शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

 हठ कर बैठा मास्टर एक दिन...
मन्त्री से यह बोला,
दिलवा दो मन्त्री जी मुझको...
एक ठौ उड़न खटोला।
सड़कें सारी टूटी-फूटी...
कैसे गाड़ी चलाऊँ,
समय पर यदि मैं पहुँच न पाऊँ...
तो सेल्फी कैसे भिजवाऊँ।
मांग मेरी छोटी सी है सर...
दे दो एक चपरासी,
नमक मसाला तेल दूध
और फल लाए सब्ज़ी ताजी।
कोटेदार से राशन लाए...
गेहूं भी पिसवाए,
गैस अगर चुक गई अचानक...
सिलेंडर भी भरवाए।
एक समस्या और है सर जी...
उसको भी सुन लीजै,
जहाँ हैं केवल दो ही मास्टर...
तीन तो कर ही दीजै।
एक अगर बीमार पड़ा गर...
छुट्टी तो मिल जाए,
एक अकेला अध्यापक सब...
कक्षा कैसे पढाए।
एक सूचना बार-बार सर...
देना ही पड़ता है,
फोटो कापी करवाने को सर...
आना ही पड़ता है।
अब तो आप बताएं सर जी...
कैसे काम चलाऊँ,
एक अकेला अध्यापक हूँ..
सेल्फी कैसे भेजवाऊँ।
और भी बहुत समस्या है सर...
क्या क्या मैं गिनवाऊँ।।
😀😀

 🚩 *कंजूसी मत करें* 🎪

*जिस दिन हमारी मौत होती है, हमारा पैसा बैंक में ही रह जाता है।*

*जब हम जिंदा होते हैं, तो हमें लगता है कि हमारे पास खच॔ करने को पर्याप्त धन नहीं है।*

*जब हम चले जाते हैं, तब भी बहुत सा धन बिना खर्च हुये बच जाता है।*

*एक चीनी बादशाह की मौत हुई। वो अपनी विधवा के लिये बैंक में 1.9 मिलियन डालर छोड़ कर गया। विधवा ने जवान नौकर से शादी कर ली। उस नौकर ने कहा, मैं हमेशा सोचता था कि मैं अपने मालिक के लिये काम करता हूँ, अब समझ आया कि वो हमेशा मेरे लिये काम करता था।*

        *सीख ?*

 *ज्यादा जरूरी है कि अधिक धन अर्जन की बजाय अधिक जिया जाय।*

*• अच्छे व स्वस्थ शरीर के लिये प्रयास करिये।*
*• मँहगे फोन के 70% फंक्शन अनोपयोगी रहते हैं।*
*• मँहगी कार की 70% गति का उपयोग नहीं हो पाता।*
*• आलीशान मकानों का 70% हिस्सा खाली रहता है।*
*• पूरी अलमारी के 70% कपड़े पड़े रहते हैं।*
*• पूरी जिंदगी की कमाई का 70% दूसरों के उपयोग के लिये छूट जाता है*
*• 70% गुणों का उपयोग नहीं हो पाता।*

*तो 30% का पूण॔ उपयोग कैसे हो ?*

*• स्वस्थ होने पर भी निरंतर चेक-अप करायें।*
*• प्यासे न होने पर भी अधिक पानी पियें।*
*• जब भी संभव हो, अपना अहं त्यागें ।*
*• शक्तिशाली होने पर भी सरल रहें।*
*• धनी न होने पर भी परिपूर्ण रहें।*

*बेहतर जीवन जीयें!*
👌🏻👌🏻
*▪️काबू में रखें - प्रार्थना के वक़्त अपने दिल को!*
*▪️काबू में रखें - खाना खाते समय पेट को!*
*▪️काबू में रखें - किसी के घर जाएं तो आँखों को!*
*▪️काबू में रखें - महफिल मे जाएं तो जबान को!*
*▪️काबू में रखें - पराया धन देखें तो लालच को!*
👌🏻👌🏻
*➡️भूल जाएं - अपनी नेकियों को!*
*➡️भूल जाएं - दूसरों की गलतियों को!*
*➡️भूल जाएं - अतीत के कड़वे संस्मरणों को!*
👌🏻👌🏻
*🔅छोड दें - दूसरों को नीचा दिखाना!*
*🔅छोड दें - दूसरों की सफलता से जलना!*
*🔅छोड दें - दूसरों के धन की चाह रखना!*
*🔅छोड दें - दूसरों की चुगली करना!*
*🔅छोड दें - दूसरों की सफलता पर दुखी होना!*
👌🏻👌🏻
*यदि आपके फ्रिज में खाना है, बदन पर कपड़े हैं, घर के ऊपर छत है और सोने के लिये जगह है, तो दुनिया के 75% लोगों से धनी हैं |*

