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रविवार, 5 नवंबर 2017

बेसिक परिवर्तन बेहद ज़रूरी

बेसिक परिवर्तन बेहद ज़रूरी

एक रुपये में तीन अठन्नी भुन जाती हैं 'बेसिक' में।
मिल जाती हैं सभी खूबियाँ एक अकेले शिक्षक में।
वही पढ़ाये, वही खिलाये, राशन ढोकर लाये।
दूध पिलाये, फल बंटवाये, ईंधन स्वयं जुटाये।
टेंडर लेकर, दर्जी चुनकर, कपड़े भी सिलवाये।
साफ़-सफाई, रंग-पुताई, बिल्डिंग तक बनवाये।
बिजली, पंखे, नल, शौचालय, सबको वही रखाये।
फर्श और खिड़की-दरवाजे, जब-तब सही कराये।
सत्यापन, सर्वेक्षण-ड्यूटी, जनगणना को जाये।
वोट बनाने घर-घर घूमे, निर्वाचन करवाये।
कभी रसोइया से उलझे, कभी स्वच्छकार टकराये।
शाला मानो खाला का घर, जो मर्जी घुस आये।
घर-खेतों में जाकर बच्चे टेर-टेरकर लाये।
बच्चों से ज़्यादा उनके अभिभावक को समझाये।
मीटिंग, रैली, पल्स-पोलियो, ऑडिट भी करवाये।
भाँति-भाँति की सूचनाओं को जैसे-तैसे जुटाये।
 
ढेर रजिस्टर लेकर बैठे, कॉलम भरता जाये।
आदेशों के चक्रव्यूह में घिरता-पिसता जाये।
बच्चों को एकाग्रचित्त से शिक्षक पढ़ा न पाये।
हसरत दिल में ही रह जाती, न्याय नहीं कर पाये।
उस पर भी अधिकारी आकर कमियां बीस गिनाये।
मनोव्यथा को नहीं समझकर दिल को और दुखाये।
जीभ के जैसा मानो शिक्षक, बत्तीसी के बीच।
जैसे - तैसे जान बचाकर बचपन रहा सींच।
प्राइवेट स्कूलों में ऑफिस व्यर्थ नहीं होता है।
शिक्षक केवल शिक्षण करने को स्वतंत्र होता है।
और वहाँ पर पीरियड-वाइज़ एक ही कक्षा लेता शिक्षक।
किन्तु यहाँ पर प्रायः दिन-भर कई कक्षाएं, एक ही शिक्षक।
वहाँ फेल करने की नीति, एक कक्ष में एक से बच्चे।
यहाँ उम्र से दाखिल होते, ऊँची कक्षा बच्चे कच्चे।
और एक कड़वी सच्चाई, शिक्षक भी स्वीकार करें।
कमी हमारी ओर से भी है, खुद में स्वयं सुधार करें।
समय का पालन, लगन से शिक्षण, इसमें ढील न छोड़ें।
जो कुछ भी हम कर सकते, उसमें बहाने न ओढ़ें।
शिक्षा क्षेत्र के वित्त प्रबंधन में भी दोष है दिखता।
कुल खर्चे में शिक्षक-वेतन 'अति-आनुपातिक' लगता।
उसमें से यदि पाँच फ़ीसदी भी विद्यालय में लगे।
काफी सूरत बदलेगी, किस्मत बच्चों की जगे।
और अंत में कहकर इतना बात करें हम पूरी।
बेसिक में 'बेसिक' परिवर्तन बेहद आज ज़रूरी।


प्रशांत अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
जिला बरेली (उ.प्र.)।

गुरुवार, 11 मई 2017

प्राथमिक विद्यालयों पर किए जा रहे प्रयोगों पर गोरखपुर की कवयित्री डॉ कुसुम मानसी द्विवेदी का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खुला खत

 
मुख्यमंत्री जी ! आपने वो सारे तंत्र आजमा डाले जो अध्यापक को शर्मसार करे
योगी जी आपके लिए पाती….



सन्दर्भ:- अध्यापकों की मानहानि

सचिव ,

 गुरु अरु वैद जो प्रिय बोलहिं भय आस,
राज धर्म तन तीन कर होहि बेगिही नाश।

हमें आपके सलाहकारों,दिशा निर्देशकों से घोर शिकायत है, कोई आपको कुछ सही न तो बताता है न सलाह देता है और आप भी गुजरात में बहुतायत संख्या में बंद किये गए स्कूलों की तर्ज पर मानसिकता वोटबैंक 2019 या और विशेषवर्ग को खुद में विश्वसनीयता पुष्ट करने हेतु बना रहे होंगे,पर क्या कभी सोचा की अगर इसी स्कूल को और बेहतर बनाएं जिससे अध्यापक और बच्चों दोनों का मन लगे ? आपके कितने कर्मचारी हैं जो बिना बिजली ,साफ़ पानी,पंखें के रहते हैं ?
और तो और वाशरूम का उपयोग न तो बालिकाएं कर पाती हैं न बच्चे। इतनी कम मद का बाथरूम आपने किस कार्यालय को अबतक दिया है ?

आप शहर की तरह ,प्राइवेट स्कूलों सा व्यवस्थापन दे कर तो देखिये। बच्चों के बैठने के कमरे और कार्यालय दोनों ही रहने योग्य हों कुछ ऐसा कीजिये। तमाम स्कूलों के कमरे और कार्यालय कालकोठरी समान हैं न हवा न पानी न प्रकाश।

आपके कितने कर्मचारी किस किस विभाग के लोग हैं जो प्राथमिक विद्यालय और उच्च प्राथमिक विद्यालय अध्यापको की जिंदगी अपने ऑफिस में जीते हैं ?

सब स्कूलों की बॉउंड्री के साथ एक चपरासी भी रखिये देखभाल को, आपको पता है कहीं बॉउंड्री नहीं तो कहीं खेल का मैदान नहीं,और 4 दिन की छुट्टियों के बाद स्कूल की दीवारें गालियों से भरी होती हैं । ये आपके वो पत्रकार कभी नहीं बताएंगे जो 10 पास करके कैमरा माइक चरण छूकर पा गये और विद्द्यालय में टीचर से पूंछते हैं आप सिफारिश से आये या नकल से।

एक महिला पत्रकार बिना दुपट्टे के जूनियर विद्यालय में कूदती हुयी दाखिल होती है जहाँ संस्कार स्वरुप आपने जीन्स तक मना कर रखा है। अध्यापक का और महिला अध्यापिका का आदर्श स्वरुप नियमानुसार होता है। निवेदन है कि हमारे स्कूलो में भी वो प्रबुद्ध पत्रकार भेजिए जो डिवेट करते हैं जिन्हें भाषा का ज्ञान है।

आपका एक पैरोकार दूध पिलाती माँ की फोटो वायरल कर देता है वाह वाही लूटता है,माँ बनना कितना मुश्किल है आप क्या जानो ,बचपन की कुछ मुश्किल घटना को खुद से और माँ से जोड़कर देखिएगा जरूर समझ आएगा,एक गृह्स्थ महिला जो बच्चे की तबियत या अन्य किसी परिस्थिति में रात में न सो पायी तो दिन में काम पूरा करके सो गई पर जो उसके साथ कार्यरत भी है चौतरफा जिम्मेदारियों के निर्वहन में है पल भर को दूध् पिलाता तन शिथिल हो जाये तो ये बवंडर ?

