तक की जबाबदेही हमारी ही है पर अगर हमारे बच्चे हमारा साथ ना दें तो हमारी जिंदगी मास्टर की बजाय सफाईकर्मी बनकर ही गुजर जाए।

     इसी बीच परीक्षा आ जाती है साहब कहते हैं कि बिना पैसे के करा लो, हमें परीक्षा के लिए कक्ष निरीक्षक तक नहीं मिलते हैं हमारे बच्चे 1 रूपये की कॉपी तक नहीं खरी पाते है, पर साहब कहते हैं कि बच्चे फेल नहीं होने चाहिए। अब जो बच्चा मामा के घर चला गया है उसको कैसे पास कर दें,हमारा दिल तो गवारा नहीं करता है पर साहब  कहते है कि हमें शतप्रतिशत रिजल्ट चाहिए।

         अधिकांश निरीक्षण में हमारे बच्चों की संख्या कम पायी जाती जिस पर हमें हमारे बच्चों के सामने ही सार्वजानिक रूप से बेइज्जत कर दिया जाता है पर कभी बच्चों से भी पता कर लो कि वो कहाँ है। कभी हमारे साथ हमारे बच्चों के घर भी चलो। जिस बच्चे का पिता दारू के नशे में धुत रहता हो तो वह अपनी माँ के साथ मजदूरी करे या स्कूल आये। बिना ज़मीन बाला भूमिहार मजदूर फसल के समय अपने पूरे परिवार के साथ वर्ष भर जीवन यापन लायक पैसे जोड़े या बच्चे स्कूल भेजे। अपने बच्चों के स्कूल से आये एक फोन पर हर काम को रोककर स्कूल पहुँचने बाले लोग काश यह भी जान पाते कि हमारे यहाँ नाम लिखाने के लिए हमें हर वर्ष घर घर बच्चे खोजने पढ़ते है महीनों उनके माता पिता से अनुरोध करना पड़ता है कि आप अपने बच्चों को कापियां दिला दें हफ़्तों गायब रहने और लगातार सूचना भिजवाने के बाद स्वयं ही खेत पर जाकर बच्चों और उनके पिता से अनुरोध करना पड़ता है कि आप ऐसे खेत पर काम करवाने की बजाय स्कूल भेजें। पर उन अभिभावक का दर्द भी जायज है आपने उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया नहीं है और भविष्य में पढ़कर उनके बच्चों को रोजगार देने के कोई संकेत आपके पास हैं नहीं।

      लोग तंज़ कसते हैं कि पहले सरकारी स्कूल के बच्चे अफसर बनते थे पर शायद आप भूल जाते हैं कि तब कृष्ण और सुदामा के लिए एक ही स्कूल होता था अब सब कृष्णों के पिता ने मिलकर अपने राजसी स्कूल खोलकर उनमे प्रवेश ले लिया है और सुदामा को जानबूझकर अल्पसुविधा बाले खैराती भवन में पढ़ने को मजबूर किया है। शिक्षा के नाम पर 3 प्रतिशत अतिरिक्त कर्ज वसूलने के बाद भी आप इन गरीबों के स्कूल में पूर्ण सुविधा नहीं दे पा रहे हैं या जानबूझकर नहीं देना चाहते ये आज तक समझ में नहीं आया काश वो कृष्ण जो कभी इन स्कूलों में पढ़कर आईएएस अफसर (राजा) बन गए वो ही लौटकर अपने गांव के गरीबों को कुछ सुविधा उपलब्ध करवा देते।पर शायद समाज के रसूख बाले लोगों को अपने कृष्ण को गरीब सुदामा के साथ पढ़ाना नागवार गुजरता है।



        जो लोग हम पर उंगलियां उठाते है वो जरा ये भी बता दें कि उन्होंने कब हमारी मदद के लिए हाथ बढ़ाया। क्षेत्र के सांसद और विधायक जी ने कितने स्कूल में अपनी सांसद और विधायक निधि से बच्चों के हित में काम करवा दिया। यहाँ तो जो चंद सरकारी मदद मिलती है उसमे भी ग्राम प्रधान अपनी नजर गड़ाये रहते हैं।कभी आप यह भी बता दें कि अच्छा कार्य करने बाले सरकारी मास्टर के लिए कभी आप लोगों ने कोई सम्मान समारोह आयोजित कराया हो जबकि निजी स्कूल के प्रिंसिपल को आप अपने बगल से बिठाकर खुश नजर आते है क्योंकि वह आपके बच्चों के स्कूल के प्रिंसिपल हैं। यहाँ तो हमें हर आठवें दिन अपने प्रधान के देहरी पर हाजरी देनी पढ़ती है और प्रधानिन जोर से आवाज देती हैं कि सुनो जी वो कलुआ के मास्टर फिर आ गए। प्रधान जी भी हमें उतनी ही तवज्जो देते हैं जितनी वो गांव के कलुआ हरिया और मातादीन को देते हैं। किसी अन्य विभाग का बाबू और चपरासी हमें हड़काने चला आता है क्योंकि हमने उसके विभाग के कार्य समय से नहीं किये।