*यदि आपके पर्स में पैसे हैं और आप कुछ बदलाव के लिये कहीं भी जा सकते हैं जहाँ आप जाना चाहते हैं, तो आप दुनिया के 18% धनी लोगों में शामिल हैं।*

*यदि आप आज पूर्णतः स्वस्थ होकर जीवित हैं, तो आप उन लाखों लोगों की तुलना में खुशनसीब हैं जो इस हफ्ते जी भी न पायें।*

*जीवन के मायने दुःखों की शिकायत करने में नहीं हैं, बल्कि हमारे निर्माता को धन्यवाद करने के अन्य हजारों कारणों में है!*

*यदि आप मैसेज को वाकइ पढ़ सकते हैं, और समझ सकते हैं, तो आप उन करोड़ों लोगों में खुशनसीब हैं जो देख नहीं सकते और पढ़ नहीं

 अध्यापिका की जिंदगी का एक दिन

अध्यापिकाएं हड़बड़ी में निकलती हैं रोज सुबह घर से

आधे रास्ते में याद आता है सिलेंडर नीचे से बंद किया ही नहीं

उलझन में पड़ जाता है दिमाग

कहीं गीजर खुला तो नहीं रह गया

जल्दी में आधा सैंडविच छूटा रह जाता है टेबल पर



कितनी ही जल्दी उठें और तेजी से निपटायें काम विद्यालय पहुँचने में देर हो ही जाती है

खिसियाई हंसी के साथ बैठती हैं अपनी सीट पर

इंचार्ज के बुलावे पर सिहर जाती हैं

सिहरन को मुस्कुराहट में छुपाकर

नाखूनों में फंसे आटे को निकालते हुए

अटेंड करती हैं

काम करती हैं पूरी लगन से

पूछना नहीं भूलतीं बच्चों का हाल

सास की दवाई के बारे में

उनके पास नहीं होता वक्त पान, सिगरेट या चाय के लिए

बाहर जाने का

उस वक्त में वे जल्दी-जल्दी निपटाती हैं काम

ताकि समय से काम खत्म करके घर के लिए निकल सकें.

दिमाग में चल रही होती सामान की लिस्ट

जो लेते हुए जाना है घर

दवाइयां, दूध, फल, राशन

विद्यालय से निकलने को होती ही हैं कि

तय हो जाती है कोई ट्रेनिंग

जैसे देह से निचुड़ जाती है ऊर्जा

बच्चे की मनुहार जल्दी आने की

रुलाई बन फूटती है वाशरूम में

मुंह धोकर, लेकर गहरी सांस

शामिल होती है ट्रेनिंग में

नजर लगातार होती है घड़ी पर

और ज़ेहन में होती है बच्चे की गुस्से वाली सूरत

साइलेंट मोड में पड़े फोन पर आती रहती हैं ढेर सारी कॉल्स

दिल कड़ा करके वो ध्यान लगाती हैं ट्रेनिंग में

घर पहुंचती हैं सामान से लदी-फंदी

देर होने के संकोच और अपराधबोध के साथ

शिकायतों का अम्बार खड़ा मिलता है घर पर

जल्दी-जल्दी फैले हुए घर को समेटते हुए

सबकी जरूरत का सामान देते हुए

करती हैं डैमेज कंट्रोल

मन घबराया हुआ होता है कि कैसे बतायेंगी कैसे मनायेंगी सबको

विद्यालय में सोचती हैं

कितनी बार कहेंगी घर की समस्या की बात

अध्यापिकाएं सुबह ढेर सा काम करके जाती हैं घर से

कि शाम को आराम मिलेगा

रात को ढेर सारा काम करती हैं सोने से पहले

कि सुबह हड़बड़ी न हो

विद्यालय में तेजी से काम करती हैं कि घर समय पर पहुंचे

घर पर तेजी से काम करती हैं कि विद्यालय समय से पहुंचे

हर जगह सिर्फ काम को जल्दी से निपटाने की हड़बड़ी में

एक रोज मुस्कुरा देती हैं आईने में झांकते सफ़ेद बालों को देख

किसी मशीन में तब्दील हो चुकी अध्यापिकाओं से

कहीं कोई खुश नहीं न घर में, न विद्यालय में न मोहल्ले में,फिर भी कोशिश यही रहती है हर समय सबको खुश रख सकें।😊🙏