अब विद्द्यालय में आपके सचिवालय, गन्ना संस्थान और तमाम कार्यालयों जैसे शयनकक्ष कार्यालय से लगे तो होते नहीं।

गांव का एक प्रधान भी अध्यापक को अनुपस्थित करने की चेतावनी देता है जिसकी हकीकत ये कि…
मसि कागद छुयो नहीं कलम गह्यो नहीं हाथ।।
लेखपाल से लेकर फ़ूड डिपार्टमेंट का छोटा कर्मचारी भी चेक करने आता है विद्द्यालय,आपने इस आदर्श को दरकिनार कर दिया कि…
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पांय।।

आपने वो सारे तंत्र आजमा डाले जो अध्यापक को शर्मसार करे।

हर विभाग में उसके अपने आला ऑफिसर चेक करने जाते हैं। यहाँ कोई भी मुंह उठाये आ जाता है कोई कहता है कि बच्चों की संख्या कम क्यों ? बच्चे रोज बुला के लाओ, तो कोई कहता है सुबह स्कूल आने से पहले बच्चों को बुलाने जाओ। और तो और कोई बिना हस्ताक्षर पहले बनाने के बजाय पढाने लगा तो भी सस्पेंड। उसे मन से अपना कर्म धर्म स्वीकारने की ये सजा ?

आपकी दृष्टि में सारे दोष अध्यापको में हैं। इस मानहानि से तो अच्छा है कि आप सचिवालय में अध्यापकों से झाड़ू पोंछ ही लगवाइए तब शायद आत्मिक संतोष हो।

कोई आंकड़ा हो तो देखवा लीजियेगा जब से बीजेपी बनी मेरे घर के सारे वोट बीजेपी को गये और आपके इस पद पर आसीन होने की ख़ुशी अध्यापको में बेशुमार थी पर अब उतनी ही कुंठा ,निराशा और हताशा दी आपने। एक बड़ा वर्ग जो अध्यापकों का है उसने मुश्किलों का त्रिशूल समझकर चयन किया आप तो ह्रदय शूल साबित हो रहे।

मैं नहीं जानती इस लेख का दुष्परिणाम क्या होगा पर इतना जानती हूँ कि अधिकार न मिले तो अपने कर्तव्यों का हवाला देते हुए अधिकार माँगना चाहिए।

 मैं मन से लेखिका हूँ तो एक और बात है कि…

जो वक़्त की आंधी से खबरदार नहीं हैं ।
वो कुछ और ही होंगे कलमकार नहीं हैं।।


(कवयित्री डॉ कुसुम मानसी द्विवेदी - गोरखपुर)

बुधवार, 3 मई 2017

पानी जड़ में दीजिए, पत्तियों पर नहीं



इतना तो लोग आतंकवादियों के पीछे नहीं पड़ते जितना आज शिक्षकों के पीछे पड़े हैं।
शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं आता, आता है तो पढ़ाता नहीं, खाना अच्छा नहीं बनवाता, फल नहीं खिलाता, झाडू नहीं लगाता, दीवार पर लोगों द्वारा थूकी गयी पीक साफ नहीं करता आदि आदि कान्वेंट स्कूलों से सरकारी स्कूलों की तुलना की जाती है कि वहाँ का बच्चा पढ़ने में तेज होता है।
                       मीडिया भी कमियाँ निकालता है तो केवल शिक्षकों की। कभी फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के द्वारा तो कभी स्वयं संपादित चित्र द्वारा।

सबसे पहले तो ये जान लें कि शिक्षक का काम केवल पढ़ाना होता है शेष काम वो दबाव में करता है। 4 रूपया 13 पैसे में भोजन कराता है। जाँच करने वाला केवल ये देखता है कि फलाने अध्यापक ने एम डी एम में 10 बच्चे ज्यादा चढ़ाये हैं उसे ये नहीं पता कि पिछले महीने कोटेदार ने जो 50 किलो का बोरा दिया था उसमें खाद्यान्न केवल 35 किलो था और तो और दो बोरी गेहूँ सड़ गया। कौन देगा इसका हिसाब?? एक शिक्षक ने बच्चे से झाडू क्या लगवा लिया सस्पेंड हो गया। बच्चे को पीट दिया सस्पेंड हो गया।पूरे भोजन में एक छोटा सा आवारा कीड़ा आ गया तो सस्पेंड हो गया। सर पर लटकती तलवार से अपनी गर्दन बचाते हुए किसी प्रकार दिन काटता है।सब कुछ से बचा तो बच्चों की संख्या कम क्यों है उसका जवाब दे।अरे भाई शिक्षक पर अपना शक्ति प्रदर्शन करके सुधार नहीं हो सकता।अगर सुधार करना है तो पावर का केन्द्र शिक्षक को बना दो।
गाँव के सफाईकर्मी को वेतन देने से पहले शिक्षक का प्रमाणपत्र अनिवार्य किया जाय कि उसने विद्यालय में महीने भर साफ सफाई किया है अथवा नहीं।

अभिभावक को किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ देने से पूर्व शिक्षक का प्रमाण पत्र अनिवार्य किया जाय किया उसके बच्चे नियमित रूप से विद्यालय आते हैं अथवा नहीं।

जनप्रतिनिधियों से कहा जाय कि वे शिक्षकों द्वारा बताई कमियों को अपनी निधि से दूर करें।
कान्वेंट से तुलना न करें और अगर करें तो गाँव के गरीब अभिभावकों को भी कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के बराबर करें, हर स्तर पर।

शिक्षकों को कन्वेंस की सुविधा उपलब्ध करायी जाये या फिर उन्हें आवास उपलब्ध कराये जाँय।
मत भूलिए कि यही शिक्षक पीठासीन बनकर चुनाव जैसा महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करवाता है ।जनगणना में सहयोग करता है।इतने महत्वपूर्ण कार्यों को निर्विघ्न सम्पन्न कराने वाले शिक्षक पर दोषारोपण उचित नही है।सच तो ये है कि दोष शिक्षक का नहीं व्यवस्था का है। बायोमीट्रिक और सीसीटीवी कैमरा भी लगवा दीजिए किन्तु उसे राज्य कर्मचारी का दर्जा और सुविधाएँ भी दीजिए। पुरानी पेंशन बहाल कीजिए ताकि शिक्षक दुकान खोलने के लिए मजबूर नहीं हो।अंत में केवल इतना ही कहूँगा कि

पानी जड़ में दीजिए,पत्तियों पर नहीं।

थोथी दलीलों से काम नहीं चलता चार दिन गाँव के प्राइमरी में तीन कक्षाओं के बच्चों को एक साथ पढ़ाकर देखिए सब समझ में आ जायेगा ।

'जय हिन्द जय शिक्षक'

शिक्षा विभाग एक उपेक्षित विभाग



एक बार एक प्रदेश के मुख्यमंत्री जी और विपक्ष के नेता साथ साथ दौरे पर निकले ।
पहले एक जेल पड़ी, उसका मुआयना किया और जेलर से पूछा कितनी ग्रांट चाहिए ?