      समाज का हर तबका हमारे वेतन को लेकर परेशान है पर हमारा काम इतना आसान नहीं है जितना आप समझते हैं और अगर आपको लगता है कि बच्चों के मन की स्लेट पर लिखना इतना आसान है  तो 6 महीने अपने बच्चे को खुद पढ़ाकर देखिये। आखिर आप भी तो पढ़े लिखे हैं और इतने तो पढ़े ही होंगे कि कक्षा 1 के छात्र को पढ़ा सकें। सरकारी स्कूल में पैदा की गयी प्रतिकूल परिस्तिथियों में शिक्षण बहुत कठिन पर हम इन स्तिथियों के लिए भी सदैब तैयार है पर आप हमें पढ़ाने तो दो। विभिन्न विभागों के काम कर कर के कभी कभी हम स्वयं भी भ्रमित हो जाते हैं कि आखिर हमें वेतन किस बात का मिल रहा है रोज रोज गांव में नया काम लेकर पहुँचने पर कभी कभी बुजुर्ग पूछ लेते हैं कि लल्ला का बेचन आये हो।

     वास्तव में अपनी इस वर्तमान दशा के लिए हम कतई दोषी नहीं हैं पर सारा दोष हमारे मत्थे मढ़कर आप सब अपने को पाक साफ साबित कर चुके हैं आज आपको भले ही अध्यापक से कई काम लेकर ख़ुशी महसूस हो रही हो और जिला प्रशासन सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए अपनी पीठ थोक रहा हो पर भविष्य में यह समाज केवल आपकी नीतियों की बजह से अशिक्षित रह जायेगा और बदनामी हमारी होगी।

आपका
एक परिषदीय अध्यापक

गुरु जी, छेदी और RTE की धाराएँ


 

कक्षा छठवीं के छात्र छेदी ने छत्तीस की जगह बत्तीस कहकर जैसे ही बत्तीसी दिखाई, गुरुजी ने छड़ी उठाई और मारने वाले ही थे कि..

छेदी ने कहा...- "खबरदार मास्टर साहब!! अगर मुझे मारा तो!!! मैं गिनती नहीं जानता मगर आरटीई की धाराएँ मैं अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे गणित में नहीं, हिन्दी में समझाना आता है।"

गुरुजी चौराहों पर खड़ी मूर्तियों की तरह जड़वत हो गए। जो छेदी कल तक बोल नहीं पाता था, वो आज आँखें दिखा रहा है और मेरी बची खुची इज्ज़त की पोटली में छेद किए जा रहा है।

शोरगुल सुनकर प्रधानाध्यापक महोदय भी उधर आ धमके। कई दिनों से उनका कार्यालय से निकलना ही नहीं हुआ था। वे हमेशा विवादों से दूर रहना पसंद करते थे। वे अपने से वरिष्ठ अधिकारियों एवम् अफसरों से बनाकर चलना बख़ूबी जानते थे। इसी कला की निपुणता के कारण वे कई वर्षों से इसी विद्यालय में कुल्फी की तरह जमे हुए थे। इसलिए उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी छोड़ दिया था।

(खैर...आते ही उन्होंने छड़ी को तोड़ कर बाहर फेंका और..)
 प्रधानाध्यापक  - "सरकार का आदेश नही पढ़ा मास्टर साहब आपने? आप पर प्रताड़ना का केस दर्ज हो सकता है। रिटायरमेन्ट नज़दीक है आपका!! निलम्बन की मार पड़ गई तो पेन्शन के फ़ज़ीते पड़ जाएंगे। बच्चे न पढ़े तो कोई बात नहीं, पर प्रेम से पढ़ाओ। उनसे प्यार से निवेदन करो कि बेटा पढ़ लो।

समझते क्यों नहीं मास्टर साहब?? अगर कहीं शिकायत कर दी तो ?"

बेचारे गुरुजी पसीने पसीने हो गए। मानो हर बूँद से प्रायश्चित टपक रहा हो।

इधर छेदी "गुरुजी हाय हाय" के नारे लगाता जा रहा था और बाकी बच्चे भी उसके सुर में सुर मिलाकर पूरी कक्षा को गुलज़ार किए हुए थे।

प्रधानाध्यापक महोदय (छेदी को एक कोने में ले जाकर कहा)- "मुझसे कहो छेदी बेटे!! तुम्हें क्या चाहिए?"