💐💐 *सम्माननीय शिक्षिका बहनों को समर्पित।*🙏🙏
साभार सोशल मीडिया

 *शिक्षकों के बीच बढ़ती दूरियां*
पिछले कुछ वर्षों में अनुभव किया है कि शिक्षकों के बीच अब बहुत मनमुटाव है , अब, वे टीम नहीं बना पा रहे , न ज्यादा कोई किसी के बारे में जानता है और न ही जानना चाहता है जबकि पहले के समय मे इसके ठीक विपरीत था - पुराने शिक्षक आज भी अगर कहीं मिल जाएंगे तो वो एक दूसरे साथी की पूरी जन्मकुंडली तक बता देंगे । आज के समय मे अब ये लगभग खत्म हो रहा है । कारण कई हैं इसके -
क्षेत्रीय शिक्षकों का न होना , आपसी जुड़ाव की भावना खत्म होना , अपने काम से काम रखना , नैतिकता का पतन होना, दूसरे का कार्य मैं क्यों करूँ का भाव आदि ।
पिछले कुछ समय को देखूँ तो पाता हूँ कि अब ये खाई और बढ़ रही है , हर विद्यालय में आप अगर अलग अलग बात करें शिक्षकों से तो आप पाएंगे कि हेडमास्टर / इंचार्ज अपने सहायक शिक्षकों से असंतुष्ट नजर आएगा और सहायक शिक्षक अपने हेडमास्टर / इंचार्ज से । कारण भी हैं इसके ऐसा होने के । टीम भावना लगभग खत्म है । बस विद्यालय समय से पहुंचना है उसके बाद तुम कौन ? ये भावना प्रबल है । मैं बेसिक के विद्यालयों में योजनाओं के क्रियान्वित न हो पाने में एक कारण इसे भी मानता हूँ ।
मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं कि आजकल योजनाएं भी ऐसी ही बन रही हैं कि अब ये खाई और बढ़ती जा रही है , स्थिति ये आ रही है कि आखिर मुझसे क्या ? तुम जिम्मेदार हो इसके लिए , ये तो तुम्हारे जिम्मे था , हमसे क्या , कार्यवाही तुम पर होगी हमसे क्या ।
मुझे लगता है कि शिक्षा विभाग और शिक्षाविदों को एकबार इस विषय पर सोचना पड़ेगा , जिम्मेदारी तय होनी चाहिए ये एकदम सही है लेकिन कुछ छूट रहा है जिसके चलते विद्यालयों में अब टीम भावना नहीं बन पा रही । एक दूसरे के प्रति मनमुटाव / खाई बढ़ रही है । इसके लिए कोई गूगल मीट / यू ट्यूब सेशन / ऑनलाइन प्रशिक्षण दे देने से काम नहीं बनने वाला । आवश्यकता कुछ और है । समझना पड़ेगा इस आवश्यकता को कि ये दूरियां कम कैसे हों , क्या प्रशासनिक स्तर पर तो कुछ ऐसे निर्णय नहीं लिए जा रहे जिसका असर यहां दिख रहा है ।इसपर विचार करने की आवश्यकता है अगर भविष्य में इन सरकारी विद्यालयों में एक बेहतर नींव चाहते हैं तो ।
      ख़ैर आपको क्या लगता है कि ये दूरियां आपको भी नजर आ रही हैं ? अगर हाँ तो कैसे इन्हें काटा जा सकता है ?

कुछ अध्यापक खुद को ही सर्वश्रेष्ट समझते है कि मैं ही हु जो सब कुछ जानकारी रखता हूं और सामने वाले को ज्ञान नही है वो na समझ है उसको शिक्षक किसने बना दिया है जबकि हर व्यक्ति किसी ना किसी कार्य मे निपुण जरूर होता है ,,हो सकता कुछ शिक्षक अच्छा बोल लेते है कुछ अच्छा लिख लेते है और कुछ शिक्षक 1 या 2 क्लास को बेहतर पढ़ाते है कुछ बड़ी कक्षाओं के बच्चो को सभी अपनी योग्यता और बुद्धि के बल पर ही  नॉकरी पाए है किसी को कमजोर न समझते और साथ मिलकर एक दूसरे का सहयोग करे ।।

एकता में शक्ति होती है ।।

प्यार ,दोस्ती और सहयोग का हाथ हमेशा आगे रखे ।।

 

🙏🙏🙏🙏

 अगर आप स्कूल सही समय पर जाने के लिए चिंतित नहीं है...अगर आपको मॉर्निंग असेम्बली में जाना बोरियत भरा लगता है...अगर आप बालको को संबोधित करने में कतराते हैं...अगर आपको कक्षाओं में जाना मजबूरी सा लगता है...अगर आप अपने हिस्से में ज्यादा कालांश आने पर तर्क और विरोध करते है...अगर आप अगले दिन की विद्यालय की गतिविधियों को लेकर उत्साहित नही हैं..अगर आप स्कूल के कामों को ये कह कर टाल देते है की ये काम मेरा नही है ..ये मेरा प्रभार नही है...
           
