छेदी ने कहा...- "खबरदार मास्टर साहब!! अगर मुझे मारा तो!!! मैं गिनती नहीं जानता मगर आरटीई की धाराएँ मैं अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे गणित में नहीं, हिन्दी में समझाना आता है।"
गुरुजी चौराहों पर खड़ी मूर्तियों की तरह जड़वत हो गए। जो छेदी कल तक बोल नहीं पाता था, वो आज आँखें दिखा रहा है और मेरी बची खुची इज्ज़त की पोटली में छेद किए जा रहा है।
शोरगुल सुनकर प्रधानाध्यापक महोदय भी उधर आ धमके। कई दिनों से उनका कार्यालय से निकलना ही नहीं हुआ था। वे हमेशा विवादों से दूर रहना पसंद करते थे। वे अपने से वरिष्ठ अधिकारियों एवम् अफसरों से बनाकर चलना बख़ूबी जानते थे। इसी कला की निपुणता के कारण वे कई वर्षों से इसी विद्यालय में कुल्फी की तरह जमे हुए थे। इसलिए उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी छोड़ दिया था।
(खैर...आते ही उन्होंने छड़ी को तोड़ कर बाहर फेंका और..)
प्रधानाध्यापक - "सरकार का आदेश नही पढ़ा मास्टर साहब आपने? आप पर प्रताड़ना का केस दर्ज हो सकता है। रिटायरमेन्ट नज़दीक है आपका!! निलम्बन की मार पड़ गई तो पेन्शन के फ़ज़ीते पड़ जाएंगे। बच्चे न पढ़े तो कोई बात नहीं, पर प्रेम से पढ़ाओ। उनसे प्यार से निवेदन करो कि बेटा पढ़ लो।
समझते क्यों नहीं मास्टर साहब?? अगर कहीं शिकायत कर दी तो ?"
बेचारे गुरुजी पसीने पसीने हो गए। मानो हर बूँद से प्रायश्चित टपक रहा हो।
इधर छेदी "गुरुजी हाय हाय" के नारे लगाता जा रहा था और बाकी बच्चे भी उसके सुर में सुर मिलाकर पूरी कक्षा को गुलज़ार किए हुए थे।
प्रधानाध्यापक महोदय (छेदी को एक कोने में ले जाकर कहा)- "मुझसे कहो छेदी बेटे!! तुम्हें क्या चाहिए?"
छेदी - "जब तक गुरुजी मुझसे पूरी कक्षा के सामने माफ़ी नही माँग लेते हैं,तब तक हम शाला का बहिष्कार करेंगे। बस आप हमें बताएँ कि शिकायत पेटी कहाँ है?"
(समस्त स्टाफ आश्चर्यचकित था और पूरे विद्यालय में भय का वातावरण फैल चुका था। कुछ छात्रों का समूह तो मारे ख़ुशी के फूला नहीं समा रहा था। अब छात्र जान चुके थे कि उत्तीर्ण होना उनका कानूनी अधिकार है।)
बड़े सर ने छेदी से कहा - मैं उनकी तरफ से माफ़ी माँगता हूँ|
छेदी - "आप क्यों माँगोगे माफ़ी? जिसने किया है वही माफ़ी माँगे!! कक्षा में मेरा बहुत अपमान हुआ है, अतः गुरूजी ही माफ़ी मांगेंगे।"
(आज गुरुजी के सामने बहुत बड़ा संकट था। जिस छेदी के बाप तक को उन्होंने दण्ड, दृढ़ता और अनुशासन से पढ़ाया था, आज उनकी ये तीनों शक्तियाँ परास्त हो चुकी थीं। वे इतने भयभीत हो चुके थे कि एकान्त में छेदी के पैर तक छूने को तैयार थे, लेकिन सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगकर गुरूता के ग्राफ को सरेआम गिराना नहीं चाहते थे। छड़ी के संग उनका मनोबल ही नहीं, परम्परा और प्रणाली भी टूट चुकी थी। सारी व्यवस्था नियम कानून एक्सपायर हो चुके थे। कानून क्या कहता है, अब ये बच्चों से सीखना पड़ेगा??)
अन्तिम पड़ाव पर गुरु द्रोण स्वयं चक्रव्यूह मे फँस जाएँगे!!
वे प्रण कर चुके थे कि कल से बच्चे जैसा कहेंगे, वैसा ही वे करेंगे। तभी बड़े सर उनके पास आकर बोले, "मैं आपकी स्थिति को समझ रहा हूँ किन्तु इस वक़्त आपको समझा रहा हूँ। वह मान गया है और अन्दर आ रहा है। उससे माफ़ी माँग लो, समय की यही जरूरत है।"
प्रधानाध्यापक महोदय का कक्ष...
अन्दर अकेले मास्टर साहब ज़मीन में सिर गड़ाए कुर्सी पर बैठे हुए हैं।
वातावरण में एक अज़ीब सी घुटन भरी बोझिल सी ख़ामोशी...
छेदी अन्दर प्रवेश करता है और हवा के एक तेज झोंके ने शर्मिन्दा होकर द्वार बंद कर दिए...
और फिर...
अब कलम को चाहिए कि यहीं थम जाए
"कई बार मौन की भाषा संवादों पर भारी पड़ जाती है|"
गुरु जी, छेदी और RTE की धाराएँ
4/
5
Oleh
Harshit