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बुधवार, 3 मई 2017

पानी जड़ में दीजिए, पत्तियों पर नहीं



इतना तो लोग आतंकवादियों के पीछे नहीं पड़ते जितना आज शिक्षकों के पीछे पड़े हैं।
शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं आता, आता है तो पढ़ाता नहीं, खाना अच्छा नहीं बनवाता, फल नहीं खिलाता, झाडू नहीं लगाता, दीवार पर लोगों द्वारा थूकी गयी पीक साफ नहीं करता आदि आदि कान्वेंट स्कूलों से सरकारी स्कूलों की तुलना की जाती है कि वहाँ का बच्चा पढ़ने में तेज होता है।
                       मीडिया भी कमियाँ निकालता है तो केवल शिक्षकों की। कभी फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के द्वारा तो कभी स्वयं संपादित चित्र द्वारा।

सबसे पहले तो ये जान लें कि शिक्षक का काम केवल पढ़ाना होता है शेष काम वो दबाव में करता है। 4 रूपया 13 पैसे में भोजन कराता है। जाँच करने वाला केवल ये देखता है कि फलाने अध्यापक ने एम डी एम में 10 बच्चे ज्यादा चढ़ाये हैं उसे ये नहीं पता कि पिछले महीने कोटेदार ने जो 50 किलो का बोरा दिया था उसमें खाद्यान्न केवल 35 किलो था और तो और दो बोरी गेहूँ सड़ गया। कौन देगा इसका हिसाब?? एक शिक्षक ने बच्चे से झाडू क्या लगवा लिया सस्पेंड हो गया। बच्चे को पीट दिया सस्पेंड हो गया।पूरे भोजन में एक छोटा सा आवारा कीड़ा आ गया तो सस्पेंड हो गया। सर पर लटकती तलवार से अपनी गर्दन बचाते हुए किसी प्रकार दिन काटता है।सब कुछ से बचा तो बच्चों की संख्या कम क्यों है उसका जवाब दे।अरे भाई शिक्षक पर अपना शक्ति प्रदर्शन करके सुधार नहीं हो सकता।अगर सुधार करना है तो पावर का केन्द्र शिक्षक को बना दो।
गाँव के सफाईकर्मी को वेतन देने से पहले शिक्षक का प्रमाणपत्र अनिवार्य किया जाय कि उसने विद्यालय में महीने भर साफ सफाई किया है अथवा नहीं।

अभिभावक को किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ देने से पूर्व शिक्षक का प्रमाण पत्र अनिवार्य किया जाय किया उसके बच्चे नियमित रूप से विद्यालय आते हैं अथवा नहीं।

जनप्रतिनिधियों से कहा जाय कि वे शिक्षकों द्वारा बताई कमियों को अपनी निधि से दूर करें।
कान्वेंट से तुलना न करें और अगर करें तो गाँव के गरीब अभिभावकों को भी कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के बराबर करें, हर स्तर पर।

शिक्षकों को कन्वेंस की सुविधा उपलब्ध करायी जाये या फिर उन्हें आवास उपलब्ध कराये जाँय।
मत भूलिए कि यही शिक्षक पीठासीन बनकर चुनाव जैसा महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करवाता है ।जनगणना में सहयोग करता है।इतने महत्वपूर्ण कार्यों को निर्विघ्न सम्पन्न कराने वाले शिक्षक पर दोषारोपण उचित नही है।सच तो ये है कि दोष शिक्षक का नहीं व्यवस्था का है। बायोमीट्रिक और सीसीटीवी कैमरा भी लगवा दीजिए किन्तु उसे राज्य कर्मचारी का दर्जा और सुविधाएँ भी दीजिए। पुरानी पेंशन बहाल कीजिए ताकि शिक्षक दुकान खोलने के लिए मजबूर नहीं हो।अंत में केवल इतना ही कहूँगा कि

पानी जड़ में दीजिए,पत्तियों पर नहीं।

थोथी दलीलों से काम नहीं चलता चार दिन गाँव के प्राइमरी में तीन कक्षाओं के बच्चों को एक साथ पढ़ाकर देखिए सब समझ में आ जायेगा ।

'जय हिन्द जय शिक्षक'

शिक्षा विभाग एक उपेक्षित विभाग



एक बार एक प्रदेश के मुख्यमंत्री जी और विपक्ष के नेता साथ साथ दौरे पर निकले ।
पहले एक जेल पड़ी, उसका मुआयना किया और जेलर से पूछा कितनी ग्रांट चाहिए ?