जेलर- कुछ विशेष नहीं सब ठीक चल रहा है...

मुख्यमंत्री जी- फिर भी....?

जेलर- आप देना ही चाहते है तो 5 लाख रुपया दे दीजिए |

(P.A ने नोट किया.)

आगे बढ़े तो एक स्कूल पड़ा..

वहाँ जा कर प्रिन्सिपल से भी वही बात पूछी...

प्रिन्सिपल लगे रोने और कहा कि...
सर ना तो स्टाफ़ है,
विद्यालय भवन जर्जर है,
ना फ़र्निचर और
ना लैब में समान है....!!!

मुख्यमंत्री जी ने डाँटा रोवो मत बताओ कितनी ग्रांट चाहिए...?

प्रिन्सिपल - कम से कम 50 लाख |

(P.A ने नोट किया.)

दोनो राजधानी वापस आ गये |

अगले दिन मुख्यमंत्री जी ने जेल को 50 लाख और स्कूल को 5 लाख जारी कर दिया इस पर विपक्ष के नेता ने नाराज़ होते हुए कहा की आपने तो उलटा कर दिया |

तब मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अगर तुम्हारे पास इतनी ही अक़्ल होती तो तुम आज मेरी कुर्सी पर होते |

विपक्ष के नेता - मतलब....?


मुख्यमंत्री जी - अरे यार.....

स्कूल ना हमको जाना है, ना तुमको जाना है.
जेल हमको भी जाना है, जेल तुमको भी जाना है.....!!!

"शिक्षा विभाग एक उपेक्षित विभाग"
(एक व्यंग मात्र)

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

शिक्षकों की छुट्टियाँ - समाज में व्याप्त एक भ्रम


 


माननीय,
मुख्यमंत्री जी
उत्तर प्रदेश

आपको बताने वालो ने सिर्फ शिक्षकों की छुट्टी के बारे मे अवगत कराया औैर विभागों की छुट्टी या उनके कृत्य के बारे मे पर्दा डालने का कुत्त्सित प्रयास किया है ।
शिक्षक किन परिस्थितियों मे कार्य कर रहा है इसका अंदाजा भी नहीं है उन्हे । ज्यादातर कार्यालय मे शनिवार और रविवार को बंद रहते है और उन्हे 33 दिन ई.एल(Earned leaves).और 14 दिन का सी.एल.(Casual leave) दिया जाता है हम शिक्षकों को वही सुविधायें मेडिकल व्यवस्था ,और यात्रा भत्ता ,इत्त्यादि मुहैया कराया जाये। हमे नहीं चाहिये महा पुरुषों की जयंती पर अवकाश।


समीक्षा – परिषदीय शिक्षक और बैंक कर्मियों की छुट्टियों की

 
बैंक कर्मी  प्राथमिक शिक्षक
Casual Leave 12
(एक साथ 4 अधिकतम)
14
(एक साथ 3 अधिकतम)
Earned Leave 33 0
National Leave(Including Saturday) 48 35
(महापुरुषों की 15 जयन्ती हटाकर)
कुल 93 49
Summer Vacation
(वैसे ये छुट्टियाँ अब शिक्षक के लिए रहे नहीं पर फिर भी अगर,जोंडे तो..)
0 40 (20 मई से 30 जून)
कुल 93 89
नोट- यह सिर्फ एक मोटा-मोटा आकड़ा है, इसमें कोई त्रुटि हो तो कृपया कमेन्ट करे |

समीक्षा - शिक्षकों और बैंक कर्मियों कों मिलने वाली सुविधाओ पर एक नजर



बैंक कर्मी  प्राथमिक शिक्षक
मेडिकल कार्ड हाँ नहीं
यात्रा भत्ता हाँ नहीं

Left casual leaves added to the next year
हाँ
नहीं



 एक देश मे एक ही कानून फिर दोहरी व्यवस्था और सौतेला व्यवहार क्यों ? 

हम परिषदीय होकर भी राज्य सरकार के ज़्यादातर विभाग के सभी कार्य हम अध्यापक करते है, अतः हमे भी राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाय और उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाये भी हमे भी दी जाएँ।

विभाग के कार्यालयों मे व्याप्त भष्टाचार पर किसी की नजर नहीं पड़ रहीं है,

  • स्थानांतरण से लेकर संशोधन ,
  • चिकित्सीय अवकाश,
  • मातृत्व अवकाश ,
  • उपार्जित अवकाश ,
  • चयन पत्रावली ,
  • बोनस और एरियर 

इत्यादि मे हर कार्य का रेट बँधा है ।

अध्यापकों का शोषण खुले आम हो रहा है, निरीक्षण का डर दिखा कर मानसिक, आर्थिक शोषण किया जाता है ताकि अध्यापक हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज ना उठा सके।
जब शिक्षक स्वस्थ चित्त नहीं है , तो वह शिक्षण मे रुचि कैसे लेगा?

जब कुछ लोग  सुविधा शुल्क देकर खुले आम गणेश परिक्रमा करेगे और सही कार्य करने वालो को 10 मिनट विलम्ब पर कार्यवाही का धौंस और आर्थिक शोषण से वह भी उसी धारा मे जुड़ जाता है,

 इस तरफ़ सी.एम.साहब का ध्यान क्यों नहीं दिलाया जाता है ?

 शिक्षक बिना किसी मानसिक पीडा के स्वस्थ चित्त सिर्फ शिक्षण कार्य करना चाहता है । उसे बहुत अवकाश की आवश्यकता नहीं है और जितने अवकाश देय है, वह बिना सुविधा शुल्क के ऑनलाईन कर दिया जाये और सिर्फ गुणवत्ता की जाँच हो और दण्डित नहीं बल्कि उनको सुझाव और उनकी समस्या का निदान करते हुये उनके मनोबल को बढ़ाने का प्रयास करे। अवश्य सुधार होगा।

भय से हर कार्य कराया जा सकता है ,परन्तु अध्ययन और अध्यापन नहीं !

माननीय सी.एम.साहब से मार्मिक अपील है हमारी भी सुने और फिर स्वयंमेव जो भी आदेश करेगे शिरोधार्य है ।

(एक परिषदीय शिक्षक) 

स्वच्छ भारत अभियान को ठेंगा दिखाते गाँव



आज सुबह मैं जब 40 किलोमीटर बाइक चलाने के बाद विद्यालय पहुंचा तो देखा इंचार्ज प्रधानाध्यापिका बाहर खड़ी थीं, मैं अभी दूर ही था , मुझे लगा शायद आज घर चाबी भूल गयी होंगी | जब मैंने बाइक खड़ी की और कार्यालय की ओर बढ़ा तो जो देखा उसे देखकर मन एकदम खिन्न हो गया |
          पहले तो लोग विद्यालय प्रांगण(परिसर) में शौंच कर जाते थे पर आज तो हद्द ही हो गयी, विद्यालय के कार्यालय के सामने- दोनों किवाड़ों के बीचो बींच |
        मन में आया ग्राम प्रधान को बुलाकर इस कृत्य को दिखाऊ, NPRC और ABSA महोदय से शिकायत करू , फिर एकाएक लगा कि यह इस समस्या का हल नहीं है, क्योकि जिसने भी ऐसा  किया है जानबूझकर
परेशान करने  के उद्देश्य से किया है |
        खैर धन्य हैं वो सफाई कर्मी जो हमारे बीच ही रहकर हमारी गन्दगी साफ़ करते हैं |


