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गुरुवार, 11 मई 2017

प्राथमिक विद्यालयों पर किए जा रहे प्रयोगों पर गोरखपुर की कवयित्री डॉ कुसुम मानसी द्विवेदी का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खुला खत

 
मुख्यमंत्री जी ! आपने वो सारे तंत्र आजमा डाले जो अध्यापक को शर्मसार करे
योगी जी आपके लिए पाती….



सन्दर्भ:- अध्यापकों की मानहानि

सचिव ,

 गुरु अरु वैद जो प्रिय बोलहिं भय आस,
राज धर्म तन तीन कर होहि बेगिही नाश।

हमें आपके सलाहकारों,दिशा निर्देशकों से घोर शिकायत है, कोई आपको कुछ सही न तो बताता है न सलाह देता है और आप भी गुजरात में बहुतायत संख्या में बंद किये गए स्कूलों की तर्ज पर मानसिकता वोटबैंक 2019 या और विशेषवर्ग को खुद में विश्वसनीयता पुष्ट करने हेतु बना रहे होंगे,पर क्या कभी सोचा की अगर इसी स्कूल को और बेहतर बनाएं जिससे अध्यापक और बच्चों दोनों का मन लगे ? आपके कितने कर्मचारी हैं जो बिना बिजली ,साफ़ पानी,पंखें के रहते हैं ?
और तो और वाशरूम का उपयोग न तो बालिकाएं कर पाती हैं न बच्चे। इतनी कम मद का बाथरूम आपने किस कार्यालय को अबतक दिया है ?

आप शहर की तरह ,प्राइवेट स्कूलों सा व्यवस्थापन दे कर तो देखिये। बच्चों के बैठने के कमरे और कार्यालय दोनों ही रहने योग्य हों कुछ ऐसा कीजिये। तमाम स्कूलों के कमरे और कार्यालय कालकोठरी समान हैं न हवा न पानी न प्रकाश।

आपके कितने कर्मचारी किस किस विभाग के लोग हैं जो प्राथमिक विद्यालय और उच्च प्राथमिक विद्यालय अध्यापको की जिंदगी अपने ऑफिस में जीते हैं ?

सब स्कूलों की बॉउंड्री के साथ एक चपरासी भी रखिये देखभाल को, आपको पता है कहीं बॉउंड्री नहीं तो कहीं खेल का मैदान नहीं,और 4 दिन की छुट्टियों के बाद स्कूल की दीवारें गालियों से भरी होती हैं । ये आपके वो पत्रकार कभी नहीं बताएंगे जो 10 पास करके कैमरा माइक चरण छूकर पा गये और विद्द्यालय में टीचर से पूंछते हैं आप सिफारिश से आये या नकल से।

एक महिला पत्रकार बिना दुपट्टे के जूनियर विद्यालय में कूदती हुयी दाखिल होती है जहाँ संस्कार स्वरुप आपने जीन्स तक मना कर रखा है। अध्यापक का और महिला अध्यापिका का आदर्श स्वरुप नियमानुसार होता है। निवेदन है कि हमारे स्कूलो में भी वो प्रबुद्ध पत्रकार भेजिए जो डिवेट करते हैं जिन्हें भाषा का ज्ञान है।

आपका एक पैरोकार दूध पिलाती माँ की फोटो वायरल कर देता है वाह वाही लूटता है,माँ बनना कितना मुश्किल है आप क्या जानो ,बचपन की कुछ मुश्किल घटना को खुद से और माँ से जोड़कर देखिएगा जरूर समझ आएगा,एक गृह्स्थ महिला जो बच्चे की तबियत या अन्य किसी परिस्थिति में रात में न सो पायी तो दिन में काम पूरा करके सो गई पर जो उसके साथ कार्यरत भी है चौतरफा जिम्मेदारियों के निर्वहन में है पल भर को दूध् पिलाता तन शिथिल हो जाये तो ये बवंडर ?