*अगर आपका उद्देश्य सिर्फ वेतन के लिए उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर करना है..अगर आप कक्षा कक्ष से अधिक स्टाफ रूम व अन्य जगहों पर बैठे पाए जाते हैं..*

अगर आप बालको के चरित्र निर्माण में कोई योगदान नहीं देते..अगर आप स्कूल लेट आना तो पसंद करते हैं लेकिन स्कूल समय के अतिरिक्त रुकना नियम विरुद्ध मानते हैं...अगर आप स्कूल के धन, संसाधन से कुछ हिस्सा अपने लिए बरतना चाहते हैं..

*अगर आप बालकों को पढ़ाने के बजाय स्टाफ गुटबंदी व वाहियात वाद विवाद का हिस्सा बनते है...अगर आप बालकों को किताबी और जीवन का व्यवहारिक ज्ञान देने के बजाय साम्प्रदायिक,राजनीतिक,जातीय व गैर जरूरी ज्ञान पर फोकस करते हैं... अगर आपके लिए बालक का जीवन निर्माण सर्वोपरि नहीं है..अगर आप हमेशा वेतन गणना व स्वयं के वेतन को लेकर चिंतित रहते है..और स्कूल की समस्याओं को संस्था प्रधान की निजी समस्या मान कर सन्तुष्टि धारण कर लेते हैं....अगर आप विद्यालयी व्यवस्था में सहयोग नहीं करते हैं....*

*अगर आप विद्यालय समय में वो सारे काम करते है जिनके लिए आपकी नियुक्ति नहीं हुई...तो यकीन मानिए आप शिक्षक  हैं ही नहीं...आप सिर्फ पैसा कमा रहे है और वो भी गलत तरीके से..*

*आगे इस बात के लिए भी निश्चिंत रहिए कि यदि इस दुनिया के परे कोई अन्य समानांतर दुनिया है जहां आपके कर्मों के हिसाब से निर्णय लिए जाते है ....तो आप निःसंदेह दंड के भागी होंगे...आप वही काटेंगे जो आपने बोया है....*

*चन्द्र जीत सिंह*(स.अ.)
 *प्र.वि. गढ़वा-सिलमी*
*विजयीपुर-फतेहपुर*

सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

आत्ममंथन - अध्यापक में कुछ अवगुण

आत्ममंथन - अध्यापक में कुछ अवगुण

आत्ममंथन

      अध्यापक में कुछ अवगुण

        "आओ मिल कर दूर करें"

1). प्रातःकालीन सभा के लिए, या लंच ऑफ करने के लिए घण्टी समय पर लगवानी है,इसका ध्यान कुछ अध्यापक बिलकुल नहीं रखते । उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि घण्टी समय पर लगी या नहीं । उन्हें ये लगता है कि ये सिर्फ हेड को ध्यान रखना है या उन 1-2 अध्यापक का काम है जो लगभग स्कूल की सभी व्यवस्थाओं को हर समय दुरुस्त करने का काम करते हैं ।

2). कुछ अध्यापक ऐसे होते हैं,जिन्हें ये तो पता है कि मुझे 8:30 बजे से 1 भी मिनिट पहले स्कूल नही पहुँचना,दूसरी ओर 3:00 बजे से पहले ही हाजिरी रजिस्टर/बायोमेट्रिक के पास आकर बैठ जाना है । 1 मिनट भी फ़ालतू समय स्कूल को नहीं देना । लेकिन दूसरी तरफ यही अध्यापक तब भी बड़े आराम से बैठे गप्पे मार रहे होते हैं जबकि लंच ब्रेक ऑफ होने की घण्टी बज चुकी होती है । वो इतना जहमत नहीं उठाते कि अब सभी बच्चों को कक्षा में बैठा दें । ये काम भी 1-2 अध्यापकों या स्कूल मुखिया को ही करना पड़ता है ।

3). कुछ अध्यापक प्रातःकालीन सभा में झुण्ड में एक तरफ अपने हाथ बांधे इस तरह खड़े हो जाएंगे जैसे कि वो प्रातःकालीन सभा में मेहमान हैं । अपनी कक्षा के बच्चों की लाइन लगवाना,प्रातःकालीन सभा में कुछ ज्ञानवर्धक बोलना या बच्चों को कुछ आदतें सिखाना,ऐसा ख्याल इनके मन में आना न के बराबर है ।