जेलर- कुछ विशेष नहीं सब ठीक चल रहा है...

मुख्यमंत्री जी- फिर भी....?

जेलर- आप देना ही चाहते है तो 5 लाख रुपया दे दीजिए |

(P.A ने नोट किया.)

आगे बढ़े तो एक स्कूल पड़ा..

वहाँ जा कर प्रिन्सिपल से भी वही बात पूछी...

प्रिन्सिपल लगे रोने और कहा कि...
सर ना तो स्टाफ़ है,
विद्यालय भवन जर्जर है,
ना फ़र्निचर और
ना लैब में समान है....!!!

मुख्यमंत्री जी ने डाँटा रोवो मत बताओ कितनी ग्रांट चाहिए...?

प्रिन्सिपल - कम से कम 50 लाख |

(P.A ने नोट किया.)

दोनो राजधानी वापस आ गये |

अगले दिन मुख्यमंत्री जी ने जेल को 50 लाख और स्कूल को 5 लाख जारी कर दिया इस पर विपक्ष के नेता ने नाराज़ होते हुए कहा की आपने तो उलटा कर दिया |

तब मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अगर तुम्हारे पास इतनी ही अक़्ल होती तो तुम आज मेरी कुर्सी पर होते |

विपक्ष के नेता - मतलब....?


मुख्यमंत्री जी - अरे यार.....

स्कूल ना हमको जाना है, ना तुमको जाना है.
जेल हमको भी जाना है, जेल तुमको भी जाना है.....!!!

"शिक्षा विभाग एक उपेक्षित विभाग"
(एक व्यंग मात्र)

मंगलवार, 2 मई 2017

व्यवस्था ज्यादा दोषी या शिक्षक ?



एक पोस्ट पर किसी सज्जन ने लिखा की अध्यापक महीना बांध लेते है और स्कूल नही जाते यद्धपि उन्होंने ठीक लिखा

बस उनको लिखना ये था की 'कुछ' शिक्षक महीना बांध लेते है ये सही भी है ऐसा हो भी रहा है इसमें कोई शक नही कुछ शिक्षक ऐसा कर रहे है एन.सी.आर(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) से आने वाली काफी शिक्षिका ऐसा कर रही है और ये निश्चित रूप से अपराधिक बात है राजकोष का नुकसान है और साथ ही साथ उन बच्चों के प्रति भी गलत हो रहा है जो विद्यालय शिक्षा लेने आते है।

पर सवाल ये है की जो शिक्षक ऐसा कर रहे है वो तो दोषी है ही साथ वो लोग भी दोषी है जो ऐसा होने दे रहे है, बिना अधिकारी के ये सम्भव नही की कोई स्कूल ना आये और उसे घर बैठे वेतन मिलता रहा |
अध्यापक ऐसी हरकत तब ही कर पाते है अथवा कर रहे है जब वो अपने अधिकारियो को इस बात के लिए निश्चित धनराशि रिश्वत के रूप में दे कर आते होंगे इसलिए दोषी वो व्यवस्था भी  है जिसका वो लाभ रहे है |

जिन भी स्कूलो में ऐसा हो रहा है जिन भी ब्लाक में ऐसा हो रहा है वहां के अधिकारियो पर कार्यवाही हो
जो भी लोग ऐसी व्यवस्था बनवाने में दोषी है उन पर भी सख्त कार्यवाही होनी चाहिए |

जो शिक्षक अपने दायित्व सही से निभा रहे है उनके लिए ऐसे आरोप निश्चित रूप से हतोत्साहित करने वाले है समाज में उनकी प्रतिष्ठा को ऐसे लोगो की वजह से हानि पहुँचती है|

काफी दिन से शिक्षको को लेकर अनाप-शनाप कहा जा रहा है इसलिए ये पोस्ट लिखने की जरूरत पड़ी यदि ऐसे कुछ शिक्षको की वजह से सबको सुनना पड़े तो जो शिक्षक कार्य अच्छा कर रहे है उनकी प्रशंसा भी की जानी चाहिए। बेसिक में कुछ शिक्षको अधिकारियो की वजह से सभी को एक जैसा मान लेना गलत है |

 कार्यवाही सभी गलत लोगो पर होनी चाहिए चाहे वो शिक्षक हो अथवा अधिकारी

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

शिक्षकों की छुट्टियाँ - समाज में व्याप्त एक भ्रम


 