छेदी -  "जब तक गुरुजी मुझसे पूरी कक्षा के सामने माफ़ी नही माँग लेते हैं,तब तक हम शाला का बहिष्कार करेंगे। बस आप हमें बताएँ कि शिकायत पेटी कहाँ है?"

(समस्त स्टाफ आश्चर्यचकित था और पूरे विद्यालय में भय का वातावरण फैल चुका था। कुछ छात्रों का समूह तो मारे ख़ुशी के फूला नहीं समा रहा था। अब छात्र जान चुके थे कि उत्तीर्ण होना उनका कानूनी अधिकार है।)

बड़े सर ने छेदी से कहा - मैं उनकी तरफ से माफ़ी माँगता हूँ|
छेदी -  "आप क्यों माँगोगे माफ़ी? जिसने किया है वही माफ़ी माँगे!! कक्षा में मेरा बहुत अपमान हुआ है, अतः गुरूजी ही माफ़ी मांगेंगे।"

(आज गुरुजी के सामने बहुत बड़ा संकट था। जिस छेदी के बाप तक को उन्होंने दण्ड, दृढ़ता और अनुशासन से पढ़ाया था, आज उनकी ये तीनों शक्तियाँ परास्त हो चुकी थीं। वे इतने भयभीत हो चुके थे कि एकान्त में छेदी के पैर तक छूने को तैयार थे, लेकिन सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगकर गुरूता के ग्राफ को सरेआम गिराना नहीं चाहते थे। छड़ी के संग उनका मनोबल ही नहीं, परम्परा और प्रणाली भी टूट चुकी थी। सारी व्यवस्था नियम कानून एक्सपायर हो चुके थे। कानून क्या कहता है, अब ये बच्चों से सीखना पड़ेगा??)

अन्तिम पड़ाव पर गुरु द्रोण स्वयं चक्रव्यूह मे फँस जाएँगे!!

वे प्रण कर चुके थे कि कल से बच्चे जैसा कहेंगे, वैसा ही वे करेंगे। तभी बड़े सर उनके पास आकर बोले, "मैं आपकी स्थिति को समझ रहा हूँ किन्तु इस वक़्त आपको समझा रहा हूँ। वह मान गया है और अन्दर आ रहा है। उससे माफ़ी माँग लो, समय की यही जरूरत है।"

प्रधानाध्यापक महोदय का कक्ष...
अन्दर अकेले मास्टर साहब ज़मीन में सिर गड़ाए कुर्सी पर बैठे हुए हैं।
वातावरण में एक अज़ीब सी घुटन भरी बोझिल सी ख़ामोशी...
छेदी अन्दर प्रवेश करता है और हवा के एक तेज झोंके ने शर्मिन्दा होकर द्वार बंद कर दिए...

और फिर...

अब कलम को चाहिए कि यहीं थम जाए
"कई बार मौन की भाषा संवादों पर भारी पड़ जाती है|"

मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ !



शिक्षक हूँ, पर ये मत सोचो,
बच्चों  को  सिखाने  बैठा हूँ |
मैं   डाक   बनाने  बैठा  हूँ ,
मैं   कहाँ   पढ़ाने   बैठा हूँ !

कक्षा  में  जाने  से  पहले,
भोजन  तैयार  कराना है |
ईंधन का इंतजाम करना
फिर  सब्जी लेने जाना है,
गेहूँ ,चावल, मिर्ची, धनिया
            का हिसाब लगाने बैठा हूँ
            मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कितने एस.सी. कितने बी.सी.
कितने जनरल  दाखिले हुए
कितने आधार बने अब तक
कितनों  के  खाते  खुले हुए
बस यहाँ कागजों में उलझा
               निज साख बचाने बैठा हूँ
               मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कभी एस.एम.सी कभी पी.टी.ए
की मीटिंग बुलाया करता हूँ
सौ - सौ भांति के रजिस्टर हैं
उनको   भी   पूरा  करता हूँ
सरकारी  अभियानों में  मैं
              ड्यूटियाँ  निभाने बैठा हूँ
             मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

लोगों की गिनती करने को
घर - घर में  मैं ही जाता हूँ
जब जब चुनाव के दिन आते
मैं  ही  मतदान  कराता  हूँ
कभी जनगणना कभी मतगणना
              कभी वोट बनाने बैठा हूँ
              मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा हूँ ...

रोजाना  न  जाने  कितनी
यूँ  डाक  बनानी पड़ती है
बच्चों को पढ़ाने की इच्छा
मन ही में दबानी पड़ती है
केवल  शिक्षण  को छोड़ यहाँ
                 हर फर्ज निभाने बैठा हूँ
                 मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ ...

इतने  पर भी  दुनियां वाले
मेरी   ही  कमी   बताते  हैं
अच्छे परिणाम न आने पर
मुझको   दोषी   ठहराते हैं
बहरे  हैं  लोग  यहाँ  'अंशु'
             मैं  किसे  सुनाने बैठा  हूँ
             मैं कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ..
             मैं  नहीं  पढ़ाने  बैठा  हूँ..