4). कुछ अध्यापक नहीं चाहते कि प्रातःकालीन सभा में सभी गतिविधियाँ हों । वे चाहते हैं कि बस प्रार्थना और राष्ट्रगान कराके बच्चों को कक्षाओं में भेज दो । कोई अध्यापक प्रातःकालीन सभा को बढ़िया तरीके से संचालित करता है तो ये रुचि न दिखाने वाले अध्यापक उससे बड़े परेशान रहते हैं  । ये मन ही मन में यही सोचते हैं कि कब ये यंहा से जाएगा ! अगर कभी प्रातःकालीन सभा लम्बी हो भी गयी तो ये छाया और कुर्सी ढूंढते फिरते हैं । इतनी भी हिम्मत नहीं होती कि ये कुछ देर खड़े हो सकें ।

5). कुछ अध्यापक ऐसे मतलबी हैं जब इनको खुद का काम निकलवाना होता है तो बहुत मीठे बन जाते हैं और स्कूल मुखिया का भी जमकर इस्तेमाल करते हैं लेकिन जब स्कूल मुखिया उनसे ये अपेक्षा रखता है कि वो स्कूल में अपने कार्य के प्रति पूरी निष्ठा से काम करें तब इनका सहयोग न के बराबर होता है । तब न तो वो स्कूल मुखिया को कुछ समझते हैं और न ही कोई कार्य ढंग से करते हैं । मुखिया को सम्मान देना तो दूर की बात कभी कभी दुर्व्यवहार करने से भी पीछे नहीं रहते ।

6). कुछ अध्यापक होते तो हैं किसी कक्षा के इंचार्ज,लेकिन उनका हाजिरी रजिस्टर बड़ा अस्त-व्यस्त होता है । कितने बच्चे हैं,किसका नाम कटा है,कौन आता है आदि-आदि कुछ नहीं पता होता । उससे ज्यादा ज्ञान उनकी कक्षा के बच्चों को होता है ।

7). कुछ अध्यापक किसी कक्षा के इंचार्ज,दाखिला रजिस्टर के इंचार्ज या रिजल्ट रजिस्टर के इंचार्ज होते हैं लेकिन उसमें भी लापरवाही बरतते हैं । खुद उनको दुरुस्त रखते नहीं,बल्कि उनको पूरा करने के लिए भी वो विद्यार्थियों की या अन्य साथी अध्यापक की मदद लेते हैं । उनकी इस तरह की लापरवाही से बाद में स्कूल को बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है ।

8). कुछ अध्यापक अपने आपको तो बहुत सलीके से रखेंगे,अच्छे कपड़े पहनेंगे,खुद को थोड़ी सी मिटटी भी नहीं लगने देंगे,चाक को तो जैसे छूने से उनको एलर्जी ही हो जायेगी । लेकिन विद्यार्थियों की,कक्षा-कक्ष की या स्कूल की साफ़ सफाई से उन्हें कोई लेना देना नहीं । खुद के लिए कुर्सी और मेज जरूर चाहिए लेकिन बच्चों को जब चाहा वंही बैठा दिया चाहे धुल-मिटटी हो या आसपास गन्दगी । विद्यार्थियों से भी दूरी बनाकर रखेंगे जाने क्यों ?

9). कुछ अध्यापक सारा सारा दिन निकाल देते हैं लेकिन बच्चों को एक अक्षर तक नहीं सिखाते । या तो वो कक्षा में ही नहीं जाते और चले गए तो भी सिवाए बैठे बैठे कुर्सी तोड़ने के कुछ नहीं करते ।

10). कुछ पढ़ाने के नाम पर भी औपचारिकता करते हैं । बच्चों को कभी भी कुछ सिखाएंगे नहीं और न ही पढ़ाएंगे । सीधे कह देंगे कि प्रश्न-उत्तर याद कर लो ।

उपरोक्त कमियां सिर्फ एक ही स्कूल के अध्यापकों में नहीं  है,बल्कि कई स्कूलों में ऐसा बुरा हाल है । स्कूलों की ऐसी दुर्गति करने में किसी एक का नहीं बल्कि कई अध्यापकों का हाथ है चाहे वो गेस्ट  टीचर हो  बीएड वाले हो या रेगुलर टीचर हो, चाहे महिला हो या पुरुष ।