अब विद्द्यालय में आपके सचिवालय, गन्ना संस्थान और तमाम कार्यालयों जैसे शयनकक्ष कार्यालय से लगे तो होते नहीं।

गांव का एक प्रधान भी अध्यापक को अनुपस्थित करने की चेतावनी देता है जिसकी हकीकत ये कि…
मसि कागद छुयो नहीं कलम गह्यो नहीं हाथ।।
लेखपाल से लेकर फ़ूड डिपार्टमेंट का छोटा कर्मचारी भी चेक करने आता है विद्द्यालय,आपने इस आदर्श को दरकिनार कर दिया कि…
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पांय।।

आपने वो सारे तंत्र आजमा डाले जो अध्यापक को शर्मसार करे।

हर विभाग में उसके अपने आला ऑफिसर चेक करने जाते हैं। यहाँ कोई भी मुंह उठाये आ जाता है कोई कहता है कि बच्चों की संख्या कम क्यों ? बच्चे रोज बुला के लाओ, तो कोई कहता है सुबह स्कूल आने से पहले बच्चों को बुलाने जाओ। और तो और कोई बिना हस्ताक्षर पहले बनाने के बजाय पढाने लगा तो भी सस्पेंड। उसे मन से अपना कर्म धर्म स्वीकारने की ये सजा ?

आपकी दृष्टि में सारे दोष अध्यापको में हैं। इस मानहानि से तो अच्छा है कि आप सचिवालय में अध्यापकों से झाड़ू पोंछ ही लगवाइए तब शायद आत्मिक संतोष हो।

कोई आंकड़ा हो तो देखवा लीजियेगा जब से बीजेपी बनी मेरे घर के सारे वोट बीजेपी को गये और आपके इस पद पर आसीन होने की ख़ुशी अध्यापको में बेशुमार थी पर अब उतनी ही कुंठा ,निराशा और हताशा दी आपने। एक बड़ा वर्ग जो अध्यापकों का है उसने मुश्किलों का त्रिशूल समझकर चयन किया आप तो ह्रदय शूल साबित हो रहे।

मैं नहीं जानती इस लेख का दुष्परिणाम क्या होगा पर इतना जानती हूँ कि अधिकार न मिले तो अपने कर्तव्यों का हवाला देते हुए अधिकार माँगना चाहिए।

 मैं मन से लेखिका हूँ तो एक और बात है कि…

जो वक़्त की आंधी से खबरदार नहीं हैं ।
वो कुछ और ही होंगे कलमकार नहीं हैं।।


(कवयित्री डॉ कुसुम मानसी द्विवेदी - गोरखपुर)

बुधवार, 3 मई 2017

शिक्षा विभाग एक उपेक्षित विभाग



एक बार एक प्रदेश के मुख्यमंत्री जी और विपक्ष के नेता साथ साथ दौरे पर निकले ।
पहले एक जेल पड़ी, उसका मुआयना किया और जेलर से पूछा कितनी ग्रांट चाहिए ?

जेलर- कुछ विशेष नहीं सब ठीक चल रहा है...

मुख्यमंत्री जी- फिर भी....?

जेलर- आप देना ही चाहते है तो 5 लाख रुपया दे दीजिए |

(P.A ने नोट किया.)

आगे बढ़े तो एक स्कूल पड़ा..

वहाँ जा कर प्रिन्सिपल से भी वही बात पूछी...

प्रिन्सिपल लगे रोने और कहा कि...
सर ना तो स्टाफ़ है,
विद्यालय भवन जर्जर है,
ना फ़र्निचर और
ना लैब में समान है....!!!

मुख्यमंत्री जी ने डाँटा रोवो मत बताओ कितनी ग्रांट चाहिए...?

प्रिन्सिपल - कम से कम 50 लाख |

(P.A ने नोट किया.)

दोनो राजधानी वापस आ गये |

अगले दिन मुख्यमंत्री जी ने जेल को 50 लाख और स्कूल को 5 लाख जारी कर दिया इस पर विपक्ष के नेता ने नाराज़ होते हुए कहा की आपने तो उलटा कर दिया |

तब मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अगर तुम्हारे पास इतनी ही अक़्ल होती तो तुम आज मेरी कुर्सी पर होते |

विपक्ष के नेता - मतलब....?


मुख्यमंत्री जी - अरे यार.....

स्कूल ना हमको जाना है, ना तुमको जाना है.
जेल हमको भी जाना है, जेल तुमको भी जाना है.....!!!