जब इस सम्बन्ध में मैंने अन्य शिक्षकों से बात की तो जो जवाब मिले वो सच में डराने वाले थे -
  • ये तो कुछ भी नहीं है सर जी हमारे विद्यालय में तो लगातार 3 दिनों तक कुछ शरारती तत्व चारो दरवाजो के सामने शौंच कर गए थे |
  • ये तो सच में डराने वाला था - सर जी हम बहुत परेशान हैं हमारे यहाँ कुछ लड़के नल और तालो में मल लगा जाते हैं ताकि शिक्षक ताला ही ना खोल सके |

फिर सोंचा इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है ? 
  • चहार दीवारी - उपरोक्त घटनाएं जहाँ की हैं उन विद्यालयों में बाउंड्री मौजूद है, ऐसे कृत्य छोटे बालको द्वारा नहीं किये जाते की बाउंड्री उन्हें रोक सके, ये कुछ बेरोजगार, अशिक्षित, और विकृत मानसिकता के लोग हैं जिनका सबसे अच्छा टाइम पास है दूसरों कों परेशान करना |
  • शिकायत- यदि इन्हें ग्राम प्रधान, NPRC, ABSA आदि का भय होता तो ये ऐसा करते ही क्यो, उलटा शिकायत करने पर ऐसी घटनाए और जोर पकड़ सकती है|
  • निष्क्रिय रहिए - मेरे हिसाब से यह विकल्प सर्वोत्तम है, ऐसे तत्व तभी तक गतिविधि करते हैं जब तक उन्हें प्रत्योत्तर मिलता है, कोई उत्तर ना मिलने पर वे स्वयं भी निष्क्रिय कों जाते हैं वो कहावत सही कही गयी है -
कुत्ते भौंकते रहते हैं, हांथी मदमस्त चाल चलता रहता है | 
(इस स्थिति में हाँथी बनना ही सहायक होगा |)

स्वच्छ भारत अभियान 
रही बात स्वच्छता अभियान की तो, मुझे नहीं लगता की हमारा ये संकल्प कभी पूरा हो पायेगा क्योकि हममे से कुछ हैं जो बदलना ही नहीं चाहते |
      आज भी आपको गाँवो में लोग ये कहते मिल जायेंगे कि-

"जो मजा सुबह सुबह खेत में करने में है वो घुसल्खाने में कहाँ"

आज भी जब ट्रेन से सफर करते समय मैं सुबह - सुबह लोगो कों पटरियों के आस पास शौंच करते देखता हूँ तो सच में एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि क्या सोंचते होंगे विदेशी पर्यटक भारत के बारे में और फिर लगता है हाँ सच में ....

स्वच्छ भारत अभियान एक कल्पना मात्र है | 

(एक परिषदीय शिक्षक)
 

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

व्यवस्था के नाम एक परिषदीय शिक्षक का खुला पत्र

 


प्रिय व्यवस्था,
सादर नमस्कार!

आजकल देश में खुली चिट्टी लिखने का नया अध्याय शुरू हुआ है, नामी लोग एक दूसरे के नाम खुला पत्र लिख रहे हैं पर हम ठहरे अध्यापक हमें खुलकर लिखने का ज्यादा अधिकार नहीं मिला है फिर भी बात जब हद से बढ़ जाती है और दिमाग पर असर करने लगती है तो लिखना आवश्यक हो जाता है पर हम अपनी चिट्ठी किसके नाम लिखे ये निश्चित नहीं हो पाया क्योंकि हमारा गौरव गिराने में कई लोग बराबर के हक़दार हैं इसलिए ये चिट्ठी व्यवस्था के नाम लिख रहे हैं।

        सबसे पहले तो उन मीडिया कर्मियों के बारे में लिखना जरुरी है जो विद्यालय में जबरन घुसकर सरकारी शिक्षा की छीछालेदर करना अपना परम धर्म समझते हैं। आपको अपना यह धर्म निभाना भी चाहिए क्योंकि यह आपके पेशे और ड्यूटी से जुड़ा प्रश्न है पर आप दिल पर हाथ रखकर बताना कि आपको आज तक कोई ऐसा स्कूल नहीं मिला जिसमे आपको सभी व्यवस्थाएं चाक चौबंद मिली हों और बच्चे होशियार हों, तो आपकी ऐसी कौन सी मज़बूरी रही जिसके कारण आपने उस विद्यालय का समाचार नहीं दिखाया और छापा, शायद बुराई दिखाना ही आपके पेशे का प्रमुख कर्त्तव्य है? पर  कभी जनता को यह भी बता देते कि कि 5 कक्षाओं में पढ़ाने के लिए 5 अध्यापकों की जरुरत होती है। स्कूल की सफाई के लिए स्वीपर और चपरासी की जरुरत होती है। ऑफिस के कार्य के लिए क्लर्क की जरुरत होती है। कभी इस बात को भी जान लेते कि हिंदी विषय से भर्ती अध्यापक एकल विद्यालय में मजबूरी में विज्ञान और अंग्रेजी कैसे पढ़ा लेता है। पर आप तो मन बनाकर निकले थे कि आज शाम तक 10 स्कूल का जनाजा निकालकर उनकी खबर अपने अख़बार में छापनी है या न्यूज़ चैनल पर दिखानी है। दुःखद है कि हमारे कुछ साथी आपको सन्डे मंडे नहीं सुना सके, यह बड़े शर्म की बात है, हम भी यह जानने के बाद शर्म के मारे अपने पास पड़ोस में निगाह नहीं मिला पा रहे है। पर आप तो खोजी पत्रकार है जरा पता लगा के बताइये कि इनकी भर्ती किसने की और अगर ये विभाग में है तो क्या ये हम शिक्षकों की गलती है और इनकी अंकतालिका पर अच्छे प्रतिशत होने के बाद भी ये प्राथमिक ज्ञान नहीं रखते हैं तो उस यूनिवर्सिटी और स्कूल पर ऊँगली उठाने की बजाय आप हमारी पूरी कौम की छीछालेदर पर क्यों उतारू हैं।

    प्रिय प्रशासन जरा आप यह भी बता दें कि पढ़ाने के लिए नियुक्ति देने के बाद
  • जनगणना , 
  • चुनाव, 
  • बी एल ओ , 
  • पल्स पोलियो , 
  • मतदाता पुनरीक्षण, 
  • बृक्षारोपण,
  •  स्वास्थ्य परीक्षण, 
  • मध्यान्ह भोजन निर्माण
  • वितरण, 
  • सांख्यिकी गणना 
आदि के लिए क्या हम आपके विभिन्न विभागों से आग्रह करने गए थे या इन विभागों के काम निपटाने का आदेश हमारी सेवा नियमावली का हिस्सा है। जरा आप यह भी बता दें कि जिस निजी स्कूल में एक बच्चे का महीने भर  जितना जेबखर्च होता है उतने खर्च में आप वर्ष भर हमसे एक स्कूल क्यों चलवाते हैं। स्कूल की साफ सफाई की फोटो को बड़ा करके छापने और प्रधानाध्यापक को निलंबित करने से पहले काश आप यह भी जान लेते कि पिछले कितने दिनों से विद्यालय में सफाईकर्मी नहीं आया है और आपने कितने सफाईकर्मियों को निलंबित किया। हमारे टॉयलेट में झाँकने से पहले और उन्हें गन्दा होने का प्रश्न उछालने से पहले यह भी जान लेते कि गांव का स्वीपर इन्हें साफ नहीं करता।