 ऐसा नहीं है कि इस तरह की कमियों वाले अध्यापकों की हरकतों को हर कोई स्कूल मुखिया नजरअंदाज कर देता है । कई स्कूल मुखिया ऐसे हैं जिन्होंने बहुत सुधार की कोशिश की लेकिन बदले में उन्होंने बहुत सहना पड़ा ।

आखिर में जब इस तरह के अध्यापक मानवीयता के बिलकुल निम्न स्तर पर आ जाते हैं तब स्कूल मुखिया भी ये सोचता है कि कब मुझे इस स्कूल से मुक्ति मिले और कोई अच्छी सी जगह ट्रान्सफर हो

ये दस(10) बिन्दु कुछ अध्यापकों को शायद बहुत ज्यादा चुभें और ये भी विश्वास है कि उन्हीं को चुभेंगे जिनके अंदर ऐसे अवगुण हैं ।
(एक आदर्श अध्यापक की पोस्ट को पुनः भेज रहा हूं)
आओ हम सभी आदर्श टीचर बन कर दिखाएं...

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

नौकरी करने के मूल मंत्र






बने रहो पगला,
काम करेगा अगला |

बने रहो कूल,
सेलरी लेओ फुल |

जिसने ली टेंशन,
उसकी वाइफ लेगी पेंशन |

काम से डरो नहीं,
और काम को करो नहीं |

काम करो या ना करो,
काम की फिक्र जरूर करो |

फिक्र करो या ना करो,
फिक्र का जिक्र साहब से जरूर करो |

जो काम करे उसे ऊँगली करो,
जो काम ना करे उसकी चुगली करो |




रविवार, 5 नवंबर 2017

बेसिक परिवर्तन बेहद ज़रूरी

बेसिक परिवर्तन बेहद ज़रूरी

एक रुपये में तीन अठन्नी भुन जाती हैं 'बेसिक' में।
मिल जाती हैं सभी खूबियाँ एक अकेले शिक्षक में।
वही पढ़ाये, वही खिलाये, राशन ढोकर लाये।
दूध पिलाये, फल बंटवाये, ईंधन स्वयं जुटाये।
टेंडर लेकर, दर्जी चुनकर, कपड़े भी सिलवाये।
साफ़-सफाई, रंग-पुताई, बिल्डिंग तक बनवाये।
बिजली, पंखे, नल, शौचालय, सबको वही रखाये।
फर्श और खिड़की-दरवाजे, जब-तब सही कराये।
सत्यापन, सर्वेक्षण-ड्यूटी, जनगणना को जाये।
वोट बनाने घर-घर घूमे, निर्वाचन करवाये।
कभी रसोइया से उलझे, कभी स्वच्छकार टकराये।
शाला मानो खाला का घर, जो मर्जी घुस आये।
घर-खेतों में जाकर बच्चे टेर-टेरकर लाये।
बच्चों से ज़्यादा उनके अभिभावक को समझाये।
मीटिंग, रैली, पल्स-पोलियो, ऑडिट भी करवाये।
भाँति-भाँति की सूचनाओं को जैसे-तैसे जुटाये।
 
ढेर रजिस्टर लेकर बैठे, कॉलम भरता जाये।
आदेशों के चक्रव्यूह में घिरता-पिसता जाये।
बच्चों को एकाग्रचित्त से शिक्षक पढ़ा न पाये।
हसरत दिल में ही रह जाती, न्याय नहीं कर पाये।
उस पर भी अधिकारी आकर कमियां बीस गिनाये।
मनोव्यथा को नहीं समझकर दिल को और दुखाये।
जीभ के जैसा मानो शिक्षक, बत्तीसी के बीच।
जैसे - तैसे जान बचाकर बचपन रहा सींच।
प्राइवेट स्कूलों में ऑफिस व्यर्थ नहीं होता है।
शिक्षक केवल शिक्षण करने को स्वतंत्र होता है।
और वहाँ पर पीरियड-वाइज़ एक ही कक्षा लेता शिक्षक।
किन्तु यहाँ पर प्रायः दिन-भर कई कक्षाएं, एक ही शिक्षक।
वहाँ फेल करने की नीति, एक कक्ष में एक से बच्चे।
यहाँ उम्र से दाखिल होते, ऊँची कक्षा बच्चे कच्चे।
और एक कड़वी सच्चाई, शिक्षक भी स्वीकार करें।
कमी हमारी ओर से भी है, खुद में स्वयं सुधार करें।
समय का पालन, लगन से शिक्षण, इसमें ढील न छोड़ें।
जो कुछ भी हम कर सकते, उसमें बहाने न ओढ़ें।
शिक्षा क्षेत्र के वित्त प्रबंधन में भी दोष है दिखता।
कुल खर्चे में शिक्षक-वेतन 'अति-आनुपातिक' लगता।
उसमें से यदि पाँच फ़ीसदी भी विद्यालय में लगे।
काफी सूरत बदलेगी, किस्मत बच्चों की जगे।
और अंत में कहकर इतना बात करें हम पूरी।
बेसिक में 'बेसिक' परिवर्तन बेहद आज ज़रूरी।