"शिक्षा विभाग एक उपेक्षित विभाग"
(एक व्यंग मात्र)

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

शिक्षकों की छुट्टियाँ - समाज में व्याप्त एक भ्रम


 


माननीय,
मुख्यमंत्री जी
उत्तर प्रदेश

आपको बताने वालो ने सिर्फ शिक्षकों की छुट्टी के बारे मे अवगत कराया औैर विभागों की छुट्टी या उनके कृत्य के बारे मे पर्दा डालने का कुत्त्सित प्रयास किया है ।
शिक्षक किन परिस्थितियों मे कार्य कर रहा है इसका अंदाजा भी नहीं है उन्हे । ज्यादातर कार्यालय मे शनिवार और रविवार को बंद रहते है और उन्हे 33 दिन ई.एल(Earned leaves).और 14 दिन का सी.एल.(Casual leave) दिया जाता है हम शिक्षकों को वही सुविधायें मेडिकल व्यवस्था ,और यात्रा भत्ता ,इत्त्यादि मुहैया कराया जाये। हमे नहीं चाहिये महा पुरुषों की जयंती पर अवकाश।


समीक्षा – परिषदीय शिक्षक और बैंक कर्मियों की छुट्टियों की

 
बैंक कर्मी  प्राथमिक शिक्षक
Casual Leave 12
(एक साथ 4 अधिकतम)
14
(एक साथ 3 अधिकतम)
Earned Leave 33 0
National Leave(Including Saturday) 48 35
(महापुरुषों की 15 जयन्ती हटाकर)
कुल 93 49
Summer Vacation
(वैसे ये छुट्टियाँ अब शिक्षक के लिए रहे नहीं पर फिर भी अगर,जोंडे तो..)
0 40 (20 मई से 30 जून)
कुल 93 89
नोट- यह सिर्फ एक मोटा-मोटा आकड़ा है, इसमें कोई त्रुटि हो तो कृपया कमेन्ट करे |

समीक्षा - शिक्षकों और बैंक कर्मियों कों मिलने वाली सुविधाओ पर एक नजर



बैंक कर्मी  प्राथमिक शिक्षक
मेडिकल कार्ड हाँ नहीं
यात्रा भत्ता हाँ नहीं

Left casual leaves added to the next year
हाँ
नहीं



 एक देश मे एक ही कानून फिर दोहरी व्यवस्था और सौतेला व्यवहार क्यों ? 

हम परिषदीय होकर भी राज्य सरकार के ज़्यादातर विभाग के सभी कार्य हम अध्यापक करते है, अतः हमे भी राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाय और उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाये भी हमे भी दी जाएँ।

विभाग के कार्यालयों मे व्याप्त भष्टाचार पर किसी की नजर नहीं पड़ रहीं है,

  • स्थानांतरण से लेकर संशोधन ,
  • चिकित्सीय अवकाश,
  • मातृत्व अवकाश ,
  • उपार्जित अवकाश ,
  • चयन पत्रावली ,
  • बोनस और एरियर 

इत्यादि मे हर कार्य का रेट बँधा है ।

अध्यापकों का शोषण खुले आम हो रहा है, निरीक्षण का डर दिखा कर मानसिक, आर्थिक शोषण किया जाता है ताकि अध्यापक हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज ना उठा सके।
जब शिक्षक स्वस्थ चित्त नहीं है , तो वह शिक्षण मे रुचि कैसे लेगा?

जब कुछ लोग  सुविधा शुल्क देकर खुले आम गणेश परिक्रमा करेगे और सही कार्य करने वालो को 10 मिनट विलम्ब पर कार्यवाही का धौंस और आर्थिक शोषण से वह भी उसी धारा मे जुड़ जाता है,

 इस तरफ़ सी.एम.साहब का ध्यान क्यों नहीं दिलाया जाता है ?

 शिक्षक बिना किसी मानसिक पीडा के स्वस्थ चित्त सिर्फ शिक्षण कार्य करना चाहता है । उसे बहुत अवकाश की आवश्यकता नहीं है और जितने अवकाश देय है, वह बिना सुविधा शुल्क के ऑनलाईन कर दिया जाये और सिर्फ गुणवत्ता की जाँच हो और दण्डित नहीं बल्कि उनको सुझाव और उनकी समस्या का निदान करते हुये उनके मनोबल को बढ़ाने का प्रयास करे। अवश्य सुधार होगा।

भय से हर कार्य कराया जा सकता है ,परन्तु अध्ययन और अध्यापन नहीं !

माननीय सी.एम.साहब से मार्मिक अपील है हमारी भी सुने और फिर स्वयंमेव जो भी आदेश करेगे शिरोधार्य है ।

(एक परिषदीय शिक्षक)