      हम भी चाहते है कि हमें पढ़ाने का अवसर मिले पर आप हमें पढ़ाने कब दे रहा है। रात में सोते समय बच्चों के लिए कार्ययोजना बनाने की बजाय दिमाग में सब्जी मंडी से सब्जी का तनाव लेकर सोना पढ़ता है और सब्जी मंडी में हमारे घुसते ही 10 रुपये की लौकी 15 की हो जाती है और दुकानदार कटाक्ष करता है कि मास्टर बहुत कमाई है तुम्हारी। सन्डे की शाम को फल मंडी से एक बोरी केले लादकर लाने में पसीने छुट जाते है और डर लगता है कि अगर मोटरसाइकिल फिसल गयी तो राम नाम सत्य ना हो जाए। बुधबार की रात दूध के तनाव में निकल जाती है और रोज मिलावटी दूध की शिकायत की खबरे देखकर बच्चों को दूध पिलाते वक्त कलेजा मुँह को आ जाता है डर लगता है कि अगर एक भी बच्चा वीमार हुआ तो हमारे खुद के बच्चे भूखों मर जायेगे। जरा आप बताइये कि आपने दूध की शुद्धता नापने का कोई यंत्र कभी हमें दिया है? मिड डे मील खाने से बीमार हुए बच्चों की खबर सुन सुन कर हम मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार हो गए हैं, जब तक मध्यान्ह भोजन के बाद बच्चे सकुशल घर नहीं चले जाते तब तक हम डरे सहमे से रहते हैं क्योंकि बाजार की सब्जी में कौन सा इंजेक्शन लगाया गया है इसकी रोज फोरेंसिक जांच कर पाना हमारे बस में नहीं है। अक्सर हमारी गाड़ी पर पीछे सिलेंडर बंधा पाया जाता है। कभी कभी आटा की बोरी और सब्जी का थैला।



    आप  हमें वोट बनाने को कहते हो और गांव में प्रधानी चुनाव के संभावित  राजनैतिक दावेदार हमारे दुश्मन बन जाते हैं। रोज हम गलत वोट ना बढ़ाने के कारण गरियाये जाते हैं। पर आपको को तो काम चाहिए वो भी समय पर और बिना किसी त्रुटि के। महीनो वोट वनाने के चक्कर में कभी कभी हम अपने प्रिय शिष्यों के नाम तक भूल जाते हैं और कभी कभी तो हमें यह भी याद नहीं रह पाता कि हमने अपने बच्चों को इस साल कितने अध्याय पढ़ाये हैं।

   कभी कभी रंगाई पुताई समय से कराने के चक्कर में पुताई कर्मियों की भी जी हुजूरी करनी पड़ती है 7 हजार में इतना बड़ा विद्यालय पुतवाने के बाद विद्यालय की बॉउंड्री पर बैठे लड़के पूछते हैं मास्टर कितने बच गए तो कहना पड़ता है कि नौकरी बच गयी बस।बरसात की घास छोलने से लेकर भवन की झाड़ू तक की जबाबदेही हमारी ही है पर अगर हमारे बच्चे हमारा साथ ना दें तो हमारी जिंदगी मास्टर की बजाय सफाईकर्मी बनकर ही गुजर जाए।

     इसी बीच परीक्षा आ जाती है साहब कहते हैं कि बिना पैसे के करा लो, हमें परीक्षा के लिए कक्ष निरीक्षक तक नहीं मिलते हैं हमारे बच्चे 1 रूपये की कॉपी तक नहीं खरी पाते है, पर साहब कहते हैं कि बच्चे फेल नहीं होने चाहिए। अब जो बच्चा मामा के घर चला गया है उसको कैसे पास कर दें,हमारा दिल तो गवारा नहीं करता है पर साहब  कहते है कि हमें शतप्रतिशत रिजल्ट चाहिए।

         अधिकांश निरीक्षण में हमारे बच्चों की संख्या कम पायी जाती जिस पर हमें हमारे बच्चों के सामने ही सार्वजानिक रूप से बेइज्जत कर दिया जाता है पर कभी बच्चों से भी पता कर लो कि वो कहाँ है। कभी हमारे साथ हमारे बच्चों के घर भी चलो। जिस बच्चे का पिता दारू के नशे में धुत रहता हो तो वह अपनी माँ के साथ मजदूरी करे या स्कूल आये। बिना ज़मीन बाला भूमिहार मजदूर फसल के समय अपने पूरे परिवार के साथ वर्ष भर जीवन यापन लायक पैसे जोड़े या बच्चे स्कूल भेजे। अपने बच्चों के स्कूल से आये एक फोन पर हर काम को रोककर स्कूल पहुँचने बाले लोग काश यह भी जान पाते कि हमारे यहाँ नाम लिखाने के लिए हमें हर वर्ष घर घर बच्चे खोजने पढ़ते है महीनों उनके माता पिता से अनुरोध करना पड़ता है कि आप अपने बच्चों को कापियां दिला दें हफ़्तों गायब रहने और लगातार सूचना भिजवाने के बाद स्वयं ही खेत पर जाकर बच्चों और उनके पिता से अनुरोध करना पड़ता है कि आप ऐसे खेत पर काम करवाने की बजाय स्कूल भेजें। पर उन अभिभावक का दर्द भी जायज है आपने उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया नहीं है और भविष्य में पढ़कर उनके बच्चों को रोजगार देने के कोई संकेत आपके पास हैं नहीं।

      लोग तंज़ कसते हैं कि पहले सरकारी स्कूल के बच्चे अफसर बनते थे पर शायद आप भूल जाते हैं कि तब कृष्ण और सुदामा के लिए एक ही स्कूल होता था अब सब कृष्णों के पिता ने मिलकर अपने राजसी स्कूल खोलकर उनमे प्रवेश ले लिया है और सुदामा को जानबूझकर अल्पसुविधा बाले खैराती भवन में पढ़ने को मजबूर किया है। शिक्षा के नाम पर 3 प्रतिशत अतिरिक्त कर्ज वसूलने के बाद भी आप इन गरीबों के स्कूल में पूर्ण सुविधा नहीं दे पा रहे हैं या जानबूझकर नहीं देना चाहते ये आज तक समझ में नहीं आया काश वो कृष्ण जो कभी इन स्कूलों में पढ़कर आईएएस अफसर (राजा) बन गए वो ही लौटकर अपने गांव के गरीबों को कुछ सुविधा उपलब्ध करवा देते।पर शायद समाज के रसूख बाले लोगों को अपने कृष्ण को गरीब सुदामा के साथ पढ़ाना नागवार गुजरता है।