प्रशांत अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
जिला बरेली (उ.प्र.)।

मास्टर बनने के बाद का डर

 
यह शब्द बचपन में कितना अच्छा लगता था लगता था कि जैसे मास्टर से ज्यादा पॉवरफुल पोस्ट दुनिया में कोई है ही नहीं, क्या रुतबा रहता है जब जिसको चाहा दो थप्पड़ लगा दिए, जिस बच्चे को जो हुक्म दे दिया वह दे दिया, जरा सा क्लास में चिल्ल पों सुनाई दी नहीं कि सबको मुर्गा बनने का  फरमान जारी हो गया, मज़ाल है कोई नाफरमानी कर जाए भला ..

घर में मम्मी-पापा तक कितना रुतबा मानते थे मास्टर साहब कहीं नाम न काट दे, जो भी स्कूल के सामने से गुजरता था वह भला मास्टर साहब से नमस्कार किये बिना कहाँ गुजरता था ..

मास्टर साहब जरा दूसरे क्लास में व्यस्त होते तो लगता अपने क्लास में रामराज्य आ गया उनकी उपस्थिति मात्र से कितना डर लगता था । एक ओर हम सब डरे डरे से रहते थे और दूजी ओर मास्टर साहब .. क्या रंगबाजी थी उनकी जैसे शहंशाह हो इस स्कूल रूपी रियासत के ..

तभी धोखे में कई बार मन ही मन मुराद मांग ली होगी की बड़े होकर हम भी मास्टर बनेंगे ..पर क्या पता था की बचपन की नासमझ मुराद वाकई एक दिन सच हो जायेगी ..

मास्टर तो हम बन गए पर बने प्राइमरी/जूनियर के मास्टर ..

सपना तो कुछ साकार होता दिखने लगा ,स्कूल के नाम पर दो लोगों का स्टाफ और ढेर सारे बच्चे ..लगा की अब पूरी मास्टरी चलेगी ..गाँव में लोग इज़्ज़त से बात करेंगे ,बच्चे ,जवान आते जाते नमस्कार करेंगे ..पर कुछ ही दिन की नौकरी के बाद जो हकीकत से पाला पड़ा वह बिलकुल अलग था ..

मास्टर साहब की इज़्ज़त और रुतबा तो उसी दिन धुल गया था जिस दिन बोरी में किताबें लेकर किसी तरह गिरते पड़ते स्कूल पहुंचाई थी इसके बाद mdm के आलू और सब्जी से भरा झोला टाँगे रोज़ जब स्कूल पहुँचते वो अलग, गैस सिलेंडर जिस दिन लाना ले जाना होता उस दिन गंदे कपडे पहने ही दिन गुजरा करता ..

इधर कुछ दिन से इस पर भी बड़ी सख्ती चल रही थी कि यदि किसी विद्यालय में घास बड़ी पाई गयी ,शौचालय गन्दा पाया गया, कमरो में जाला पाया गया तो कार्यवाही तय मानिए ..और कार्यवाही भी क्या सस्पेंड ..

                 बेसिक की नौकरी में छुटिटयां भले न तय हो, रविवार की छुट्टी पल्स पोलियो नहीं तो फिर blo के लिए  न्यौछावर होना तय मानिए, वहीं 15 अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्टूबर आदि आदि तो आपको बच्चों के बीच मनाने ही चाहिए .और हाँ उनमें जल्दी यानि 3/4 घंटे  में निपटने की न सोचना, पूरे दिन का कार्यक्रम का  आदेश आपके लिए पहले से ही तय कर दिया जाएगा और कहीं जल्दी ताला तो नहीं  लगा दिया इसकी निगरानी के लिए अंगौछा धारी नेताटाइप गाँव के नवयुवक, बुजुर्ग के साथ  छुटभैया पत्रकार कैमरे लिए चक्कर मार ही लेंगे ..