श्रेय : उपलब्ध नहीं (यदि जानकारी हो तो सूचित करे )

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

सहयोग नही कर सकते तो कम से कम अवरोध न पैदा कीजिये


आज उत्तर प्रदेश में बड़े, छोटे, निरहू, घुरहू सब बिना हाथ धोये प्राइमरी स्कूल के पीछे पड़े हैं,

पता नही कौन सी ब्यार चली है?

समझ नही आ रहा। जिन्होंने कभी कॉलेज नही देखा, वो सुबह स्कूल चेक करने निकलतें है।
अगर सरकार को लगता है कि प्राइमरी स्कूल पर पैसा  बेकार खर्च हो रहा है तो प्राइमरी स्कूल बंद क्यों नही कर देती सरकार ?

देश का प्रधानमंत्री झाड़ू लगाए तो वाह वाह,
बच्चा इसमें हाँथ बटा दे तो मास्टर ससपेंड !


खुले में शौच से मुक्ति के लिए सुबह 4 बजे गांव में टीम तैनात, कि कोई जंगल मे कर न पाए, अरबों रुपए स्वच्छ भारत मिशन में लगाए गए,

माननीय प्रधानमंत्री जी एक टीम स्कूल के लिए भी बना दीजिये, कि गांव में कोई बच्चा स्कूल समय मे घूमता नही दिखे |

  • खाना बनवाये मास्टर
  • कपड़ा सिलवाए मास्टर
  • फल बटवाये मास्टर
  • दूध पिलाये मास्टर
  • झाड़ू लगाए मास्टर
  • स्कूल के कमरे बनवाये मास्टर
  • स्कूल पुतवाये मास्टर
  • किताब बांटे मास्टर
  • चुनाव कराए मास्टर
  • पेट के कीड़े मारे मास्टर
  • पोलियो मिटाए मास्टर
  • जनगणना करे मास्टर
  • बोर्ड एग्जाम कराए मास्टर
  • प्रशिक्षण भी कराए मास्टर


अब बताओ पढ़ाई क्या क्या कराएगा मास्टर !
और तुलना प्राइवेट स्कूल से , कि वहां पढ़ाई बहुत अच्छी होती है।


प्राइवेट विद्यालयों से तुलना

वहां मां बाप 2 रोटी पेट मे और 2 टिफिन में रखकर उसको स्कूल भेजकर आतें है और छुट्टी से 10 मिनट पहले लेने पहुच जाएं है और यहां मंजन तक नही कराते और भेज देतें है जाओ मास्टर है स्कूल में तुमको पालने के लिए |

कभी किसी डॉक्टर से कहा गया कि पहले गांव में जाकर मरीज ढूढ़कर लाओ और फिर उसका इलाज करो। किसी अधिकारी से नही कहा गया कि गांव में जा के देखो कि क्या परेशानी है। फिर काम करो। वहां तो सीधा फरमान जारी होता है कि  10 बजे से 12 बजे तक अधिकारी एसी में अपने कार्यालय में बैठकर सबकी समस्याएं सुनेंगे और आफिस में ही जांच करेंगे, फरियादी उनके पास आयेगा,
इतना ही नहीं प्राइमरी का मास्टर पहले आपके लाड़ले को बिस्तर से उठाए और अपने साथ स्कूल ले जाये
और वहां नहला धुलाकर तैयार कर नाश्ता कराये और फिर पढ़ाये और आपके घर छोड़ने आये |


शिक्षकों की तन्ख्वाय 

अध्यापक की सैलरी पर सभी ताना देतें है,
कभी किसी बाबू पर भी उंगली उठाई है किसी ने ?
उनको तो बाबू जी 😡
(क्योकि बाबूजी बिना दुत्कारे और रिश्वत लिए कोई काम नहीं करते)

अगला आधा महीना बीतने तक भी वेतन के दर्शन नहीं होते शिक्षक को


शिक्षकों की छुट्टी

साल में कम से कम 10 रविवार को भी स्कूल में रहता है मास्टर, लेकिन कहते हैं मास्टर की छुट्टी बहुत हैं
उनकी छुट्टियों की कोई गणना नहीं करता जिनकी त्योहारों के साथ-साथ प्रत्येक शनिवार और रविवार की भी रहती है |


इतना ख्याल तो मास्टर कभी अपने बच्चों का भी नहीं रख पाता !
स्कूल में कोई जानवर बाँधता है,
कोई अनाज रखता है वगैरह-वगैरह और झाड़ू लगाए मास्टर।


अगर आप सहयोग नही कर सकते तो कम से कम अवरोध न पैदा कीजिये |
(एक शिक्षक की व्यथा)