        जो लोग हम पर उंगलियां उठाते है वो जरा ये भी बता दें कि उन्होंने कब हमारी मदद के लिए हाथ बढ़ाया। क्षेत्र के सांसद और विधायक जी ने कितने स्कूल में अपनी सांसद और विधायक निधि से बच्चों के हित में काम करवा दिया। यहाँ तो जो चंद सरकारी मदद मिलती है उसमे भी ग्राम प्रधान अपनी नजर गड़ाये रहते हैं।कभी आप यह भी बता दें कि अच्छा कार्य करने बाले सरकारी मास्टर के लिए कभी आप लोगों ने कोई सम्मान समारोह आयोजित कराया हो जबकि निजी स्कूल के प्रिंसिपल को आप अपने बगल से बिठाकर खुश नजर आते है क्योंकि वह आपके बच्चों के स्कूल के प्रिंसिपल हैं। यहाँ तो हमें हर आठवें दिन अपने प्रधान के देहरी पर हाजरी देनी पढ़ती है और प्रधानिन जोर से आवाज देती हैं कि सुनो जी वो कलुआ के मास्टर फिर आ गए। प्रधान जी भी हमें उतनी ही तवज्जो देते हैं जितनी वो गांव के कलुआ हरिया और मातादीन को देते हैं। किसी अन्य विभाग का बाबू और चपरासी हमें हड़काने चला आता है क्योंकि हमने उसके विभाग के कार्य समय से नहीं किये।

      समाज का हर तबका हमारे वेतन को लेकर परेशान है पर हमारा काम इतना आसान नहीं है जितना आप समझते हैं और अगर आपको लगता है कि बच्चों के मन की स्लेट पर लिखना इतना आसान है  तो 6 महीने अपने बच्चे को खुद पढ़ाकर देखिये। आखिर आप भी तो पढ़े लिखे हैं और इतने तो पढ़े ही होंगे कि कक्षा 1 के छात्र को पढ़ा सकें। सरकारी स्कूल में पैदा की गयी प्रतिकूल परिस्तिथियों में शिक्षण बहुत कठिन पर हम इन स्तिथियों के लिए भी सदैब तैयार है पर आप हमें पढ़ाने तो दो। विभिन्न विभागों के काम कर कर के कभी कभी हम स्वयं भी भ्रमित हो जाते हैं कि आखिर हमें वेतन किस बात का मिल रहा है रोज रोज गांव में नया काम लेकर पहुँचने पर कभी कभी बुजुर्ग पूछ लेते हैं कि लल्ला का बेचन आये हो।

     वास्तव में अपनी इस वर्तमान दशा के लिए हम कतई दोषी नहीं हैं पर सारा दोष हमारे मत्थे मढ़कर आप सब अपने को पाक साफ साबित कर चुके हैं आज आपको भले ही अध्यापक से कई काम लेकर ख़ुशी महसूस हो रही हो और जिला प्रशासन सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए अपनी पीठ थोक रहा हो पर भविष्य में यह समाज केवल आपकी नीतियों की बजह से अशिक्षित रह जायेगा और बदनामी हमारी होगी।

आपका
एक परिषदीय अध्यापक

प्राइमरी शिक्षक क्या है ?


 


प्राइमरी शिक्षक एक ऐसा जीव है जो हरी/ लाल पट्टी वाली एक सरकारी इमारत में पाया जाता है। वह एक ऐसा कर्मचारी है जो मल्टीटास्क परफॉर्मर है जिससे सरकार उससे उसके मूल कर्तव्य यानि शिक्षण कार्य छोड़ अन्य सारे विभागों के वो कार्य लेती है जो सरकार को राजस्व उपलब्ध नही कराते हैं ।

ये वो कर्मचारी है जिसके अपने विभाग के अलावा चपरासी ,चौकीदार, सफाईकर्मी से लेकर जनप्रतिनिधि, ग्रामीण मतदाता यानि सारे लोग अधिकारी होते हैं।

ये वो जीव है जो अन्य लोगों से ज्यादा प्रभावी है यानि तनाव दूर करने वाला यानि जिसे भी तनाव महसूस हो वो किसी भी समय उसपर अपनी भड़ास निकल सकता है ।

ये वो इंजीनियर भी है जो बिना प्रशिक्षण के भवन निर्माण कराता है और उस निर्माण के लिये जीवनपर्यन्त जबाबदेह होता है।

ये वो मसाला है जिसे मीडिया कोई खबर न मिलने पर मनोरंजन समाचार की तरह प्रस्तुत कर सकती है

ये वो कर्मचारी है जिसके वेतन पर सबकी निगाह रहती है क्योंकि अन्य सारे कर्मचारी बिना वेतन के समाजसेवा करते हैं ।

 ये वो टेलरमास्टर है जो बच्चों को 200 रूपये में ग्वालियर सूटिंग के वातानूकुलित कपड़े उपलब्ध कराकर कमीशन खा जाता है।

 ये वो हलवाई है जो 4.16 रूपये में  फाईवस्टार होटल से भी बढ़िया भोजन उचित गुणवत्ता से भरपूर बच्चों को खिला सकता है और अपने घर के लिये धन एश्वर्य मे वृध्दि करता है।

ये वो शिक्षक है जो बच्चों के सामने विनती करता है और अभिभावक से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु बच्चों को विद्यालय जरुर भेजें चाहे बिना कॉपी पेन्सिल के  ही क्यों न हों और हाँ अगर स्नान न करे तो भी वहाँ
नहाने,बाल सँवारने व नाखून काटने आदि की व्यवस्था के साथ मैं उसे मनोरंजन शिक्षा भी  प्रदान करूँगा ।

ये विद्यालय नामक राजनीतिक संस्था का प्रभारी है जहाँ सारी राजनीतिक योजनायें ,वादविवाद ,स्वास्थ्य सेवायें आदि मुफ्त प्रदान की जाती हैं।

ये वो डाक्टर भी है जो सरकारी आयरन की गोली पूरे प्रिसक्रिप्सन के साथ ,पोलियो टीका ,जापानी इंसेफेलाइटिस आदि वितरित करता है और यदि उसका कोई साईडइफेक्ट हो जाय या रियेक्शन हो जाय तो भले ही उसका उसमें कोई प्रत्यक्ष भूमिका न हो तो भी सहर्ष जिम्मेदारी लेकर सहर्ष जेल जाने हेतु सदैव प्रस्तुत रहता है।
 
ये वो जादूगर है जो 5000/- रू वार्षिक मे विद्यालय के सारे खर्चे परीक्षा सामग्री समेत चला लेता है और उसके पश्चात भी अधिकारियों द्वारा चोर की उपाधि धारण करता है ।
   
5000/- वार्षिक में विद्यालय के  आकार आदि को ध्यान मे रखते हुये  बिरला व्हाईट सीमेन्ट व बर्जर पेण्ट से बारिश के मौसम को झेलते हुये भवन चमकाता है और न चमका पाया तो अयोग्यता की उपाधि धारण करते हुये चोरी नामक विशेष योग्यता को स्वीकार करता है।

 ये वो चींटी जैसा है जो डे-नाईट ,जाड़ा ,गर्मी व वर्षा कभी भी  बिना ओवरटाइम नि:स्वार्थ भाव से ड्यूटी हेतु 24 घण्टे उपलब्ध एवम् प्रतिबद्ध रहता है।
   
शिक्षको की तो एक और विशेषता है कि वो शाम को भी बी. एल. ओ (B.L.O) जैसी अद्भुत ड्यूटी निभा सकता है और बिना प्रमोशन , बिना शहरी भत्ता ,बिना अतिरिक्त वेतन के उपरोक्त सारी भूमिका का निर्वहन कर सकता है क्योंकि वो मुस्कराता है|

कुल मिलकर प्राईमरी शिक्षक की इतनी विशेषताऐं है कि कुछ लाईनों में इसके गुणों को लिखना वैसे ही है जैसे सूरज को दीपक दिखाना।

मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ !



शिक्षक हूँ, पर ये मत सोचो,
बच्चों  को  सिखाने  बैठा हूँ |
मैं   डाक   बनाने  बैठा  हूँ ,
मैं   कहाँ   पढ़ाने   बैठा हूँ !

कक्षा  में  जाने  से  पहले,
भोजन  तैयार  कराना है |
ईंधन का इंतजाम करना
फिर  सब्जी लेने जाना है,
गेहूँ ,चावल, मिर्ची, धनिया
            का हिसाब लगाने बैठा हूँ
            मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कितने एस.सी. कितने बी.सी.
कितने जनरल  दाखिले हुए
कितने आधार बने अब तक
कितनों  के  खाते  खुले हुए
बस यहाँ कागजों में उलझा
               निज साख बचाने बैठा हूँ
               मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

कभी एस.एम.सी कभी पी.टी.ए
की मीटिंग बुलाया करता हूँ
सौ - सौ भांति के रजिस्टर हैं
उनको   भी   पूरा  करता हूँ
सरकारी  अभियानों में  मैं
              ड्यूटियाँ  निभाने बैठा हूँ
             मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...

लोगों की गिनती करने को
घर - घर में  मैं ही जाता हूँ
जब जब चुनाव के दिन आते
मैं  ही  मतदान  कराता  हूँ
कभी जनगणना कभी मतगणना
              कभी वोट बनाने बैठा हूँ
              मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा हूँ ...

रोजाना  न  जाने  कितनी
यूँ  डाक  बनानी पड़ती है
बच्चों को पढ़ाने की इच्छा
मन ही में दबानी पड़ती है
केवल  शिक्षण  को छोड़ यहाँ
                 हर फर्ज निभाने बैठा हूँ
                 मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ ...

इतने  पर भी  दुनियां वाले
मेरी   ही  कमी   बताते  हैं
अच्छे परिणाम न आने पर
मुझको   दोषी   ठहराते हैं
बहरे  हैं  लोग  यहाँ  'अंशु'
             मैं  किसे  सुनाने बैठा  हूँ
             मैं कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ..
             मैं  नहीं  पढ़ाने  बैठा  हूँ..

श्रेय : उपलब्ध नहीं (यदि जानकारी हो तो सूचित करे )

जब बैंक कर्मी कुणाल चला करने राष्ट्र निर्माण



IDBI बैंक में मैनेजर के पद पर काम कर रहे कुणाल ने जब TET का फार्म भरा तो सभी सहकर्मियों ने मजाक उड़ाया।

‘अबे 45000 का जॉब छोड़ कर 10-12 हजार पर मास्टरी करने जायेगा?’
तब उसने अपने एक तर्क से सबका मुँह बन्द किया था कि "मै बचपन से ही शिक्षक बनना चाहता था"

प्राइमरी स्कूल में खादी की धोती और अद्धी का कुरता पहने मास्टर जी के घुसते ही उनका पैर छूने के लिए दौड़ते साढ़े तीन सौ बच्चोंकी भीड़ को देख कर उसे लगता कि दुनिया में ईश्वर के बाद यदि कोई है तो वो शिक्षक ही हैं।

उसे याद है कमला माटसाब कहते थे कि...
 ‘कुणाल..एक शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है और राष्ट्र बनाता है।’
तभी से उसने ठान लिया था कि बड़ा हो कर वह भी शिक्षक ही बनेगा।

उसके ग्रेजुएशन के बाद नियोजन इकाइयों में व्याप्त भ्रष्टाचार ने उसके शिक्षक बनने की संभावनाओं को जब ख़ारिज कर दिया तो वह MBA कर के लखनऊ में बैंक मैनेजर हो गया। पर जब TET के रूप में एक उम्मीद दिखी तो उसके सपने फिर उड़ान भरने लगे। उसके जैसे कामयाब विद्यार्थी के लिए यह परीक्षा मुश्किल नहीं थी और अगले एक साल में ही वह सीवान के प्रखंड नियोजन समिति के ऑफिस में नियुक्ति पत्र लेने के लिए खड़ा था। नियुक्ति पत्र के वेतन वाले कालम में 10500 लिखा देख कर वह मुस्कुराया। उसे पता था कि तनख्वाह में अंको की संख्या में कमी उसके हौसलों को नहीं रोक पायेगी। उसे राष्ट्र निर्माता बनना था।

घर से 14 KM दूर मध्य विद्यालय शक्ति नगर में योगदान के दिन ही उसने प्रधानाध्यापक से निवेदन कर सबसे ऊँचे 8वें क्लास के क्लास-टीचर का प्रभार संभाला और जी जान से जुट गया। पहली घंटी अंग्रेजी की थी और उसके होश उड़ गए जब उसने देखा कि किसी बच्चे को अभी ग्रामर का A B C D भी सही से पता नहीं।
उसने लिखवाने के लिए कॉपी निकलवाई तो आधे से ज्यादा बच्चों के पास कॉपी नहीं थी। वह कुर्सी में धस सा गया। अचानक शोरगुल सुनकर वह बाहर निकला तो देखा कि एक अभिभावक आये थे और प्राधानाध्यापक से उलझे हुए थे।

अभिभावक  - ‘हमको जात पात मत पढ़ाओ महटर् हमारे बेटे की छतरबिरति काहे नहीं मिली ई बताओ..’

प्रधानाध्यापक - ‘अरे मैं कितनी बार कह चूका कि सामान्य कोटि के छात्र को छात्रव्रिति नहीं मिलती..’

अभिभावक - ‘अरे चुप सरवा..करेगा तमासा कि देगा पैसा चुप चाप!’

कुणाल के अंदर का मैनेजर जग गया। वह वहाँ क़रीब जाकर बोला - 'अरे सर बैठिये तो हम आपको सब…'

अभिभावक - ‘अरे चुप.. तू कौन है रे? ई कवन शिक्षा मित्र आया है मास्टर?’