हाँ तो देखिये बातों बातों में असली बात तो भूल ही गया,मैं यह कह रहा था की बेसिक में छुट्टियां, वेतन मिलने की तारीख  आदि भले ही न तय हो पर सजा तय है .. हर बात की एक सजा--  "निलंबित यानि सस्पेंड "

सुबह 20 मिनट लेट पहुंचे - "सस्पेंड"

आप एकल विद्यालय में हैं ,सुबह कुछ ऐसा हुआ अचानक छुट्टी की जरूरत पड़ गयी ,विद्यालय बंद रहा  - "सस्पेंड"

गेंहू, धान की बोवाई, कटाई, मेला, सहालग, त्यौहार के आगे -पीछे बच्चे कम संख्या में उपस्थित हुए - "सस्पेंड"

बच्चे किताब नहीं पढ़ पाये  - "सस्पेंड"

बच्चे गिनती नहीं सुना पाये - "सस्पेंड"

बच्चे पहाड़ा नहीं सुना पाये  - "सस्पेंड"

बच्चे "उज्ज्वल", "आशीर्वाद" नहीं लिख पाये  - "सस्पेंड"

MDM मीनू के अनुसार नहीं  बना - "सस्पेंड"

MDM नहीं बना - "सस्पेंड"

फल नहीं बंटा - "सस्पेंड"

आदि आदि आदि ...

    मतलब बस यह कि कोई गाड़ी आकर रुकी नहीं कि आप स्वयं को सस्पेंड मान लें ..बल्कि कभी - कभी तो यह लगता है कि किसी अधिकारी या अधिकारी टाइप के आने पर कोई कोशिश करना भी व्यर्थ है आप उन साहब के इंट्री करते ही अपना झोला झंडा उठाकर उनको विद्यालय की चाभियां देते हुए हाथ जोड़कर साफ़ साफ़ पूछ लें कि -"साहब आप ये चाभियां लीजिये और  हमें इतना भर बता दीजिये की सस्पेंसन लेटर लेने कब आ जाये .."

क्योंकि आप कहाँ - कहाँ और किस -किस मापदंड पर खरे उतारेंगे वैसे भी अंत में होना यही है ।

तो भैया हाल यह है कि सस्पेंड होने का डर इस कदर दिलो -दिमाग पर छाया रहता है कि अधिकांश स्कूलों के हेड मास्टर या इंचार्ज दिन भर बरामदे में एक नज़र गेट की ओर गड़ाये बैठे रहते हैं कि कहीं कोई चेकिंग करने आ तो नहीं गया ..और यदि किसी समय कक्षा में व्यस्त भी हुए तो उनके कान में किसी मोटर साईकिल या कार की आवाज़ सुनायी पड़ते ही उनका दिल ऐसे घबरा जाता है की अब पूछिये मत .और यदि वह गेट की तरफ मुड़ गयी तब तो चेहरा ऐसा स्याह सफ़ेद की काटो तो खून नहीं ..

    कुल मिलाकर अब जाकर यह समझ आया कि बचपन की समझ वाकई नासमझ होती है तब की आँखों में बसा दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान मास्टर साहब आज चूहे से भी छोटे नज़र आते हैं जो एक एक पल डर डर के काटते हैं और जिनके लिए छुट्टी की घंटी एक ठंडी सांस के साथ यह अहसास देती है कि चलो आज का दिन कट गया।

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

शौचालय अभियान के नारे




घर की इज्जत बाहर न जाए,
शौंचालय घर में ही बनवाए ||


सुखीराम अब छोडो झाड़ी,
शौंचालय बनवा डालो पिछवाड़ी ||


माँ बहनों को होगी तभी सुविधा,
जब शौंच जाने में ना हो कोई दुविधा ||


लाइन किनारे बैठी चाची,
ट्रेन आई तो उठी हगासी ||


घर में जो शौंचालय बनवाए,
माँ बहनों की लाज बचाए ||


बेटी ब्याहो उस घर में,
शौंचालय हो जिस घर में ||


बहुत हो चुका अब ना करेंगे,
खुले में शौंच को बंद करेंगे ||


भैया भाभी शर्म करो,
खुले में हगना बंद करो ||


आँखों से हटाओ पटटी, 
खुले में न जाओ टटटी ||


लोटा बोतल बंद करो, 
शौचालय का प्रबन्ध करों ||


खुले में शौच, 
पिछड़ी हुर्इ सोच ||


खुले में शौच, 
जल्दी मौत ||


मेरी बहना मेरी माँ, 
खुले में जाना ना ना ना…. ||


शौचालय का करो प्रयोग, 
स्वच्छ रहो और बनो निरोग ||


मेरा सपना, घर परिवार का सपना,  
शौचालय  उपयोग ही, सम्मान है अपना ||