माननीय,
मुख्यमंत्री जी
उत्तर प्रदेश

आपको बताने वालो ने सिर्फ शिक्षकों की छुट्टी के बारे मे अवगत कराया औैर विभागों की छुट्टी या उनके कृत्य के बारे मे पर्दा डालने का कुत्त्सित प्रयास किया है ।
शिक्षक किन परिस्थितियों मे कार्य कर रहा है इसका अंदाजा भी नहीं है उन्हे । ज्यादातर कार्यालय मे शनिवार और रविवार को बंद रहते है और उन्हे 33 दिन ई.एल(Earned leaves).और 14 दिन का सी.एल.(Casual leave) दिया जाता है हम शिक्षकों को वही सुविधायें मेडिकल व्यवस्था ,और यात्रा भत्ता ,इत्त्यादि मुहैया कराया जाये। हमे नहीं चाहिये महा पुरुषों की जयंती पर अवकाश।


समीक्षा – परिषदीय शिक्षक और बैंक कर्मियों की छुट्टियों की

 
बैंक कर्मी  प्राथमिक शिक्षक
Casual Leave 12
(एक साथ 4 अधिकतम)
14
(एक साथ 3 अधिकतम)
Earned Leave 33 0
National Leave(Including Saturday) 48 35
(महापुरुषों की 15 जयन्ती हटाकर)
कुल 93 49
Summer Vacation
(वैसे ये छुट्टियाँ अब शिक्षक के लिए रहे नहीं पर फिर भी अगर,जोंडे तो..)
0 40 (20 मई से 30 जून)
कुल 93 89
नोट- यह सिर्फ एक मोटा-मोटा आकड़ा है, इसमें कोई त्रुटि हो तो कृपया कमेन्ट करे |

समीक्षा - शिक्षकों और बैंक कर्मियों कों मिलने वाली सुविधाओ पर एक नजर



बैंक कर्मी  प्राथमिक शिक्षक
मेडिकल कार्ड हाँ नहीं
यात्रा भत्ता हाँ नहीं

Left casual leaves added to the next year
हाँ
नहीं



 एक देश मे एक ही कानून फिर दोहरी व्यवस्था और सौतेला व्यवहार क्यों ? 

हम परिषदीय होकर भी राज्य सरकार के ज़्यादातर विभाग के सभी कार्य हम अध्यापक करते है, अतः हमे भी राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाय और उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाये भी हमे भी दी जाएँ।

विभाग के कार्यालयों मे व्याप्त भष्टाचार पर किसी की नजर नहीं पड़ रहीं है,

  • स्थानांतरण से लेकर संशोधन ,
  • चिकित्सीय अवकाश,
  • मातृत्व अवकाश ,
  • उपार्जित अवकाश ,
  • चयन पत्रावली ,
  • बोनस और एरियर 

इत्यादि मे हर कार्य का रेट बँधा है ।

अध्यापकों का शोषण खुले आम हो रहा है, निरीक्षण का डर दिखा कर मानसिक, आर्थिक शोषण किया जाता है ताकि अध्यापक हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज ना उठा सके।
जब शिक्षक स्वस्थ चित्त नहीं है , तो वह शिक्षण मे रुचि कैसे लेगा?

जब कुछ लोग  सुविधा शुल्क देकर खुले आम गणेश परिक्रमा करेगे और सही कार्य करने वालो को 10 मिनट विलम्ब पर कार्यवाही का धौंस और आर्थिक शोषण से वह भी उसी धारा मे जुड़ जाता है,

 इस तरफ़ सी.एम.साहब का ध्यान क्यों नहीं दिलाया जाता है ?

 शिक्षक बिना किसी मानसिक पीडा के स्वस्थ चित्त सिर्फ शिक्षण कार्य करना चाहता है । उसे बहुत अवकाश की आवश्यकता नहीं है और जितने अवकाश देय है, वह बिना सुविधा शुल्क के ऑनलाईन कर दिया जाये और सिर्फ गुणवत्ता की जाँच हो और दण्डित नहीं बल्कि उनको सुझाव और उनकी समस्या का निदान करते हुये उनके मनोबल को बढ़ाने का प्रयास करे। अवश्य सुधार होगा।

भय से हर कार्य कराया जा सकता है ,परन्तु अध्ययन और अध्यापन नहीं !

माननीय सी.एम.साहब से मार्मिक अपील है हमारी भी सुने और फिर स्वयंमेव जो भी आदेश करेगे शिरोधार्य है ।

(एक परिषदीय शिक्षक)