कुणाल -  ‘सर हम शिक्षा मित्र नहीं, हम TET से आये हैं।’

अभिभावक - ‘चुप सरवा… दस हजरिया मास्टर शिक्षा मित्र नहीं तो और क्या है रे? साला पढ़े का ढंग नही मास्टरी करेंगा।'

कुणाल चुपचाप अपने क्लास में घुस गया।

इन दिनों उसने देखा कि शिक्षकों के प्रति सबके मन में नफरत है।
ठीक ठाक घरों के बच्चे सरकारी विद्यालय में नहीं आते और जो आते हैं उनके पास कॉपी पेन तक नही होता। विद्यालय में आते अभिभावकों में उसे एक भी ऐसा नहीं मिला जो बच्चे की पढ़ाई के बारे में शिकायत ले कर आया हो। जो भी आते थे वो MDM को लेकर या पोशाक या छात्रवृति की राशि के लिए ही गाली देते आते। जिन लोगों को ठीक से बोलना नहीं आता वे भी मास्टर के नाम पर मुह बिचकाते थे।

‘कौन मास्टर? शिक्षा मितर… 
ओओ भक..’

पर उसने सोचा, ये मुर्ख मेरे हौसलों को नहीं तोड़ पाएँगे। तीन महीने हो गए थे उसे ज्वाइन किये हुए; पर उसने देखा कड़ी मेहनत करने के बावजूद बच्चों में आपेक्षिक सुधार नहीं हुआ था। एक दिन गुस्साके कुणाल ने कई छात्र/छात्रों को पीट दिया। पर गलती यह हुई कि पिटाने वालों में एक छुटभैये दलित नेता का बेटा था। फिर क्या था, अगले दिन अख़बार की हेडलाइन थी, ‘शिक्षामित्र ने दिखाई क्रूरता,छात्रों को दौड़ा कर पीटा।’

उस दिन उसके विद्यालय में 4 पत्रकारों के साथ नेताजी मौजूद थे अपने चालीस पचास समर्थकों के संग। सबके सुर एक ही था ‘सब साले दस हजरिया मास्टर अन्हरा हो गए हैं'। पढ़ाने का ढंग नहीं बस मारते रहते है। आज साले को बिना हाथ पैर तोड़े जाने नहीं देना है।’

किसी तरह प्रधानाध्यापक ने कुणाल को पीछे के दरवाज़े से बाहर कर निकाले। कुणाल 40-50 की स्पीड से पीछे की ओर से भागता हुआ 14 किमी बाद घर पहुच कर सीधे बिछावन पर गिर गया। उसे याद आया, बैंक से रिजाइन देते समय उसके रीजनल मैंनेजर ने कहा था, ‘कुणाल मैं जानता हूँ.. तुम नहीं रह पाओगे वहाँ.. जब राष्ट्रनिर्माण से मन भर जाये तो मुझे बताना.’ तुम्हारे जैसे अच्छे कर्मचारियों के लिए यहाँ हमेशा जगह ख़ाली रहेगी।
फिर उसने तकिये से अपने माथे का पसीना पोंछा और मोबाइल निकाल कर नंबर डायल किया- RM IDBI

" शिक्षकों‬ की वास्तविक पीड़ा "

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

सहयोग नही कर सकते तो कम से कम अवरोध न पैदा कीजिये


आज उत्तर प्रदेश में बड़े, छोटे, निरहू, घुरहू सब बिना हाथ धोये प्राइमरी स्कूल के पीछे पड़े हैं,

पता नही कौन सी ब्यार चली है?

समझ नही आ रहा। जिन्होंने कभी कॉलेज नही देखा, वो सुबह स्कूल चेक करने निकलतें है।
अगर सरकार को लगता है कि प्राइमरी स्कूल पर पैसा  बेकार खर्च हो रहा है तो प्राइमरी स्कूल बंद क्यों नही कर देती सरकार ?

देश का प्रधानमंत्री झाड़ू लगाए तो वाह वाह,
बच्चा इसमें हाँथ बटा दे तो मास्टर ससपेंड !


खुले में शौच से मुक्ति के लिए सुबह 4 बजे गांव में टीम तैनात, कि कोई जंगल मे कर न पाए, अरबों रुपए स्वच्छ भारत मिशन में लगाए गए,

माननीय प्रधानमंत्री जी एक टीम स्कूल के लिए भी बना दीजिये, कि गांव में कोई बच्चा स्कूल समय मे घूमता नही दिखे |

  • खाना बनवाये मास्टर
  • कपड़ा सिलवाए मास्टर
  • फल बटवाये मास्टर
  • दूध पिलाये मास्टर
  • झाड़ू लगाए मास्टर
  • स्कूल के कमरे बनवाये मास्टर
  • स्कूल पुतवाये मास्टर
  • किताब बांटे मास्टर
  • चुनाव कराए मास्टर
  • पेट के कीड़े मारे मास्टर
  • पोलियो मिटाए मास्टर
  • जनगणना करे मास्टर
  • बोर्ड एग्जाम कराए मास्टर
  • प्रशिक्षण भी कराए मास्टर


अब बताओ पढ़ाई क्या क्या कराएगा मास्टर !
और तुलना प्राइवेट स्कूल से , कि वहां पढ़ाई बहुत अच्छी होती है।


प्राइवेट विद्यालयों से तुलना

वहां मां बाप 2 रोटी पेट मे और 2 टिफिन में रखकर उसको स्कूल भेजकर आतें है और छुट्टी से 10 मिनट पहले लेने पहुच जाएं है और यहां मंजन तक नही कराते और भेज देतें है जाओ मास्टर है स्कूल में तुमको पालने के लिए |

कभी किसी डॉक्टर से कहा गया कि पहले गांव में जाकर मरीज ढूढ़कर लाओ और फिर उसका इलाज करो। किसी अधिकारी से नही कहा गया कि गांव में जा के देखो कि क्या परेशानी है। फिर काम करो। वहां तो सीधा फरमान जारी होता है कि  10 बजे से 12 बजे तक अधिकारी एसी में अपने कार्यालय में बैठकर सबकी समस्याएं सुनेंगे और आफिस में ही जांच करेंगे, फरियादी उनके पास आयेगा,
इतना ही नहीं प्राइमरी का मास्टर पहले आपके लाड़ले को बिस्तर से उठाए और अपने साथ स्कूल ले जाये
और वहां नहला धुलाकर तैयार कर नाश्ता कराये और फिर पढ़ाये और आपके घर छोड़ने आये |


शिक्षकों की तन्ख्वाय 

अध्यापक की सैलरी पर सभी ताना देतें है,
कभी किसी बाबू पर भी उंगली उठाई है किसी ने ?
उनको तो बाबू जी 😡
(क्योकि बाबूजी बिना दुत्कारे और रिश्वत लिए कोई काम नहीं करते)

अगला आधा महीना बीतने तक भी वेतन के दर्शन नहीं होते शिक्षक को


शिक्षकों की छुट्टी

साल में कम से कम 10 रविवार को भी स्कूल में रहता है मास्टर, लेकिन कहते हैं मास्टर की छुट्टी बहुत हैं
उनकी छुट्टियों की कोई गणना नहीं करता जिनकी त्योहारों के साथ-साथ प्रत्येक शनिवार और रविवार की भी रहती है |


इतना ख्याल तो मास्टर कभी अपने बच्चों का भी नहीं रख पाता !
स्कूल में कोई जानवर बाँधता है,
कोई अनाज रखता है वगैरह-वगैरह और झाड़ू लगाए मास्टर।


अगर आप सहयोग नही कर सकते तो कम से कम अवरोध न पैदा कीजिये |
(एक शिक्षक की व्यथा)