सरकारी स्कूल में पढ़ाना सिर्फ पढ़ाना भर नही होता यह पढ़ना होता है हालात को जिनमें हमारे बच्चे रह रहे हैं जी रहे हैं.एक ही क्लास में एक को बीस तक पहाड़ा याद है दूसरे को गिनती की समझ तक नही है | मानसिक स्तर पर देखा जाए तो हर कक्षा में कम से कम पाँच ग्रुप बनेंगे | बच्चों पर हाथ उठाना बिलकुल अच्छा नही लगता, चाहती हूँ कि वो स्कूल से डरें नहीं स्कूल को प्यार करें मगर कैसे ? मैं उनको गिनती सिखाने की कोशिश करती हूँ वो खिड़की से झूल रहे होते हैं | मैं वर्णमाला की पहचान कराना चाहती हूँ वो पेंसिल से कटोरे पर संगीत की प्रैक्टिस में लगे हैं |
मैं चाहती हूँ वो फूल पत्ती तितली बादल बनाएँ पर कहाँ ? न कागज़ है न रंग है | रंग तो ख़ैर कहीं नही है |
चबी चीक्स डिम्पल चिन रोज़ी लिप्स यह सब परी कथा की बातें हैं | इनके कर्ली हेयर में सालों से तेल नही पड़ा , बुरी तरह उलझे हुए हैं, पिछले साल की यूनिफॉर्म में एक भी बटन सलामत नही है |
इनकी आँखों में हल्का पीलापन है | कई बार ये कंजेक्टिवाइटिस का शिकार भी दिखती हैं | धान रोपने की वजह से पैर की उँगलियों में सड़न हो गई है | दर्द भी है.खेल-खेल में ये अक्सर चोटिल हो जाती हैं |
मैं उनके साथ सख्त होने की कोशिश करना चाहती हूँ लेकिन असफ़ल रहती हूँ | उनके साथ तो ज़िन्दगी ही इतनी सख़्त है |
स्कूल का हैण्डपम्प एक गड्ढे में है जिसमें बरसात का पानी भरा है | उस नल का पानी पीने का जी नही करता लेकिन उन बच्चों के बीच घर से ले जाई गई बोतल का पानी पीना मुझे भीतर तक अश्लील दिखने के अहसास से भर देता है |
जिस बच्चे को कॉपी न होने के कारण डपट कर पिता को बुला कर लाने को कहती हूँ उसके पिता ही नही हैं.
मैं सन्न हूँ |
"मैडम बप्पा कहिन हैं पइसा होइ तब आधार कार्ड बनवाय देहैँ."
"बप्पा क्या काम करते हैं गोलू ? मैं बेख्याली में पूछती हूँ.
का करैं?कमवै नाय लागत है…"
पिता इस समय खाली हाथ हैं पैसे से भी और काम से भी.
कुछ बच्चे क्रूर शब्दों में कहूँ तो मन्द बुद्धि हैं ये अतिरिक्त ध्यान चाहते हैं | नही संभव हो पाता | ये प्यार की भाषा समझते हैं बस..
इसलिए हर जगह पीछे पीछे हैं..
पढ़ाने में बाधा होती है तो कभी कभी डांट देती हूँ..
अपनी क्लास में जाओ...
ये रो पड़ते हैं | मैं शर्मिंदगी के अहसास से भर उठती हूँ अपने जंगलीपन पर
इनको मनाती हूँ | ये फिर पहले की तरह मेरे पीछे लग जाते हैं |
ये अक्सर कॉपी कलम नही लाते, मुझे कोफ़्त होती है, कैसे पढ़ाऊँ कैसे लिखना सिखाऊँ लेकिन अक्सर ये कच्चे पक्के अमरूद लाते हैं मेरे लिए, कभी कभी बेर भी, बड़ी मुश्किल से हासिल इन मौसमी फलों में से वो एक भी अपने लिए बचाना नही चाहते |
इनके आई ए एस, डॉक्टर या इंजीनियर बनने का ख़्वाब मैं किन आँखों से देखूँ!
हर रोज बस एक दुआ पढ़कर फूँकती हूँ कि ईश्वर ऐसी मुसीबत में कभी न डाले कि तुम्हारी यह निश्छलता खो जाए.इतने ताकतवर बनो कि हर तकलीफ़ तुम्हारे आगे घुटने टेक दे बस यही एक दुआ.
(मधुलिका चौधरी)
#A Failure Teacher.
Original Post: www.madhyamarg.com/
कैसा होता है सरकारी स्कूल में पढ़ाना
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Oleh
Harshit